कैश कांड: स्पीकर ओम बिड़ला ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को दी मंजूरी, बनाई जांच समिति

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने मंजूरी दे दी है। इस महाभियोग प्रस्ताव से पहले जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन भी किया गया है।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने मंजूरी दे दी है। इस महाभियोग प्रस्ताव से पहले जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन भी किया गया है।

इस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट, एक हाईकोर्ट के जज व एक कानूनविद को शामिल किया गया है। यह समिति अपनी रिपोर्ट लोकसभा स्पीकर को प्रस्तुत करेगी। लोकसभा स्पीकर ने बताया कि उन्हें भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद सहित कुल 146 सदस्यों के हस्ताक्षर से प्रस्ताव मिला था। 

महाभियोग प्रस्ताव का कारण

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे है। इन आरोपों का कारण इसी साल 14 मार्च रात 11ः45 बजे उनके घर के स्टोर रूम से जले हुए नोटों से भरे बोरे मिलना है। दरअसल 14 मार्च रात को दिल्ली फायर बिग्रेड को सूचना मिली थी कि जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित आवास पर आग लग गई हैै।

आग बुझाने पहुंचे फायर कर्मचारियों को जस्टिस वर्मा के स्टोर रुम से बड़ी संख्या में 500 सौ रुपए के जले हुए नोट बोरों में भरे हुए मिले थे। जिसकी सूचना पुलिस और अन्य संस्थाओं को दी गई थी। इस मामले में सीजेआई द्वारा उनका तत्काल तबादला दिल्ली से इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया था, व तीन सदस्यीय जांच समिति को मामले की जांच सौंप दी थी। 

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स्पीकर ओम बिड़ला बोले: मामला बहुत गंभीर है

स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा कि यह मामला गंभीर है और इसमें भ्रष्टाचार के स्पष्ट संकेत मिलते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट के जजों और कानूनविदों से सलाह लेने के बाद यह फैसला लिया गया।

स्पीकर बिड़ला ने कहा, हमने न्यायाधीश जांच अधिनियम (Judicial Inquiry Act) के प्रावधानों का अध्ययन किया है और सुप्रीम कोर्ट के द्वारा किए गए फैसलों के आधार पर यह कदम उठाया गया है। 

जांच समिति का गठन

स्पीकर ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय एक समिति का गठन किया है। इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनिंदर मोहन श्रीवास्तव, और कर्नाटक हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट बीवी आचार्य शामिल हैं। इस समिति की रिपोर्ट के बाद ही महाभियोग प्रस्ताव पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। 

देश में अब तक के महाभियोग प्रस्तावों का इतिहास

भारत की न्यायपालिका में अब तक कोई भी जज महाभियोग के जरिए हटाया नहीं गया है, हालांकि महाभियोग प्रस्ताव छह बार प्रस्तुत किए गए हैं। इन छह मामलों में से कुछ चर्चित मामले निम्नलिखित हैं:

  • जस्टिस वी. रामास्वामी (1993): सुप्रीम कोर्ट के जज पर अनियमित व्यवहार के आरोप लगे थे, लेकिन दो-तिहाई समर्थन न मिलने के कारण महाभियोग प्रस्ताव रद्द कर दिया गया।

  • जस्टिस सौमित्र सेन (2011): कोलकाता हाईकोर्ट के जज पर धन गबन का आरोप था, और राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन लोकसभा में बहस से पहले ही जज ने इस्तीफा दे दिया।

  • जस्टिस पीडी दिनाकरण (2011): भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग के आरोपों के कारण महाभियोग प्रस्ताव पेश हुआ, लेकिन जस्टिस ने इस्तीफा दे दिया था, जिससे प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी। 

  • जस्टिस जेबी परदीवाला (2015): आरक्षण पर विवादित टिप्पणी के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाया गया, लेकिन बाद में टिप्पणी हटने पर यह रद्द हो गया।

  • जस्टिस सीवी नार्गजुन रेड्डी (2017): वर्ग विशेश के जज को टारगेट करने और वित्तीय अनियमितता के आरोप लगे, लेकिन सांसदों का समर्थन नहीं मिला, प्रस्ताव रद्द हो गया।
  • चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा (2018): जस्टिस लोया मामले में अनियमितताओं के आरोपों पर महाभियोग प्रस्ताव मांग हुई, लेकिन राज्यसभा अध्यक्ष ने इसे मंजूरी नहीं दी। 

महाभियोग के पीछे का तर्क

भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 (Article 124 of the Constitution) के तहत, जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है, यदि उनकी कार्यप्रणाली में गंभीर भ्रष्टाचार या अनियमितताएं पाई जाती हैं। स्पीकर ओम बिड़ला ने यह कहा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ उठाए गए आरोपों से यह स्पष्ट होता है कि जांच और कार्रवाई की आवश्यकता है।  

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क्या होता है महाभियोग प्रस्ताव और उसकी प्रक्रिया?

  • महाभियोग वह प्रक्रिया है, जिसका इस्तेमाल देश के राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जजों को हटाने के लिए संसद में लाया जाता है. 
  • किसी जज को हटाने के नोटिस पर लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए.
  • प्रस्ताव को अध्यक्ष या सभापति द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है.
  • जज के विरुद्ध लगाए गए आरोपों की जांच के लिए लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा सभापति द्वारा एक जांच समिति गठित की जाएगी.
  • समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ जस्टिस, एक हाईकोर्ट के वर्तमान चीफ जस्टिस और एक प्रतिष्ठित न्यायविद.
  • समिति को तीन महीने में रिपोर्ट प्रस्तुत करना होता है.
  • महाभियोग को पारित कराने के लिए सदन में वोटिंग होती है, जिसमें कम से कम दो तिहाई सांसदों को समर्थन मिलना चाहिए.
  • प्रस्ताव पारित होने पर उसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है.
  • किसी जज को हटाने का अधिकार केवल देश के राष्ट्रपति के पास होता है.

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