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Photograph: (thesootr)
जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) का नाम पिछले कुछ समय से सुर्खियों में है। उनके खिलाफ महाभियोग (Impeachment) की प्रक्रिया जारी है, और यह मामला न्यायिक प्रणाली में एक गंभीर विवाद का विषय बन गया है।
जस्टिस वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने अपनी भूमिका का दुरुपयोग किया और उनका नाम एक बड़े कैश कांड (Cash Scandal) से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा की याचिका खारिज करते हुए महाभियोग की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अनुमति दी।
क्या था कैश कांड (Cash Scandal)?
कैश कांड का मामला तब सामने आया जब जस्टिस वर्मा के घर पर बड़ी मात्रा में नकदी नोटों की बरामदगी हुई। यह मामला राष्ट्रीय मीडिया में छाया हुआ था, और न्यायिक शुचिता पर सवाल उठाए गए थे। इसके बाद, एक इन-हाउस कमेटी (In-house Committee) बनाई गई, जिसने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया। इस रिपोर्ट के बाद महाभियोग की सिफारिश की गई थी, जिसे जस्टिस वर्मा ने चुनौती दी थी।
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस वर्मा की याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें उन्होंने महाभियोग (Impeachment) प्रक्रिया को रद्द करने की अपील की थी। कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, जिसका मतलब था कि महाभियोग की प्रक्रिया रुकेगी नहीं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह साफ हो गया कि जस्टिस वर्मा को अब महाभियोग का सामना करना पड़ेगा।
जस्टिस वर्मा के लिए दो विकल्प...
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, जस्टिस वर्मा के सामने दो विकल्प हैं-
1. इस्तीफा दे देना (Resignation):
यदि जस्टिस वर्मा इस्तीफा देते हैं, तो वह महाभियोग से बच सकते हैं। साथ ही उन्हें रिटायर्ड जज के तौर पर पेंशन का लाभ भी मिलेगा।
2. महाभियोग का सामना करना (Facing Impeachment):
यदि जस्टिस वर्मा महाभियोग के जरिए पद से हटाए जाते हैं, तो उन्हें पेंशन और अन्य लाभ नहीं मिल पाएंगे। हालांकि, जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से पहले ही इस विकल्प को खारिज कर दिया है।
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संसद में महाभियोग का नोटिस
महाभियोग प्रक्रिया की शुरुआत संसद से हुई थी। लोकसभा के 152 सांसदों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे। राज्यसभा में भी 54 सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। हालांकि, अब तक इस नोटिस को किसी भी सदन ने स्वीकृत नहीं किया है।
जस्टिस वर्मा के खिलाफ मामले को ऐसे समझें...
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