/sootr/media/media_files/2025/11/08/reserve-bank-of-india-2025-11-08-11-06-34.jpg)
आज की तारीख का इतिहास:साल था 2016, महीना नवंबर और तारीख थी 8। शाम के लगभग 8 बजे थे। पूरा देश अपने-अपने काम निपटा रहा था। कोई टीवी देख रहा था, कोई डिनर की तैयारी में था। तभी अचानक टीवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं। वो एक ऐसा ऐलान करते हैं, जिसने अगले कुछ घंटों में देश की पूरी आर्थिक धड़कन बदल दी।
प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि रात 12 बजे से देश में चल रहे 500 और 1000 रुपए के सभी नोट कानूनी तौर पर अमान्य हो जाएंगे। यानी, जो नोट अभी आपकी जेब में हैं, वे कागज के टुकड़े मात्र रह जाएंगे। यह फैसला लोगों के लिए एक बहुत बड़ा आर्थिक झटका था।
इसे भारतीय इतिहास में नोटबंदी कहा गया। इसका मकसद काले धन और जाली नोटों पर लगाम लगाना था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह भारत की पहली नोटबंदी नहीं थी।
इससे पहले 1946 और 1978 में भी बड़े नोट बंद किए जा चुके हैं। आइए, इस ऐतिहासिक फैसले की पूरी कहानी और भारत में नोटबंदी के इतिहास को विस्तार से जानें।
/sootr/media/post_attachments/imported/images/E/Articles/demonetisation-india-270613.jpg)
2016 की नोटबंदी क्यों
सरकार ने इस कड़े फ़ैसले के पीछे तीन मुख्य मक़सद बताए थे। यह मकसद बिल्कुल साफ थे:
काले धन पर लगाम:
देश में बड़े पैमाने पर लोगों ने जो कैश जमा कर रखा था उस पर रोक लगाना। माना गया कि जो लोग टैक्स नहीं देते और अवैध तरीके से पैसा कमाते हैं, वे डर के मारे यह पैसा बैंक में जमा नहीं करा पाएंगे।
जाली नोटों पर प्रहार:
बाजार में पाकिस्तानी और अन्य देशों से आ रहे जाली नोटों के रैकेट को पूरी तरह से खत्म करना।
आतंकवाद की फंडिंग रोकना:
जाली नोट और काले धन का इस्तेमाल अक्सर आतंकवाद को बढ़ावा देने में होता था। नोटबंदी से उस सप्लाई चेन को तोड़ना था।
/sootr/media/post_attachments/8232/production/_105703333_gettyimages-624388920-819377.jpg)
जैसे ही यह खबर फैली, पूरे देश में हड़कंप मच गया। एटीएम के बाहर लंबी-लंबी लाइनें लग गईं। लोग बैंक के काउंटर पर घंटों खड़े रहे ताकि वे अपने पुराने नोट बदल सकें या अपने अकाउंट में जमा करा सकें। इस दौरान लोगों को कई तरह की तकलीफें भी उठानी पड़ीं।
लेकिन सरकार ने इसे देश की भलाई के लिए एक जरूरी सर्जिकल स्ट्राइक बताया। इस नोटबंदी के बाद 2000 और नए 500 रुपए के नोट बाजार में आए। यह फैसला केवल काले धन पर वार नहीं था, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक जबरदस्त डिजिटल धक्का था।
सड़कों पर लंबी कतारें लगीं, एटीएम खाली हुए, पर साथ ही डिजिटल पेमेंट ने अपनी जगह बनाई। यह वो ऐतिहासिक रात थी जिसने भारत को कैश-आधारित समाज से डिजिटल भविष्य की ओर तेजी से मोड़ दिया।
/sootr/media/post_attachments/wp-content/uploads/2022/10/Notebandi-627965.jpg)
नोटबंदी से फायदा या नुकसान
नोटबंदी के बड़े फायदे
डिजिटल क्रांति:
यह नोटबंदी की सबसे बड़ी और अनडिस्प्यूटेड अचीवमेंट है। नकद की कमी के कारण UPI, Paytm और Google Pay जैसे डिजिटल पेमेंट में जबरदस्त उछाल आया, जिससे भारत डिजिटल इकोनॉमी में विश्व का लीडर बन गया।
टैक्स कलेक्शन में सुधार:
टैक्स देने वालों की संख्या बढ़ी। व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट टैक्स कलेक्शन में वृद्धि दर्ज हुई। सरकार का मानना है कि नोटबंदी ने लोगों को अपनी आय घोषित करने के लिए मजबूर किया, जिससे कर आधार का विस्तार हुआ।
जाली नोटों पर लगाम:
सिस्टम से 500 और 1000 रुपए के पुराने जाली नोटों का एक बड़ा हिस्सा हट गया। हालांकि जाली नोटों की समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।
/sootr/media/post_attachments/web2images/521/2021/11/07/queueatbanktoexchangeinr500and1000notes-saltlakeci_1636280761-885599.jpg)
नोटबंदी के बड़े नुकसान
काले धन का लक्ष्य चूकना:
RBI (Reserve Bank of India) की रिपोर्ट के मुताबिक, बैन किए गए नोटों का लगभग 99% हिस्सा बैंकिंग सिस्टम में वापस लौट आया। आलोचकों का मानना है कि इससे स्पष्ट होता है कि काले धन के बड़े हिस्से को लोगों ने किसी न किसी तरीके से सफेद बना लिया।
छोटे उद्योगों पर असर:
नकदी पर निर्भर छोटे उद्योगों (MSMEs), कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तात्कालिक रूप से बड़ा झटका लगा। क्योंकि अचानक कैश का सर्कुलेशन बहुत कम हो गया था।
जीडीपी पर असर:
कई आर्थिक रिपोर्टों में कहा गया कि नोटबंदी के तुरंत बाद देश की जीडीपी वृद्धि दर पर अस्थाई रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ा था।
/sootr/media/post_attachments/assets/2016/11/1000note-08-11-2016-1478624165_storyimage-363170.jpg)
इतिहास दोहराया गया: भारत में कब हुई थी नोटबंदी
यह बात कई लोगों को नहीं पता होगी कि 2016 की नोटबंदी भारत के इतिहास की पहली नोटबंदी नहीं थी। हमारे देश में आजादी से पहले और बाद में भी ऐसे आर्थिक फैसले लिए गए थे।
/sootr/media/post_attachments/wp-content/uploads/2023/09/interim-government-of-india-413770.jpg)
पहली बार नोटबंदी: 1946 – आजादी से पहले का आर्थिक वार
भारत में सबसे पहली बार नोटबंदी आजादी से पहले, ब्रिटिश राज के दौरान हुई थी।
तारीख: 12 जनवरी 1946
किस पर असर: उस समय के बड़े नोट, यानी 500, 1000 और 10,000 रुपए के नोटों को वापस ले लिया गया था।
मकसद: दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जो काला बाजार बढ़ा था। जो गैर-कानूनी तरीके से धन जमा किया गया था, उस पर लगाम लगाना था।
यह फैसला रातों-रात लागू हुआ और उस समय के धनी वर्ग को इससे बड़ा झटका लगा। लेकिन आम जनता पर इसका असर इतना बड़ा नहीं था। ये बड़े मूल्य वाले नोट आम लेन-देन में बहुत कम इस्तेमाल होते थे।
/sootr/media/post_attachments/wp-content/uploads/2016/11/morarj-desai-ie-s-291925.jpg)
दूसरी बार नोटबंदी: 1978 – मोरारजी देसाई का बड़ा फैसला
आजादी के बाद पहली बार और कुल मिलाकर दूसरी बार नोटबंदी साल 1978 में हुई थी जब देश में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की सरकार थी।
तारीख: 16 जनवरी 1978
किस पर असर: इस बार फिर से बड़े नोटों को निशाना बनाया गया 1000, 5000 और 10,000 रुपए के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया।
मकसद: सरकार ने स्पष्ट कहा था कि यह फैसला देश में काले धन के जमावड़े को रोकने के लिए लिया गया है।
इस फैसले को लागू करने के लिए एक विशेष अध्यादेश लाया गया था। बैंकों और अन्य संस्थानों को इन नोटों को बदलने के लिए बहुत कम समय दिया गया था। इससे काले धन के मालिकों में अफरा-तफरी मच गई थी।
/sootr/media/post_attachments/assets/images/4cplus/2023/05/21/shalthara-sarafa-ka-sagaraha-ma-upalbthha-rapaya-savatha_1684610881-443202.jpeg?w=414&dpr=1.0&q=80)
क्या नोटबंदी से मकसद पूरे हुए
हर बार नोटबंदी का मकसद काले धन और जाली नोटों पर वार करना रहा है।
1946 और 1978:
इन दोनों बार नोटबंदी का असर मुख्य रूप से उन लोगों पर पड़ा था जो बहुत बड़े नोटों में डील करते थे। आम आदमी का रोजमर्रा का जीवन बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ था।
/sootr/media/post_attachments/onecms/images/uploaded-images/2023/05/20/23e152eb0f7d8f04bcaa4f432562c6781684585130453621_original-935521.jpg)
2016:
यह नोटबंदी ऐतिहासिक थी क्योंकि इसमें 500 और 1000 रुपए के नोट शामिल थे। ये आम आदमी से लेकर छोटे व्यापारी तक के हर रोज के लेन-देन का मुख्य हिस्सा थे। इस फैसले के बाद देश में डिजिटल पेमेंट में तेजी आई, जो एक बड़ा सकारात्मक बदलाव था।
हालांकि, यह बहस आज भी जारी है कि क्या काले धन का पूरा मकसद हासिल हो पाया या नहीं। RBI (Reserve Bank of India) के डेटा के मुताबिक, बैन किए गए नोटों का एक बहुत बड़ा हिस्सा वापस बैंकों में जमा हो गया था।
8 नवंबर 2016 की नोटबंदी 2016 एक ऐसा फैसला था, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक झटके में बदल दिया। यह तारीख हमेशा हमें याद दिलाएगी कि सरकार ने एक बड़ा आर्थिक जोखिम उठाया था। इसका असर आज भी देश की इकोनॉमी पर कहीं न कहीं दिखाई देता है। आज की यादगार घटनाएं | आज के दिन की कहानी | नोटबंदी न्यूज | Notebandi News
References
- Reserve Bank of India (RBI) Annual Reports (2016-17 data on currency).
- Press Information Bureau (PIB) India Archives (Statements on Demonetisation 2016).
- The Gazette of India Notification (High Denomination Bank Notes Demonetisation Ordinance, 1978).
- Historical records of the High Denomination Bank Notes Demonetisation Ordinance, 1946.
ये खबर भी पढ़ें...
आज का इतिहास: बेनजीर भुट्टो को क्यों कहा जाता है पाकिस्तान की आयरन लेडी, दो बार बनी थीं प्रधानमंत्री
आज का इतिहास: 137 साल तक कलकत्ता क्यों रहा ब्रिटिश भारत की राजधानी, जानें रेगुलेटिंग एक्ट का खेल
आज का इतिहास: भारत का पहला मून मिशन जिसने चांद पर खोजा पानी, जानें ISRO की सबसे बड़ी जीत
आज का इतिहास: कौन थी अंग्रेजों को धूल चटाने वाली भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी रानी चेन्नम्मा
/sootr/media/agency_attachments/dJb27ZM6lvzNPboAXq48.png)
Follow Us