वरुण गांधी को अपने पास पीएम हाउस में ही रखना चाहती थीं इंदिरा गांधी

जब मेनका गांधी अपने दो साल के बेटे वरुण के साथ आवास से निकल रही थीं तो इंदिरा गांधी का आदेश था कि वरुण को छोड़कर जाओ। असल में वह वरुण को अपने आवास में ही रखना चाहती थीं, लेकिन मेनका अड़ गईं...

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Dr Rameshwar Dayal
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NEW DELHI: गांधी फैमिली ( Gandhi family ) से इस परिवार की बहू मेनका गांधी ( menka Gandhi ) की जुदाई बड़ी ही मार्मिक और दुखदायी है। उस दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ( PM indira gandhi) ने ‘बड़े ही बेआबरू होकर’ प्रियंका गांधी को पीएम आवास से निकाला था। इंदिरा गांधी अपने खानदान के छोटा चिराग, दो साल के वरुण गांधी ( varun gandhi ) को अपने पास ही रखना चाहती थी, लेकिन कानूनी मर्यादाओं के चलते उन्हें अपनी यह जिद छोड़नी पड़ी। वैसे पुराने दौर में इंदिरा गांधी और मेनका के बिगड़े संबंध खासी चर्चा में रहे हैं।

संजय गांधी की मौत के बाद इंदिरा-मेनका के रिश्ते बिगड़ने लगे

इस कहानी को हम स्पेनिश लेखक जेवियर मोरे की किताब ‘The Red sari’ के अलावा अंग्रेजी लेखक, पत्रकार व इंदिरा परिवार से जुड़े खुशवंत सिंह व अन्य नेताओं से बातचीत के आधार पर बता रहे हैं कि किस तरह इंदिरा गांधी ने अपने वारिस बेटे संजय गांधी की पत्नी मेनका को पीएम निवास से बाहर का रास्ता दिखा दिया। यह कहानी साल 1980 से शुरू हुई और दो साल में उनके संबंध इतने बिगड़े कि मेनका गांधी पीएम आवास से बिना कोई सामान लिए सिर्फ अपने मासूम बेटे वरुण गांधी को लेकर निकल आई। उस साल जनवरी में इंदिरा गांधी दोबारा प्रधानमंत्री बनी थीं और जून में उनके छोटे बेटे संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी। उसके बाद धीरे-धीरे संबंध बिगड़ने लगे। मेनका को इस बात से ऐतराज था कि इंदिरा गांधी अपने बड़े बेटे संजय गांधी को नया वारिस बनाने का प्रयास कर रही हैं, तो इंदिरा गांधी को मेनका के व्यवहार को लेकर खासी नाराजगी थी।

छोटी-छोटी बातों पर तनाव बढ़ने लगा था

करीब दो साल तक एक ही आवास के नीचे इंदिरा गांधी व मेनका के बीच संबंध बेहद तीखे हो गए थे। वह 28 मार्च 1982 की रात थी, जब मेनका पीएम आवास को छोड़ आई थीं। इसकी कुछ और भी वजह बताई जाती हैं। उस दौरान मेनका ने अपने साथियों के साथ लखनऊ में जनसभा की, जिसको लेकर इंदिरा गांधी खासी नाराज थीं। इसके अलावा छोटी-छोटी घरेलू बातों पर भी दोनों के बीच लगातार तनाव पसरने लगा था। इंदिरा गांधी का स्वभाव ऐसा था कि वह किसी भी समस्या को जड़ से खत्म करना चाहती थीं। उन्हें लग रहा था कि मेनका का आवास में रहना मानसिक व अन्य परेशानी का सबब बनता जा रहा है, इसलिए उन्होने मेनका को अपना आवास छोडऩे को कहा। हालांकि मेनका का कहना था कि गांधी परिवार होने के नाते इस घर पर उनका भी हक है, लेकिन इंदिरा गांधी ने यह कहकर उन्हें चुप करा दिया कि यह निवास प्रधानमंत्री का है।

कोई सामान नहीं ले जाने दिया गया था

इंदिरा गांधी इस बात से भी नाराज थी कि मेनका गांधी अपने पति संजय गांधी की जीवनी पर किताब लिख रही थी और उन्होंने इसमें कुछ बदलाव को कहा था, लेकिन मेनका ने इनकार कर दिया था। इंदिरा गांधी ने उस दिन उन्हें तुरंत आवास छोड़ने को कहा। परेशान मेनका ने अपना कुछ सामान लेना चाहा लेकिन उन्हें रोक दिया गया। मेनका ने इस बात की जानकारी अपनी बहन अंबिका को दी। वह आई लेकिन इंदिरा गांधी की नाराजगी कायम रही। वह इस बात पर अटल थीं कि मेनका तुरंत आवास से चली जाए। उस वक्त इंदिरा गांधी के खास धीरेंद्र ब्रह्मचारी व आरके धवन ने मामले को शांत करना चाहा लेकिन इंदिरा अपने आदेश पर अटल रहीं।

इंदिरा गांधी की वरुण को पाने की जिद और फिर…

जब मेनका गांधी अपने दो साल के बेटे वरुण के साथ आवास से निकल रही थी तो इंदिरा गांधी का आदेश था कि वरुण को छोड़कर जाओ। असल में वह वरुण को अपने आवास में ही रखना चाहती थी। लेकिन मेनका अड़ गई। इसी बीच इंदिरा गांधी ने अपने प्रमुख सचिव पीसी अलेक्जेंडर का बुलाया और वरुण को अपने पास रोकने को कहा। लेकिन उन्होंने कहा कि मां का कानूनी हक बेटे पर है। न तो कोर्ट न ही कोई कानून वरुण को आपके पास रोक सकता है, जिसके बाद निराश मन से इंदिरा ने अपनी जिद छोड़ दी। इसके बाद रात 11 बजे के आसपास मेनका ने पीएम आवास छोड़ दिया और अपनी अलग राह चुन ली। उन्हें बड़े ही राजनीतिक थपेड़े झेले, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और केंद्र में मंत्री तक बन गईं।

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