NEW DELHI: गांधी परिवार ( Gandhi family ) के वंशज और संजय गांधी के बेटे वरुण गांधी (Varun Gandhi ) राजनीतिक उहापोह में फंसे हुए हैं। बीजेपी ( BJP ) ने कथित तौर पर पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते उनको इस बार पीलीभीत ( pilibhit ) से प्रत्याशी नहीं बनाया है। अब यह कयास लग रहे हैं कि क्या वरुण दोबारा से अपनी ‘गर्भनाल’ से जुड़ेंगे। कांग्रेसी नेता उन्हें दोबारा से कांग्रेस ( congress ) में आने का आग्रह कर रहे हैं और मसले को इमोशनल बनाते हुए आरोप लगा रहे हैं कि वरुण को गांधी परिवार का सदस्य होने की सजा मिल रही है।
बदले-बदले नजर आ रहे थे वरुण
वरुण गांधी का व्यवहार पिछले कुछ सालों से बदला-बदला नजर आ रहा था और माना जा रहा था कि बीजेपी इस बार उन्हें लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ाएगी। असल में वह अपनी पार्टी को तो कठघरे में खड़ा ही कर रहे थे, साथ ही कांग्रेस से अपनत्व जोड़ रहे थे। वरुण कह रहे थे कि वह न तो नेहरू के खिलाफ हैं और न ही कांग्रेस के। वह धर्म की राजनीति पर लगातार सवाल भी खड़े कर रहे थे। इसका परिणाम यह निकला कि पार्टी ने इस बार उन्हें लोकसभा का टिकट नहीं दिया। राजनीतिक भाषा में बोलें तो बीजेपी ने उन्हें पैदल कर दिया। रणनीति के तहत बीजेपी ने उनकी मां मेनका गांधी को सुल्तानपुर से टिकट दे दिया। यानि वरुण बागी तेवर अपनाएंगे तो मेनका को जीतने में मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। संदेश जाएगा कि वरुण स्वार्थ की राजनीति को प्रश्रय दे रहे हैं।
क्या वह उलटफेर के मूड में हैं
कांग्रेस चाहती है कि वरुण गांधी उनकी पार्टी में आए ताकि उत्तर प्रदेश में सालों से चल रहा सूखा इस चुनाव में हरियाली में बदल जाए। पार्टी के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने वरुण को तुरंत ऑफर कर दिया है और आरोप लगाया है कि बीजेपी उन्हें गांधी परिवार का होने की सजा दे रही है। चौधरी का कहना है कि वरुण अगर कांग्रेस में आएंगे तो पार्टी को खुशी होगी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वरुण वाकई उलटफेर के मूड में हैं। असल में बीजेपी ने उन्हें पूरा सम्मान दिया। वह वर्ष 2004 में बीजेपी में शामिल हुए और 2009 में लोकसभा का चुनाव जीतकर सांसद भी बन गए। उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के अलावा अन्य बड़े पद दिए गए। यूपी में बीजेपी का कद बढ़ाने में उन्होंने भी खूब मेहनत की और माना जा रहा था कि सब कुछ ठीक रहता तो वह इस राज्य के सीएम भी बनाए जा सकते थे। लेकिन इस दौरान उन्होंने पार्टी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। अखबारों में लेख लिखकर बीजेपी को टारगेट पर लिया, जिसके बाद पार्टी ने उन्हें निपटाने का मन बना लिया और उन्हें टिकट ही नहीं दिया।
कांग्रेस उन्हें पार्टी में क्यों लाना चाहती है
अब सवाल यह है कि क्या वरुण अपनी राजनीतिक जड़ों की ओर लौट सकते हैं। क्या उनके आने से कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी व उनकी मां मेनका गांधी के संबंध सामान्य हो पाएंगे और पार्टी के अन्य नेता व उनके भाई राहुल गांधी उनसे पुराना अपनापा बना सकेंगे। संभावना तो यही जताई जा रही है कि यूपी में पार्टी को मजबूत करने के लिए कांग्रेस वरुण को पार्टी में लाना चाहती है, क्योंकि यह राज्य देश की राजनीति में बहुत ही खास है। पार्टी को लगता है कि राहुल व वरुण मिलकर पार्टी को और मजबूत करेंगे, साथ ही लोकसभा की सीटों में भी इजाफा करेंगे। अब गेंद वरुण गांधी के पाले में है। उनका किसी पार्टी में जाने का निर्णय लाभकारी रहेगा या उनके लिए परेशानी का सबब बनेगा। फिलहाल तो वरुण गांधी मौन साधे हुए हैं।
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