आग, नकदी, ट्रांसफर और अब महाभियोग, विवेक तन्खा के तीखे सवालों से गरमाया जस्टिस वर्मा का कैश कांड

देश की न्यायपालिका में इन दिनों जस्टिस यशवंत वर्मा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने गंभीर बहस छेड़ दी है। 14 मार्च 2025 को उनके सरकारी आवास में आग लगने के बाद स्टोर रूम से जली हुई नकदी की गड्डियां मिलीं, जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा।

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Neel Tiwari
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जस्टिस यशवंत वर्मा
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देश की न्यायपालिका इन दिनों एक गंभीर बहस के केंद्र में है। दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा पर लगे कई आरोपो और संभावनाओं ने पूरे देश का ध्यान उनकी ओर खींचा है। इसमें कथित भ्रष्टाचार के आरोपों, उनके आवास पर लगी रहस्यमयी आग, भारी मात्रा में नकदी की मौजूदगी, सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच और अब महाभियोग की संभावना शामिल है। इस पूरे मामले को वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा के तीखे सवाल ने और अधिक गरमाया है। इसमें उन्होंने केंद्र सरकार की मंशा और जांच प्रक्रिया की वैधता पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया है।

जज के घर में मिली थी जलती हुई नकदी की गड्डियां

14 मार्च 2025 को दिल्ली में स्थित जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर अचानक आग लग गई। आग स्टोर रूम तक फैल गई, जिसे दमकल विभाग ने कड़ी मशक्कत के बाद बुझाया। इसके बाद जो चर्चा उठी, उसने पूरे मामले को मोड़ दिया, जब दमकल और पुलिस अधिकारियों ने कथित रूप से स्टोर रूम में भारी मात्रा में नकदी देखी। मीडिया रिपोर्ट्स और कुछ चश्मदीदों के हवाले से कहा गया कि रुपयों की गड्डियाँ जली हुई अवस्था में मिलीं। हालांकि जस्टिस वर्मा ने कोई सार्वजनिक बयान जारी नहीं किया था, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने तत्काल इन-हाउस जांच का निर्णय लिया।

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इन-हाउस जांच और ट्रांसफर के आदेश

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की गई। इस जांच समिति ने करीब 40 दिन में रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट में गवाहों के बयान, वीडियो फुटेज और अधिकारियों की जानकारी के आधार पर यह स्पष्ट किया गया कि वहां बड़ी मात्रा में नकदी मौजूद थी और जज वर्मा इसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। उन्होंने केवल "फ्लैट डिनायल" (सीधा इनकार) किया। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को दिल्ली से इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने की सिफारिश की, जिसे 21 मार्च 2025 को सार्वजनिक किया गया। हालांकि कॉलेजियम ने स्पष्ट किया कि ट्रांसफर और जांच प्रक्रिया दो अलग-अलग मुद्दे हैं।

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इलाहाबाद बार एसोसिएशन ने किया था विरोध

इलाहाबाद बार एसोसिएशन ने इस ट्रांसफर का कड़ा विरोध किया। एक बयान में उन्होंने कहा, "हम कूड़ेदान नहीं हैं, जहाँ संदिग्ध छवि वाले जजों को भेजा जाए"। इस विरोध के बाद यह मुद्दा और भी गंभीर हो गया, और देशभर की कानूनी बिरादरी में बहस तेज हो गई।

विवेक तन्खा का तीखा हमला

इस पूरे घटनाक्रम के बीच वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने 11 जून को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर केंद्र सरकार पर सीधा हमला किया। उन्होंने सवाल उठाया:

“क्या सरकार जज की मदद करना चाहती है या उन्हें महाभियोग लाना चाहती है? इन-हाउस जांच रिपोर्ट गोपनीय होती है, जिसे सांसदों को भी नहीं दिखाया जाता, तो फिर उस आधार पर संसद में प्रस्ताव कैसे लाया जा सकता है?”


विवेक तन्खा ने यह भी लिखा कि राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ स्वयं कह चुके हैं कि इन-हाउस रिपोर्ट की कोई संवैधानिक वैधता नहीं होती और यह केवल न्यायपालिका की आंतरिक प्रक्रिया होती है।

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अगला कदम हो सकता है महाभियोग प्रस्ताव

अब सबकी निगाहें संसद के आगामी मानसून सत्र पर टिकी हैं, जिसमें केंद्र सरकार जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश कर सकती है। इसके लिए राज्यसभा और लोकसभा दोनों में दो-तिहाई बहुमत जरूरी है। यदि यह प्रस्ताव पास होता है, तो संभवतः यह भारत के इतिहास में पहली बार होगा कि एक उच्च न्यायालय के जज को संसद द्वारा हटाया जाएगा।

संविधान के अनुसार हो सकती है यह कार्रवाई 

संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के किसी जज को हटाने की प्रक्रिया तभी शुरू की जा सकती है जब उनके खिलाफ साबित रूप से "दुराचार या अक्षमता" का मामला हो। इसके लिए दोनों सदनों में विशेष प्रक्रिया और बहुमत की आवश्यकता होती है।

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क्या हो रही न्याय की रक्षा या सिर्फ पूर्वाग्रह

इस पूरे मामले ने न्यायपालिका की पारदर्शिता, स्वायत्तता और विश्वसनीयता को कठघरे में ला खड़ा किया है। यदि आरोप सही हैं तो यह एक साहसी कदम होगा, लेकिन अगर यह सिर्फ राजनीतिक दबाव या पूर्वाग्रह का हिस्सा है तो यह लोकतंत्र के स्तंभों को हिलाने जैसा होगा।

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