800 साल पहले बख्तियार खिलजी ने जलाया नालंदा कैंपस, अब पीएम मोदी ने किया लोकार्पण

पीएम नरेंद्र मोदी ने प्राचीन खंडहरों के निकट नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया। नए कैंपस को बनाने में 1 हजार 749 करोड़ रुपए का खर्च आया है।

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Ravi Singh
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 Nalanda University
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New Nalanda University Campus : पीएम नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi ) ने बुधवार 19 जून को बिहार के राजगीर में ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया। सुबह के समय नालंदा यूनिवर्सिटी पहुंचे पीएम मोदी ने पहले विश्वविद्यालय की पुरानी धरोहर को करीब से देखा। इसके बाद वह यहां से नए कैंपस में पहुंचे, जहां उन्होंने बोधि वृक्ष लगाया और नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन किया।

पीएम मोदी ने क्या कहा

उद्घाटन के अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि नालंदा से सिर्फ भारत की ही नहीं, बल्कि विश्व के कई देशों की विरासत जुड़ी हुई है। मुझे तीसरे कार्यकाल की शपथ ग्रहण करने के बाद पहले 10 दिनों में ही नालंदा आने का अवसर मिला है.ये मेरा सौभाग्य तो है, साथ ही मैं इसे भारत की विकास यात्रा के एक शुभ संकेत के रूप में देखता हूं।

नालंदा सत्य का उद्घोष है

नालंदा एक पहचान है, एक सम्मान है। नालंदा एक मूल्य है, मंत्र है, गौरव है, गाथा है। नालंदा इस सत्य का उद्घोष है कि आग की लपटों में पुस्तकें भले जल जाएं, लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकता. ये नया कैंपस, विश्व को भारत के सामर्थ्य का परिचय देगा। नालंदा बताएगा कि जो राष्ट्र, मजबूत मानवीय मूल्यों पर खड़े होते हैं। वो राष्ट्र इतिहास को पुनर्जीवित करके बेहतर भविष्य की नींव रखना जानते हैं

उन्होंने आगे कहा कि नालंदा केवल भारत के ही अतीत का पुनर्जागरण नहीं है। इसमें विश्व के एशिया के कितने ही देशों की विरासत जुड़ी हुई है। नालंदा यूनिवर्सिटी के पुनर्निर्माण में हमारे साथी देशों की भागीदारी भी रही है। मैं इस अवसर पर भारत के सभी मित्र देशों का अभिनंदन करता हूं।

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नया कैंपस 1 हजार 749 करोड़ रुपए की लागत से बना है। नए कैंपस का उद्घाटन करने से पहले पीएम मोदी ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय ( Nalanda University ) के खंडहरों को भी देखा। यह स्थल एक प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र हुआ करता था। यहां स्तूप, मंदिर और विहार जैसे कई प्राचीन ढांचे मौजूद हैं।

नए कैंपस में सुविधा

1 हजार 749 करोड़ रुपए की लागत से बने इस नए कैंपस में दो अकैडमिक ब्लॉक हैं। इनमें 40 क्‍लासरूम हैं। यहां लगभग 1900 छात्रों के बैठने की व्यवस्था है। नए कैंपस में 300 सीटों की क्षमता वाले दो ऑडिटोरियम और लगभग 550 छात्रों के रहने के लिए एक छात्रावास भी है। इसके अलावा कैंपस में एक अंतरराष्‍ट्रीय केंद्र, 2000 लोगों की क्षमता वाला एक एम्फीथिएटर, एक फैकल्टी क्लब और एक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स जैसी कई अन्य सुविधाएं भी हैं।

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राष्ट्रीयता देखकर नहीं होता दाखिला

पीएम मोदी ने कहा कि प्राचीन नालंदा में बच्चों का दाखिला उनकी पहचान, उनकी राष्ट्रीयता देखकर नहीं होता था। हर देश, हर वर्ग के युवा यहां आते थे। नालंदा विश्वविद्यालय के इस नए कैंपस में हमें उसी प्राचीन व्यवस्था को फिर से मजबूती देनी है। दुनिया के कई देशों से यहां छात्र आने लगे हैं। यहां नालंदा में 20 से ज्यादा देशों के छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। ये वसुधैव कुटुंबकम की भावना का कितना सुंदर प्रतीक है।

2017 में शुरू हुआ यूनिवर्सिटी निर्माण

साल 2016 में नालंदा के खंडहरों को संयुक्त राष्ट्र विरासत स्थल घोषित किया गया था, इसके बाद विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य 2017 में शुरू किया हो गया था। विश्वविद्यालय का नया कैंपस नालंदा के प्राचीन खंडहरों के पास बनाया गया है। इस नए कैंपस की स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के माध्यम से की गई है। इस अधिनियम में स्थापना के लिए 2007 में फिलीपींस में आयोजित दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय को लागू करने का प्रावधान किया गया था।

नालंदा विश्वविद्यालय: प्राचीन शिक्षा का अद्भुत केंद्र और आधुनिक पुनरुद्धार

बिहार, भारत – नालंदा विश्वविद्यालय, प्राचीन भारत का एक महान शिक्षा केंद्र, जिसने ज्ञान की अनगिनत शाखाओं में विश्वभर से छात्रों को आकर्षित किया था, अब एक बार फिर से आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान बना रहा है। आइए, जानते हैं इस विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास और इसके पुनरुद्धार की कहानी।

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प्राचीन युग: ज्ञान का केंद्र

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल में हुई थी। बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित यह विश्वविद्यालय अपने समय का सबसे बड़ा और प्रतिष्ठित शिक्षा केंद्र था। यहाँ विभिन्न विषयों पर अध्ययन और शोध होता था, जिनमें बौद्ध धर्म, दर्शन, व्याकरण, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, खगोलशास्त्र, गणित और साहित्य शामिल थे।

प्रसिद्ध शिक्षक और छात्र

नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्र अपनी विद्वता के लिए विश्व प्रसिद्ध थे। महान विद्वानों में नागार्जुन, धर्मपाल, आर्यभट्ट और शीलभद्र शामिल थे। चीनी यात्री ह्वेन त्सांग और इत्सिंग ने नालंदा में अध्ययन किया और यहाँ की शिक्षा प्रणाली का विस्तृत वर्णन किया। ह्वेन त्सांग ने नालंदा की प्रशंसा करते हुए इसे "ज्ञान का महासागर" कहा।

पुस्तकालय और विनाश

नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय तीन विशाल भवनों में फैला हुआ था, जिन्हें रत्नसागर, रत्नोदधि, और रत्नरंजक कहा जाता था। इनमें लाखों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ संग्रहित थे। 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में तुर्क आक्रमणकारियों ने नालंदा को नष्ट कर दिया। पुस्तकालयों को जलाया गया और विद्वानों को मार दिया गया, जिससे इस महान शिक्षा केंद्र का अंत हो गया।

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आधुनिक युग: पुनरुद्धार का प्रयास

21वीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया। 2010 में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया, जिसके तहत आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। सितंबर 2014 में इस विश्वविद्यालय का उद्घाटन हुआ, जिसमें तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय: शिक्षा की नई रोशनी

नए नालंदा विश्वविद्यालय का उद्देश्य प्राचीन नालंदा की शैक्षिक और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करना है। यह विश्वविद्यालय अब पर्यावरण अध्ययन, ऐतिहासिक अध्ययन, और सूचना विज्ञान जैसे विषयों पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य वैश्विक शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त करना और छात्रों को समग्र विकास के लिए प्रेरित करना है।

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