बुलडोजर एक्शन पर पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, बोला- राज्य अपने खर्च पर घर बनाकर दे

सुप्रीम कोर्ट ने बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए बुलडोजर से घरों को तोड़ने पर सरकार को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि यह एक गलत परंपरा स्थापित कर रहा है और संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है

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Jitendra Shrivastava
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prayagraj-bulldozer-action Photograph: (thesootr)

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उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुए बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए लोगों के घर तोड़ने पर यूपी सरकार को जमकर फटकार लगाई और इसे एक गलत मिसाल करार दिया। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि संविधान में आर्टिकल 21 का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।

अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह अपने खर्चे पर ध्वस्त घरों का पुनर्निर्माण करे। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उन्हें विध्वंस से पहले नोटिस देने का अवसर नहीं दिया गया। सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में मामला ट्रांसफर करने की मांग भी ठुकरा दी।    

सुप्रीम कोर्ट ने जताई कड़ी नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में हुई ध्वस्तीकरण कार्रवाई पर यूपी सरकार को आड़े हाथों लिया। कोर्ट ने कहा कि घर गिराने से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, जो संविधान के अनुच्छेद 21 का सीधा उल्लंघन है। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका ने कहा कि आर्टिकल 21 भी कोई चीज़ है। यह कार्रवाई पूरी तरह असंवैधानिक और गलत परंपरा स्थापित करने वाली है। 

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राज्य सरकार दे पुनर्निर्माण का खर्च

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अब राज्य सरकार को अपने खर्चे पर ध्वस्त घरों का पुनर्निर्माण करना होगा। जस्टिस ओका ने कहा कि हम आदेश देंगे कि सरकार ध्वस्त घरों का पुनर्निर्माण करे, ताकि भविष्य में ऐसी कार्रवाई से पहले प्रशासन सोचे।  

हमें जवाब देने का समय नहीं मिला : याचिकाकर्ता  

याचिकाकर्ताओं में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य लोग शामिल थे। उन्होंने कोर्ट को बताया कि शनिवार की रात उन्हें विध्वंस का नोटिस दिया गया और रविवार सुबह उनके घर तोड़ दिए गए। याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना था कि वे भूमि के वैध पट्टेदार थे और अपने पट्टे को फ्रीहोल्ड संपत्ति में बदलने के लिए आवेदन कर चुके थे।  

सरकार ने दी सफाई, लेकिन कोर्ट ने किया खारिज

राज्य सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने बचाव में कहा कि याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष रखने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए नोटिस भेजने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए।

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हाईकोर्ट में ट्रांसफर की मांग भी खारिज

राज्य सरकार ने इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि इस मामले की सुनवाई शीर्ष अदालत में ही होगी।  

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