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जबलपुर में मुख्यमंत्री की रैली के दौरान अधिग्रहण की गई बसों में डीजल डलवा कर उसके भुगतान न किए जाने का मामला अब मुख्यमंत्री तक पहुंचता नजर आ रहा है। हाईकोर्ट में इस मामले से संबंधित याचिका पर सुनवाई के दौरान कलेक्टर जबलपुर के द्वारा पेश किए गए हलफनामे से कोर्ट संतुष्ट नजर नहीं आया है। उन्होंने टिप्पणी करते हुए पूरे मामले को करप्शन का होना बताया है, साथ ही सुनवाई के दौरान मुख्यमंत्री के सचिव को भी प्रतिवादी बनाए जाने की चेतावनी दी है। जिसके बाद शासन की ओर से इसकी अपील भी चीफ जस्टिस की बेंच में की गई।
बसों के डीजल का नहीं हुआ भुगतान
दरअसल, जबलपुर में 3 जनवरी को आयोजित प्रदेश के मुख्यमंत्री की स्वागत कार्यक्रम के दौरान अधिकृत की गई बसों में एक निजी पेट्रोल पंप से 6 लाख रुपए का डीजल बसों में भरवाया गया था, जिसका भुगतान नहीं होने के कारण आईएसबीटी बस स्टैंड के पास स्थित निजी पेट्रोल पंप मालिक सुगम चंद्र जैन के द्वारा संबंधित अधिकारियों के द्वारा भुगतान न किए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर भुगतान करवाए जाने संबंधी गुहार लगाई थी।
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कोर्ट ने मांगा था कलेक्टर का हलफनामा
इस याचिका पर पहले हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने कलेक्टर से यह पूछा गया था कि बिना POL जारी किए याचिकाकर्ता के द्वारा बसों में कैसे डीजल भरा गया और संयुक्त कलेक्टर, निगम आयुक्त और जिला आपूर्ति अधिकारी के द्वारा POL की प्रतिपूर्ति करवाने के निर्देश दिए गए। कोर्ट के द्वारा इसे सार्वजनिक धन का दुरुपयोग बताते हुए अगली सुनवाई में कलेक्टर को व्यक्तिगत हलफनामे में यह बताने के लिए निर्देशित किया था कि किस कानून के तहत निगम आयुक्त का यह दायित्व है कि वह मुख्यमंत्री की रैली में लगी बसों में डीजल भरवाए। साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि इन सभी पहलुओं पर कलेक्टर जबलपुर के द्वारा जवाब दिया जाएगा नहीं तो किसी सक्षम अधिकारी के द्वारा इस पूरे मामले की जांच करवाई जाएगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि अब याचिकाकर्ता इस याचिका को वापस नहीं ले सकता है क्योंकि अब यह मामला हाई कोर्ट और जबलपुर कलेक्टर के बीच का है।
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कलेक्टर के हलफनामे पर जताया असंतोष
इस याचिका पर हुई सुनवाई के दौरान शासन की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट में बताया कि कलेक्टर के द्वारा अपना हलफनामा पेश कर दिया गया है जिस पर कोर्ट ने इस पर असंतोष जताते हुए कहा कि इस हलफनामे में यह स्पष्ट नहीं है कि किस मद से म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने इन बसों के डीजल का भुगतान करने के आदेश दिया था। शासन के अधिवक्ता ने कोर्ट में बताया कि नियमों के तहत वीआईपी या अन्य कार्यक्रमों के लिए निजी वाहनों का अधिग्रहण किया जा सकता है जिस पर कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए यह सवाल किया कि क्या रैली में भीड़ इकट्ठा करना जनहित का कार्य है? साथ ही कोर्ट के द्वारा पूछा गया कि आखिर अब तक याचिकाकर्ता को भुगतान क्यों नहीं किया गया।
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शासन को पक्ष रखने के लिए कोर्ट के आदेश
इस याचिका पर सुनवाई जस्टिस विवेक अग्रवाल की सिंगल बेंच हुई जिसमें सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ये मामला जनता के पैसों पर भ्रष्टाचार का नजर आ रहा है और इसमें प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत कार्रवाई किए जाने की बात कही। हाइकोर्ट ने इस मामले में मुख्यमंत्री के सचिव को भी प्रतिवादी बनाए जाने की चेतावनी दी है। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि शासन को अपना पक्ष रखने का अंतिम मौका दिया जाना चाहिए लिहाजा इस मामले की अगली सुनवाई में शासन को अपना पक्ष रखे जाने के लिए निर्देश जारी किए गए। इस मामले में अगली सुनवाई 18 मार्च 2025 को तय की गई है।
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चीफ जस्टिस की बेंच में पहुंची सरकार
राज्य शासन के द्वारा जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच से आए फैसले के तुरंत बाद इस फैसले के खिलाफ चीफ जस्टिस की बेंच में अपील दायर कर दी गई शासन की ओर से मौजूद अधिवक्ता के द्वारा चीफ जस्टिस को यह अवगत कराया गया कि रिट याचिका में कोर्ट की फाइंडिंग्स अब मुख्यमंत्री के सेक्रेटरी तक पहुंच रही है। इसलिए मामले की जल्द सुनवाई आवश्यक है। जिस पर चीफ जस्टिस के द्वारा इस अपील पर सुनवाई अगले दिन (7 मार्च 2025) के लिए तय की है लेकिन चीफ जस्टिस द्वारा भी एक सवाल शासन से पूछा गया कि आखिर पब्लिक को बसों के जरिए रैली तक पहुंचाना निजी वाहन अधिग्रहण के नियमों के तहत कैसे उचित ठहराया जा सकता है।