/sootr/media/media_files/2025/10/30/renting-house-india-2025-10-30-23-49-43.jpg)
New Delhi. भारत में माना जाता है कि 12 साल रहने से जमीन का मालिकाना हक मिल जाता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बिना एग्रीमेंट के रहना, चाहे 12 साल हो या 50, मालिकाना हक नहीं देता। यह अफवाह Adverse Possession (प्रतिकूल कब्जा) की गलत समझ से पैदा हुई है। आइए जानते है इस पूरे मामले को कोर्ट के 3 बड़े फैसलों से...
क्या है Adverse Possession?
Adverse Possession एक कानूनी नियम है, जो Limitation Act 1963 की धारा 65 में है। इस नियम के अनुसार, कोई व्यक्ति 12 साल तक गैरकानूनी कब्जा रखे और मालिक कार्रवाई न करे, तो वह संपत्ति का मालिक बन सकता है। लेकिन यह बहुत सख्त शर्तों के साथ आता है। यह तभी लागू होता है जब...
- कब्जा बिना इजाजत का हो
- मालिक को इसकी जानकारी हो और वो चुप रहे
- कब्जा लगातार 12 साल तक बना रहे
अगर किसी का कब्जा मालिक की अनुमति से शुरू हुआ है, तो वह Adverse Possession के तहत मालिक नहीं बन सकता। यह किराएदार या परिवार के सदस्य पर लागू होता है।
मध्यप्रदेश कांग्रेस में RTI प्रकोष्ठ की नई कार्यकारिणी की घोषणा, प्रदेशभर से नए चेहरे जोड़े
किराएदार के लिए ये नियम क्यों लागू नहीं होता?
किराएदार का रहना हमेशा मालिक की अनुमति से होता है। यह अनुमति लिखित या मौखिक हो सकती है। भले ही किराएदार 12 साल या ज्यादा समय तक रहे, उसका कब्जा "परमिशन बेस्ड" होता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इजाजत से शुरू हुआ कब्जा Adverse Possession नहीं बन सकता।
जस्टिस सूर्यकांत होंगे भारत के 53वें नए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, राष्ट्रपति ने की नियुक्ति
सुप्रीम कोर्ट के 3 बड़े फैसले...
1. विद्या देवी बनाम प्रेम प्रकाश (1995)
बेंच: जस्टिस वेंकटाचला, जस्टिस सागिर अहमद
क्या हुआ था- रघुनाथ की मौत के बाद उनकी जमीन तीन हिस्सों में बंटी। विधवा विद्या देवी और दो बेटों के बीच यह बंटवारा हुआ। विद्या देवी ने बाद में पार्टिशन सूट फाइल किया। वह चाहती थी कि उसका हिस्सा अलग किया जाए। एक बेटा, प्रेम प्रकाश, ने कहा कि वह 1953 से जमीन पर अकेले कब्जे में है। उसने यह दावा किया कि 12 साल पूरे होने पर वह अकेला मालिक बन गया है।
महिला वर्ल्ड कप क्रिकेट 2025: भारत फाइनल में, ऑस्ट्रलिया को 5 विकेट से हराया, जेमिमा ने बनाए 127 रन
क्या कहा था कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि को-ओनर का कब्जा परमिशन से शुरू होता है। इसलिए वह Adverse Possession नहीं बनता। अकेले खेती करना या रहना मालिकाना हक नहीं बनाता।
परिणाम क्या हुआ था
प्रेम प्रकाश का दावा खारिज हुआ। कोर्ट ने आदेश दिया कि विद्या देवी का हिस्सा अलग किया जाए।
शीतकालीन सत्र बढ़ाने की मांग: उमंग सिंघार बोले- जनता की आवाज दबाई नहीं, सुनी जानी चाहिए
2. बलवंत सिंह बनाम दौलत सिंह (1997)
बेंच: जस्टिस के. रामास्वामी, जस्टिस जी.टी. नानावटी
क्या हुआ था- दो भाइयों की साझा जमीन थी। एक भाई, बलवंत, 15 साल से अकेले कब्जे में था। उसने दावा किया कि उसने भाई को बाहर कर दिया। अब वह Adverse Possession से मालिक बन गया है।
क्या कहा था कोर्ट ने
सिर्फ अकेले रहने या इस्तेमाल करने से Adverse Possession साबित नहीं होती। को-ओनर को यह दावा करने के लिए ओस्टर का सबूत देना होगा। इसमें लिखित नोटिस, ताला लगाना या किराया मांगना शामिल है।
परिणाम क्या हुआ था
बलवंत ओस्टर साबित नहीं कर सका, इसलिए कोर्ट ने कहा कि पार्टिशन किया जाए।
3. हेमाजी बनाम भीकाभी (2008)
बेंच: जस्टिस एस.बी. सिन्हा, जस्टिस वी.एस. सिरपुरकर
क्या हुआ था- हेमाजी ने 30 साल तक एक दुकान किराए पर चलाई। लेकिन कोई एग्रीमेंट नहीं था। जब मालिक ने नोटिस भेजा, तो हेमाजी ने दावा किया कि वह अब Adverse Possession से मालिक बन गया है।
क्या कहा था कोर्ट ने
किराएदार का कब्जा हमेशा परमिशन बेस्ड होता है। चाहे लिखित एग्रीमेंट हो या न हो, मौखिक किराया भी अनुमति माना जाता है। इसलिए किराएदार कभी मालिक नहीं बन सकता।
परिणाम क्या हुआ
हेमाजी का दावा खारिज हुआ और दुकान मालिक को वापस मिल गई।
मालिकाना हक कब्जे नहीं
Supreme Court ने 1995, 1997 और 2008 के फैसलों में कहा। बिना एग्रीमेंट 12 साल रहने से घर आपका नहीं होता। किराएदार हमेशा किराएदार ही रहता है। को-ओनर को उसका हक मिलता है। मालिकाना हक रजिस्ट्री या वसीयत से मिलता है, कब्जे से नहीं।
/sootr/media/agency_attachments/dJb27ZM6lvzNPboAXq48.png)
/sootr/media/member_avatars/2024-09-01t100259252z-untitled-design.jpg )
 Follow Us
 Follow Us