संत रविदास जयंती आज, इंदौर ने बनाई देश की सबसे बड़ी संत रविदास प्रतिमा

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है। इस बार संत रविदास जी की जयंती 24 फरवरी यानी आज मनाई जा रही है। वाराणसी के पास एक गांव में जन्मे संत रविदास बेहद धार्मिक स्वभाव के थे।

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Pratibha Rana
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संत रविदास

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BHOPAL. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi ) ने संत रविदास की जन्मस्थली गोवर्धन में उनकी 25 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया। मूर्ति अनावरण के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ( Yogi Adityanath ) मौजूद रहे। मोदी ने जिस संत रविदास प्रतिमा का लोकार्पण किया, वह इंदौर में बनी है। ये प्रतिमा 25 फीट ऊंची और 5 टन वजनी है। संत रविदास की यह प्रतिमा देश में सबसे ऊंची है ( Sant Ravidas Statue )।

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इंदौर के मूर्तिकार ने तैयार की प्रतिमा

बता दें, संत रविदास की जयंती ( Sant Ravidas Jayanti ) पर उनकी जन्मस्थली पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अनावरण की गई मूर्ति इंदौर में तैयार की गई है। इस मूर्ति को इंदौर के मूर्तिकार महेंद्र कोटवानी ने अपने स्टूडियो पर 10 मूर्तिकारों के साथ एक साल की मेहनत से तैयार किया। पांच टन की इस प्रतिमा को बनाने के लिए पहले 8 इंच की मोम की प्रतिकृति बनाई गई थी। इसके लिए उत्तर प्रदेश के गुरु और संतों से गाइडेंस ली। वीडियो कॉल पर संत रविदास के फोटो दिखाए। इसमें संत की दाढ़ी, शॉल, हेयर स्टाइल, आंखें, होंठ, जूती और खास तौर पर आशीर्वाद देने की मुद्रा के बारे में बताया ( Sant Ravidas Statue Indore )। 

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जुलाई 2023 में स्टैच्यू का निर्माण शुरू हुआ

स्टैच्यू का निर्माण कार्य जुलाई 2023 में शुरू हुआ था। सबसे पहले 2 टन वजनी लोहे से स्ट्रक्चर बनाया गया। इसमें अलग तरह की घास भरी गई। फिर पीओपी से प्रतिमा का ढांचा तैयार किया और ब्रांस मटेरियल का उपयोग किया गया। अगली प्रोसेस में पूरे ढांचे पर मिट्‌टी (मॉडलिंग क्ले) का उपयोग किया गया। यह भाव नगर (गुजरात) से मंगवाया गया। इसके लिए क्ले के 500 बैग लगे। इसे गूंथने के लिए पानी का इस्तेमाल किया गया। चेहरा, दाढ़ी, शॉल, मुद्रा बारीकी से बनाई गई। 

इंदौर से वाराणसी पहुंचाने में हुआ इतना खर्च

स्टैच्यू को जनवरी में वाराणसी के लिए रवाना किया गया था। मूर्ति को फोम से पैक किया गया था। ट्रक में टायर बिछाए गए। 5 टन वजनी स्टैच्यू को क्रेन की मदद से प्रतिमा लेटाया गया। स्टैच्यू पांच दिनों में 1200 किमी का सफर तय कर वाराणसी पहुंचा। जानकारी के मुताबिक प्रतिमा को इंदौर से वाराणसी भेजने में 1 लाख रुपए का खर्चा आया थी। जबकि प्रतिमा की लागत 36 लाख रुपए आई है। 

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कौन थे संत रविदास ? 

संत रविदास मध्यकाल के सबसे बड़े भक्ति कवियों में शुमार थे। इनके कई रचे हुए दोहों को सिख गुरुओं ने अपने ग्रंथों में स्थान दिया है। मीरा भी संत रविदास को अपना गुरु मानती थीं। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है। इस बार संत रविदास जी की जयंती 24 फरवरी यानी आज मनाई जा रही है। वाराणसी के पास एक गांव में जन्में संत रविदास बेहद धार्मिक स्वभाव के थे। वे भक्तिकालीन संत और महान समाज सुधारक थे। उन्हें संत रविदास, गुरु रविदास, रैदास और रोहिदास जैसे कई नामों से जाना जाता है।

संत रविदास: एक प्रेरणादायक जीवन

संत रविदास 14वीं-15वीं शताब्दी के एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में से एक थे और उनके विचारों ने समाज को गहराई से प्रभावित किया।

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

संत रविदास का जन्म 1376 में वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कल्सा देवी था। वे चमार जाति से थे, जो उस समय समाज में सबसे निचले पायदान पर थी।

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शिक्षा और दर्शन:

संत रविदास ने रामानंदाचार्य से शिक्षा प्राप्त की। वे भक्ति आंदोलन से प्रेरित थे और उन्होंने ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति को अपना जीवन दर्शन बनाया। संत रविदास ने जाति-पांति और ऊंच-नीच के भेदभाव का विरोध किया। उन्होंने समाज में समानता और न्याय की स्थापना के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
संत रविदास का भारतीय इतिहास और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। उनके विचारों और रचनाओं ने समाज को एक नई दिशा दी। वे आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।

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