सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस ( CJI ) होना यानी देश के सबसे सम्मानजनक और जिम्मेदारी वाले पद पर बैठना होता है। इस पद पर पहुंचने के लिए हर वकील को सालों की मेहनत और निष्ठा लगती है। जरा सोचिए उस व्यक्ति को यहां तक पहुंचने में कितना परिश्रम लगा होगा, जिसने अपनी शुरुआत ही एक चपरासी के तौर पर की थी।
भारत में एक ऐसे चीफ जस्टिस भी रहे हैं जिनके पिता अनाथालय में बड़े हुए। परिवार गरीबी में जिया। खुद चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी रहे। पढ़ाई चालू रखी। चपरासी से क्लर्क बने, क्लर्क से वकील फिर जज और फिर सुप्रीम कोर्ट के 16 वें चीफ जस्टिस । ये कहानी है आजाद भारत में पैदा हुए पहले चीफ जस्टिस सरोश होमी कपाड़िया की ( biography of sarosh homi kapadia )।
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में करियर की शुरुआत
सरोश होमी कपाड़िया का जन्म 1947 में भारत को आजादी मिलने के 6 हफ्ते बाद हुआ था। वे एक पारसी परिवार से आते थे। उनके पिता एक रक्षा क्लर्क और मां गृहणी थी। उन्होंने लॉ की पढ़ाई मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से की थी।
करियर की शुरुआत एक चतुर्थ श्रेणी के प्यून के रूप में हुई। इस दौरान उनकी लॉ की पढ़ाई जारी थी। सरोश ने अपनी किस्मत बदलने की ठान रखी थी। वे बस एक चपरासी बनकर नहीं रहने वाले थे।
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वकालत की तरफ बढ़ाए कदम
सरोश होमी जैसी प्रतिभा ज्यादा दिन तक मामूली चपरासी बनकर नहीं रह सकती। वे जल्द ही क्लर्क बन गए और फिर एक वकील। वकील बनने के बाद भी उनके सपने पूरे नहीं हुए। कपाड़िया को अभी और ऊंचा उड़ना था। उन्होंने जज बनने के इम्तिहान दिए।
23 मार्च 1993 में सरोश होमी कपाड़िया की बॉम्बे हाईकोर्ट के जज के तौर पर नियुक्ति हुई। इसके 10 साल बाद 5 अगस्त 2003 को वे उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बन गए।
इसके बाद 12 मई 2010 को उन्होंने भारतीय सुप्रीम कोर्ट के 16वें चीफ जस्टिस के रूप में कार्यभार संभाला (Chief Justice of India Sarosh Homi Kapadia )। 2012 में वे सेवानिवृत्त हुए।
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चपरासी रहते की कानून की पढ़ाई
मुख्यन्यायाधीश सरोश होमी जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में बड़े-बड़े फैसले लिए हैं, वे कभी वकीलों को फाइलें पहुंचाते थे। चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी रहते हुए वकीलों तक कोर्ट केस की फाइलें पहुंचाते थे।
जब कपाड़िया ने यह काम शुरू किया तब उनकी लॉ की पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी। पढ़ाई पूरी उन्होंने बार में दाखिला ले लिया। बतौर जूनियर वकील वे फिरोज दमानिया के साथ जुड़े। वे गरीबों के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ते थे।
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पहले दिन आधे घंटे में निपटाए 39 मामले
सरोश होमी कपाड़िया के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने बतौर मुख्यन्यायाधीश पहले ही दिन आधे घंटे में 39 मामले निपटा दिए थे।
वे अपने काम के प्रति बेहद निष्ठावान थे और बहुत कम छुट्टियां लेते थे। हैदराबाद में उन्होंने एक बार कॉमनवेल्थ लॉ एसोसिएशन के कार्यक्रम का निमंत्रण इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि उस तारीख उनके कोर्ट में काम करने का दिन था।
मनमोहन सिंह को गलती स्वीकारने किया मजबूर
सरोश होमी ने बतौर सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस कई बड़े फैसले लिए। इसमें से एक में उन्होंने भारत के तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को झुका दिया था।
दरअसल 3 मार्च 2011 को कपाड़िया ने मुख्य सतर्कता आयुक्त पोलायल जोसेफ थॉमस की नियुक्ति को रद्द कर दिया गया था।
यह नियुक्ति तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह , गृह मंत्री पी. चिदंबरम और विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज (असहमति) की कमेटी ने की थी। कोर्ट के फैसले के बाद इस मामले में सरकार को काफी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी। पीएम मनमोहन सिंह ने अपनी गलती भी स्वीकारी थी।
4 जनवरी 2016 में 68 वर्ष की आयु में जस्टिस सरोश होमी कपाड़िया का निधन हो गया। उनका जीवन इस बात की शिक्षा है कि अगर कुछ करने की चाह है तो परिस्थितियां आपको रोक नहीं सकती। आपकी शुरुआत कहीं से भी हुई हो मंजिल का रास्ता आप स्वयं बना सकते हैं।