कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) पर गंभीर आरोप लगाए हैं। सोनिया ने कहा कि यह नीति भारत की शिक्षा व्यवस्था को कमजोर कर रही है और देश के बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रही है। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को केंद्रित, व्यवसायिक और सांप्रदायिक (centralisation, commercialisation, and communalisation) बताते हुए इस पर कड़ी आलोचना की।
89000 स्कूल बंद होने का मुद्दा
सोनिया गांधी ने अपने लेख में कहा कि मोदी सरकार के शासन में 89000 स्कूल बंद हो गए हैं, जो भारत के बच्चों के लिए एक बड़ा झटका है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकारों को शिक्षा के महत्वपूर्ण निर्णयों से बाहर किया जा रहा है, जिससे संघीय शिक्षा ढांचे को नुकसान हो रहा है।
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बीजेपी-आरएसएस से जुड़ी भर्ती पर सवाल
सोनिया गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि मोदी सरकार भाजपा और आरएसएस से जुड़े लोगों की बड़े पैमाने पर भर्ती कर रही है, जो शिक्षा के क्षेत्र में राजनीति को बढ़ावा दे रही है। उनका कहना है कि इससे शिक्षा प्रणाली में गुणवत्तापूर्ण बदलाव की उम्मीदें खत्म हो रही हैं और सरकार शिक्षा को व्यवसायीकरण की दिशा में ले जा रही है।
राज्य सरकारों के अधिकारों को किया कमजोर
सोनिया ने इस बात पर भी जोर दिया कि शिक्षा का व्यवसायीकरण और केंद्र सरकार के केंद्रीकरण ने राज्य सरकारों के अधिकारों को कमजोर कर दिया है। शिक्षा क्षेत्र में लगातार हो रहे बदलावों में राज्य सरकारों को पूरी तरह से बाहर रखा गया है, जिससे उनका प्रभाव कम हो गया है। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की बैठकें पिछले 11 सालों से नहीं हुई हैं, जो इस अनियंत्रित केंद्रीकरण का स्पष्ट संकेत है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर उठाए सवाल
सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर भी सवाल उठाए और कहा कि यह नीति भारत के बच्चों और युवाओं की शिक्षा के प्रति पूरी तरह से उदासीन है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने बिना राज्यों से परामर्श किए इस नीति को लागू कर दिया, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ।
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इन मुद्दों पर बोलीं सोनिया गांधी...
1. शिक्षा का व्यावसायीकरण : शिक्षा को एक व्यवसाय बना दिया गया है, जिससे छात्रों और उनके परिवारों पर वित्तीय दबाव बढ़ गया है।
2. 89,441 स्कूलों का बंद होना : सरकार ने पिछले वर्षों में 89,441 स्कूलों को बंद कर दिया है, जिससे शिक्षा का सुलभता में कमी आई है।
3. राज्यों की शक्तियों का हनन : राज्य सरकारों को शिक्षा नीति के फैसलों से बाहर रखा जा रहा है, जिससे संघीय ढांचे को नुकसान हो रहा है।
4. पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों में बदलाव : संविधान की प्रस्तावना को हटाना और महात्मा गांधी की हत्या जैसे महत्वपूर्ण विषयों को पाठ्यक्रम से हटाया गया है।
5. विश्वविद्यालयों में एकतरफा नियुक्तियां : विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की एकतरफा नियुक्तियाँ की जा रही हैं, जिससे उनकी स्वतंत्रता पर असर पड़ रहा है।
6. पेपर लीक और एनटीए-NAAC की विफलता : परीक्षा लीक होने की घटनाएं बढ़ गई हैं, और एनटीए और NAAC जैसी संस्थाओं की कार्यक्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।