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Photograph: (the sootr)
भारत में कार्यस्थल पर दुर्घटनाओं का शिकार होने वाले कर्मचारियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले से देश के हजारों ऐसे कर्मचारियों को फायदा होने की उम्मीद है, जो ऑफिस आते-जाते समय दुर्घटनाओं का शिकार हुए हैं।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी कर्मचारी के साथ उसके घर से ऑफिस जाते वक्त या वर्कप्लेस से घर लौटते वक्त दुर्घटना होती है, तो इसे कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के तहत नौकरी के दौरान और उसके कारण हुई दुर्घटना के रूप में माना जाएगा। इस फैसले से अब कर्मचारियों को उनके ऑफिस आने-जाने के दौरान हुए हादसों के लिए भी मुआवजा मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट का फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट के 2011 के फैसले के खिलाफ आया है। हाईकोर्ट में श्रमिक क्षतिपूर्ति आयुक्त के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि एक कर्मचारी की मृत्यु उसके ड्यूटी पर जाते समय हुई दुर्घटना में हो गई थी।
इस मामले में श्रमिक क्षतिपूर्ति आयुक्त एवं सिविल न्यायाधीश ने मृतक के परिजनों को 3,26,140 रुपए का मुआवजा ब्याज सहित देने का आदेश दिया था. हालांकि, बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मुआवजा आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि दुर्घटना कार्यस्थल पर नहीं हुआ इसलिए मुआवजा नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए, यह आदेश दिया कि अगर कोई कर्मचारी काम पर जाते समय दुर्घटना का शिकार होता है, तो उसे ड्यूटी पर माना जाएगा और इस पर कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम लागू होगा।
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कर्मचारियों को राहत देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐसे समझें👉 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के तहत घर से ऑफिस जाते वक्त या लौटते वक्त हुई दुर्घटनाओं को "नौकरी के दौरान हुई दुर्घटना" माना जाएगा। 👉 इस फैसले से कर्मचारी अब यात्रा करते समय हुई दुर्घटनाओं के लिए भी मुआवजा प्राप्त कर सकेंगे। 👉 सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 2011 के आदेश को पलटते हुए यह निर्णय लिया। 👉 न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने यह निर्णय दिया कि दुर्घटना के समय, स्थान और रोजगार के संबंध का निर्धारण किया जाएगा। 👉 यह फैसला कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 की धारा-3 के प्रावधानों के आधार पर दिया गया है, जो नियोक्ता के दायित्वों से संबंधित है। |
क्या था पूरा मामला?
इस मामले में मृतक एक चीनी मिल में चौकीदार के रूप में कार्यरत था। 22 अप्रैल 2003 को वह सुबह काम पर जाने के दौरान रास्ते में हादसे का शिकार हुआ और उसकी मृत्यु हो गई।
मृतक के परिवार ने कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के तहत दावे के लिए आवेदन किया था,जहां 3,26,140 रुपए का मुआवजा ब्याज सहित देने का आदेशश्रमिक क्षतिपूर्ति आयुक्त एवं सिविल न्यायाधीश ने दिया था। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले का गहनता से अध्ययन किया और निर्णय दिया कि ऑफिस आते-जाते समय होने वाली दुर्घटनाओं को भी "नौकरी के दौरान हुई दुर्घटना" के रूप में माना जाएगा।
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दुर्घटना में मुआवजा का महत्वपूर्ण पहलू
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया कि कार्यस्थल से ऑफिस आते-जाते वक्त हादसों के लिए कर्मचारियों को मुआवजा मिल सकता है, बशर्ते दुर्घटना का संबंध कर्मचारी के रोजगार से हो। उदाहरण के तौर पर, अगर कर्मचारी किसी दूरस्थ स्थान पर कार्य करने के लिए यात्रा कर रहा है, तो इसे "कार्यस्थल पर होने वाली दुर्घटना" के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 की धारा-3 क्या है?
कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 के अंतर्गत, जब कोई कर्मचारी कार्यस्थल पर किसी दुर्घटना का शिकार होता है, तो उसके लिए नियोक्ता जिम्मेदार होता है। यह अधिनियम नियोक्ता के लिए यह दायित्व तय करता है कि वह अपने कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की दुर्घटना या अपघात के कारण होने वाली हानि के लिए क्षतिपूर्ति प्रदान करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि "नौकरी के दौरान और उसके कारण हुई दुर्घटना" में केवल कार्यस्थल पर हुए हादसे नहीं, बल्कि घर से कार्यालय जाते वक्त या लौटते वक्त होने वाली दुर्घटनाओं को भी शामिल किया जाएगा, बशर्ते इन घटनाओं के घटित होने का समय, स्थान और रोजगार के साथ संबंध स्थापित किया जाए।
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