इंडिया बुल्स के MD को अवमानना नोटिस, 22 जुलाई को पेश होने के आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सम्मान कैपिटल लिमिटेड के प्रबंध MD के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू कर दी। यह कार्रवाई तब की गई जब अदालत ने पाया कि कंपनी ने कोर्ट के स्पष्ट स्थगन आदेश (stay order) के बावजूद एक घर खरीदार के खिलाफ ऋण वसूली की प्रक्रिया जारी रखी।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में सम्मान कैपिटल लिमिटेड (जिसे पहले इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड के नाम से जाना जाता था) के प्रबंध निदेशक के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है। शीर्ष अदालत ने यह कदम तब उठाया जब यह पाया गया कि कोर्ट द्वारा दिए गए स्पष्ट स्थगन (स्टे) आदेश के बावजूद कंपनी ने एक घर खरीदार के खिलाफ ऋण वसूली की प्रक्रिया जारी रखी। अदालत ने इसे न्यायालय के आदेश की खुली अवहेलना माना और कंपनी के एमडी को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होकर जवाब देने का निर्देश दिया है।
'बिल्डर-बैंक गठजोड़' पर पहले से सुप्रीम कोर्ट की पैनी नजर
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की शिकायत नहीं है बल्कि एक बड़े घोटाले की संभावित कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में रियल एस्टेट कंपनियों और बैंकों के बीच संदिग्ध गठजोड़ की जांच का आदेश सीबीआई को दे चुका है। कोर्ट ने यह टिप्पणी भी की थी कि कुछ बिल्डर कंपनियां और बैंक मिलकर उन घर खरीदारों से 'फिरौती' वसूल रहे हैं जो पहले से ही वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं। अब जब सम्मान कैपिटल का नाम इस संदर्भ में सामने आया है, तो यह संकेत मिलता है कि यह कंपनी भी इस संदिग्ध गठजोड़ का हिस्सा हो सकती है।
इस मामले में आवेदक के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना था कि न्यायालय द्वारा लोन वसूली पर रोक लगाने के बावजूद सम्मान कैपिटल ने अपनी वसूली प्रक्रिया बंद नहीं की, बल्कि और अधिक आक्रामक रवैया अपनाया। वकील ने यह भी आरोप लगाया कि कंपनी ने कुछ असामाजिक तत्वों को घर पर भेजकर खरीदार पर दबाव डालने का प्रयास किया, जिससे आवेदक और उसके परिवार को मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। यह आचरण न केवल अमानवीय है बल्कि सीधे तौर पर न्यायालय के आदेश का उल्लंघन भी है।
इस पूरे घटनाक्रम पर गौर करते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने सम्मान कैपिटल के प्रबंध निदेशक को कारण बताओ नोटिस जारी किया। पीठ ने कहा, "प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि कंपनी ने हमारे आदेश का पालन नहीं किया है, इसलिए यह निर्देश दिया जाता है कि एमडी अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हों और स्पष्ट करें कि उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत कार्रवाई क्यों न की जाए?" यह निर्देश न केवल उस व्यक्ति विशेष के लिए, बल्कि पूरे कॉरपोरेट जगत के लिए एक कड़ा संदेश है कि कोर्ट के आदेश की अवहेलना सहन नहीं की जाएगी।
सुनवाई के दौरान अदालत ने आवेदक को तत्काल अंतरिम राहत देते हुए यह भी स्पष्ट आदेश दिया कि उसके खिलाफ ऋण वसूली की कोई भी प्रक्रिया अब नहीं चलाई जाएगी। इस आदेश के साथ अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि जब तक यह मामला न्यायिक प्रक्रिया से नहीं गुजरता, तब तक आवेदक को किसी भी प्रकार की धमकी, दबाव या कानूनी कार्यवाही का सामना न करना पड़े। यह फैसला देशभर के उन हजारों घर खरीदारों के लिए आशा की किरण है, जो बैंकों और बिल्डरों की मिलीभगत से परेशान हैं।
अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 22 जुलाई 2025 तय की है। इस दिन सम्मान कैपिटल के एमडी को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होगा और अपने आचरण के लिए सफाई देनी होगी। यह सुनवाई महज एक कंपनी या एक वादी का मामला नहीं रह गया है, बल्कि अब यह संपूर्ण रियल एस्टेट और वित्तीय व्यवस्था की पारदर्शिता और जिम्मेदारी का परीक्षण बन गया है। घर खरीदार, सामाजिक कार्यकर्ता और आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञ इस फैसले को नज़दीकी से देख रहे हैं, क्योंकि इसका असर देशभर में चल रहे हजारों होम लोन मामलों पर भी पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह रुख बनेगा घर खरीदारों की ताकत
सुप्रीम कोर्ट का यह सख्त रवैया इस बात का स्पष्ट संकेत है कि अब घर खरीदारों की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। रियल एस्टेट कंपनियों और फाइनेंस संस्थानों को न्यायपालिका के आदेशों का सम्मान करना ही होगा, अन्यथा उन्हें कानूनी परिणामों का सामना करना पड़ेगा। यह मामला आने वाले समय में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है, जिससे प्रेरणा लेकर अन्य पीड़ित भी न्याय के लिए आगे आ सकें।