खजाने से करोड़ों उड़ाने वालों पर सरकार की नजरें इनायत, केस दर्ज कराया, वसूली भूली

मध्‍य प्रदेश में एक के बाद एक घोटाले-गड़बड़झाले उजागर हो रहे हैं। सरकारी खजाने की लूट के इन मामलों में विभागीय अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत हमेशा से चर्चा में रही है। बीते कुछ सालों में गबन और घोटालों की संख्या तेजी से बढ़ी है।

author-image
Sanjay Sharma
New Update
treasure-misuse-recovery-forgotten

Photograph: (the sootr)

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

BHOPAL. मध्यप्रदेश में एक के बाद एक घोटाले-गड़बड़झाले उजागर हो रहे हैं। सरकारी खजाने की लूट के इन मामलों में विभागीय अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत हमेशा से चर्चा में रही है। बीते कुछ सालों में गबन और घोटालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। ऐसे मामलों में अधिकारी शुरूआत में तो सक्रिय नजर आते हैं, लेकिन फिर दूसरे मामलों की तरह ये केस भी फाइलों में दबकर खो जाते हैं।

सरकार के खजाने से हुए करोड़ों के गबन की वसूली की किसी को फिक्र ही नहीं रहती। बीते पांच सालों में प्रदेश में अलग-अलग विभागों में घोटाले- गड़बड़झालों के दर्जन भर मामलों का खुलासा हुआ। जांच के बाद कुछ पर अपराध दर्ज हुए और फिर विभाग पुलिस की लंबी पड़ताल के भरोसे सब भूल गया। यानी उसे गबन-घोटालों में उड़ाए गए करोड़ों रुपए वसूलने की सुध ही नहीं रही। ऐसे मामलों की लंबी फेहरिस्त है। बीते सालों में गबन-घोटालों में सरकारी खजाने के 50 करोड़ से ज्यादा उलझे हैं लेकिन जिम्मेदारों को चिंता ही नहीं है। 

केस 1

प्रदेश में सरकारी खजाने की लूट के ऐसे मामलों की लंबी फेहरिस्त है। सबसे ताजा मामला जबलपुर स्थित लोक आडिट कार्यालय का है। यह कार्यालय सरकारी कर्मचारियों की भविष्यनिधि, वेतन, पेंशन का हिसाब_किताब संभालता है। पिछले दिनों एक बिल में हेराफेरी पकड़‍ में आने पर जब पड़ताल की गई तो घोटाले की परतें खुलीं। जांच में अब तक करीब 7 करोड़ रुपए का गबन सामने आ चुका है। ये रुपया सेवानिवृत्त, मृत कर्मचारियों की भविष्यनिधि और पेंशन फंड का था। गड़बड़झाले को लोकल आडिट संयुक्त संचालक के लॉग इन आईडी और पासवर्ड के जरिए अंजाम दिया गया है। विभाग, पुलिस अब इसकी पड़‍ताल कर रही है लेकिन सरकारी खजाने से गायब सात करोड़ की वसूली की याद किसी को नहीं है। 

यह भी पढ़ें... घरेलू कनेक्शन के बिजली बिलों में इतने रुपए भरेगी एमपी सरकार, इतने लोगों को मिलेगा फायदा

ऐसे उड़ाए सात करोड़

दरअसल साल की शुरूआत यानी दो महीने पहले जबलपुर ट्रेजरी में लोकल आडिट कार्यालय से एक बिल पहुंचा था। भुगतान के लिए आए इस बिल में अंक और शब्दों में अंतर नजर आने पर ट्रेजरी ने उसे लौटा दिया। इसके साथ ही गड़बड़ी की आशंका से गुपचुप जांच हुई तो 51 लाख के गबन का पता चला। अधिकारियों तक मामला पहुंचने पर जब इसे बारीकी से खंगाला गया तो 7 करोड़ रुपए विभाग के खातों से गायब थे। यह राशि उन सरकारी कर्मचारियों के नाम से उड़ाई गई जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं या मृतक हैं। रुपया लोक आयुक्त संयुक्त संचालक मनोज बरैया के आईडी और पासवर्ड का उपयोग करके दूसरे बैंक खातों में ट्रांसफर की गई थी। प्राथमिक पड़ताल में गबन के पीछे कम्प्युटर ऑपरेटर संदीप शर्मा, अमित मिश्रा और दो महिला कर्मचारियों की भूमिका संदेहास्पद पाई गई है। जिसके चलते उन्हें सस्पेंड कर दिया गया है। वहीं संयुक्त संचालक मनोज बरैया को लापरवाह मानते हुए भोपाल कार्यालय में अटैच किया गया है। लोकल आडिट कार्यालय में सात करोड़ के घोटाले के बाद कई दिनों तक खलबली मची रही। अधिकारियाों ने पुलिस कार्रवाई की अनुशंसा के बाद पल्ला झाड़ लिया। अब सब इस गबन को भूल चुके हैं। दो महीने से ज्यादा समय बीत गया है लेकिन सात करोड़ जैसी भारी भरकम रकम की वसूली को लेकर अधिकारी बेफिक्र हैं।

केस 2

शिवपुरी में साल 2018 से 2023 के बीच सात करोड़ से ज्यादा की सेंध सरकारी खजाने में लगाई गई थी। यह रुपया लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों की सैलरी फंड का था। जिला कोषालय यानी ट्रेजरी अधिकारी की शिकायत पर इस मामले में पीडब्लूडी के चार सेवानिवृत्त अधिकारियों सहित 15 पर अपराध दर्ज कराया गया है। घोटाले के मास्टरमाइंड की तलाश जारी, पुलिस ये भी पता लगाने में जुटी है कि आखिर इतनी बड़ी राशि को बैंक खातों में कैसे ट्रांसफर किया गया। वहीं पीडब्लूडी के अधिकारी विभाग के सात करोड़ को भूल चुके हैं। उन्हें इस राशि की वसूली की चिंता ही नहीं है। 

यह भी पढ़ें... एमपी के इस जिले में गहराया जलसंकट, कलेक्टर ने अब जारी किए ये ऑर्डर

कैसे हुआ करोड़ों का गबन

जिला कोषालय यानी ट्रेजरी विभागों से आने वाले बिल के दस्तावेज के आधार पर कर्मचारियों को वेतन का  भुगतान करता है। ये राशि उनके बैंक खातों में जमा हो जाती है। कोरोना संक्रमण काल और उसके बाद साल 2023 तक शिवपुरी ट्रेजरी द्वारा पीडब्लूडी से पहुंचे बिलों के आधार पर वेतन का भुगतान करता रहा। इस दौरान कोष एवं लेखा आयुक्त ने शिकायत और संदेह के चलते जांच कराई तो करोड़ों रुपए की गड़बड़ी पकड़ में आ गई। पांच साल की अवधि में सात करोड़ रुपए से ज्यादा का  गलत बैंक खातों में भुगतान किया गया था। ऐसा अधिकारियों के पासवर्ड और आईडी के जरिए किया गया था। पीडब्लूडी को जब सात करोड़ के गबन का पता चला तो विभाग में हड़कंप मच गया। विभागीय स्तर पर भी जांच कराई गई। पुलिस ने भी ट्रेजरी ऑफिसर की शिकायत पर पीडब्लूडी के चार पूर्व कार्यपालन यंत्री सहित 15 पर गबन का केस दर्ज किया था। दो साल बाद भी इसकी पड़ताल जारी है। पीडब्लूडी के सरकारी खजाने से सात करोड़ रुपए के गबन के मामले में चीफ इंजीनियर धर्मेन्द्र यादव, पूर्व में पदस्थ रहे कार्यपालन यंत्री ओमहरि शर्मा, जीबी मिश्रा, बीएस गुर्जर, हरिओम अग्रवाल को आरोपी हैं। वहीं पीडब्लूडी के आउडसोर्स कर्मचारी, संभागीय लेखा अधिकारी और  कुछ अन्य को भी आरोपी बनाया गया है। 

केस 3 

शिवपुरी_जबलपुर की तरह ही ग्वालियर में पीएचई यानी लोकस्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के खजाने में सेंध लगाई गई है। यहां विभाग के मृत कर्मचारियों के नाम पर दो साल तक वेतन का भुगतान होता रहा। कार्यापालन यंत्री संधारण खंड-1 में इस गड़बड़झाले में 16 करोड़ से ज्यादा का चूना लगा है। गबन के इस पूरे मामले में कुछ अधिकार और कर्मचारियों की भूमिका पर संदेह के बाद पुलिस केस दर्ज कर पड़ताल कर  रही है। दो साल बीत चुके है लेकिन बयान दर्ज करने से ज्यादा कुछ नहीं हो सका है। वहीं पुलिस ने पूछताछ के आधार पर उन बैंक खाता धारियों पर भी केस दर्ज किया है जिनके अकांउट में राशि जमा होती रही। 

यह भी पढ़ें... BHEL के रिटायर अधिकारी से धोखाधड़ी, साइबर ठगों ने लगाया 1.65 लाख का चूना, जानें कैसे हुई ठगी?

मरे कर्मचारियों को देते रहे वेतन

ग्वालियर स्थित पीएचई के संधारण खंड कार्यालय_1 से 300 से ज्यादा कर्मचारियों का वेतन भुगतान का बिल ट्रेजरी को भेजा जाता था। इसी के आधार पर कर्मचारियों के बैंक खातों में वेतन पहुंचता है। साल 2023में शिकायत के बाद विभागीय स्तर पर जांच की गई तो पता चला की 25 ऐसे कर्मचारियों के नाम से अलग_अलग बैंक खातों में वेतन जमा कराया जा रहा है जो पूर्व में ही मृत हो चुके हैं। पड़ताल में ऐसे करीब 75 बैंक खातों का पता ट्रेजरी से चलने के बाद पीएचई के कर्मचारी राहुल आर्य को गिरफ्तार कर पूछताछ की गई तो खुलासा हुआ। पीएचईकर्मी से पूछताछ में पता चला की दिलीप बंसल की मौत 2021 में हो चुकी थी लेकिन उसके मृत्यु प्रमाण पत्र को दबाकर वेतन जारी किया जा रहा था। दिलीप सहित अन्य मृत पीएचई कर्मियों के नाम से वेतन दूसरे बैंक खातों में पहुंचता था जिसे बाद में एक हिस्सा देकर वापस ले लिया जाता था। इस मामले में पुलिस अपराध दर्ज कर पड़‍ताल कर रही है। मामला कोर्ट में है लेकिन विभाग के 16 करोड़ में से कितना वसूला गया अब तक इसका हिसाब अधिकारी ही नहीं लगा पाए हैं।

यह भी पढ़ें... एमपी में अब पुलिस अधीक्षक कर सकेंगे जिले के अंदर DSP के तबादले

सरकारी खजाने की लूट की लंबी फेहरिस्त 

1. मंदसौर में उद्यानिकीअधिकारियों ने  कृषि उपकरण खरीदी में दी जाने वाली सब्सिडी में भी भ्रष्टाचार के अवसर खोज लिए। इस मामले में उज्जैन लोकायुक्त कार्यालय जांच  कर रहा है। साल 2017 से 2019 के बीच केंद्र और राज्य से मंदसौर जिले के लिए 3 करोड़ से ज्यादा का बजट दिया गया था। ये राशि किसानों को अनुदान के रूप में दी जानी थी। अधिकारियों ने किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी राशि सीधे कृषि यंत्र निर्माताओं के बैंक खातों में जमा कराई।  

2. ग्वालियर के डबरा में बीते साल विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय में भोपाल से पहुंची ऑडिट टीम ने आर्थिक गड़बड़ी पकड़ी थी। स्कूल शिक्षा विभाग से मिले 47 लाख रुपए सात बैंक खातों में मनमाने तरीके से ट्रांसफमर किए गए थे। इसी फंड से एक लाख रुपए तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी के निजी अकाउंट में भी ट्रांसफर हुए थे। वहीं एक बैंक अकाउंट में 17 लाख रुपए नियम विरुद्ध ट्रांसफर किए गए थे।   

3. उज्जैन की भैरवगढ़ केंद्रीय जेल में साल 2023 में जेलकर्मियों के जीपीएफ अकाउंट से 15 करोड़ का गबन सामने आया था। इसे जेल के सहायक लेखा अधिकारी रिपुदमन सिंह और प्रहरी शैलेन्द्र सिंह ने अंजाम दिया था। मामले में जेल अधीक्षक की भूमिका भी संदेह के घेरे में आई थी। तीन साल तक 100 जेलकर्मियों के जीपीएफ खातों से करोड़ों रुपए निकालकर दूसरे बैंक खातों में जमा किए गए लेकिन सिस्टम को इसकी भनक ही नहीं लगी थी। 15 करोड़ में से वसूली कितनी हुई अब इस पर अधिकारी चुप हैं।

मध्यप्रदेश समाचार Bhopal News मध्यप्रदेश सरकार mp hindi news bjp sarkar एमपी न्यूज हिंदी घोटाला