देश दुनिया न्यूज: सुप्रीम कोर्ट ने अपनी परंपराओं की ओर लौटते हुए दो महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। CJI बी. आर. गवई के नेतृत्व में पुराने प्रतीक चिह्न को पुनः बहाल किया गया है। यह प्रतीक न्यायिक गरिमा और परंपरा का प्रतीक माना जाता है। साथ ही कोर्ट परिसर के गलियारों से कांच के विभाजकों को हटाने का भी निर्णय लिया गया है। वकीलों की मांग और परंपरा के अनुरूप यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट के वातावरण को फिर से पारंपरिक गरिमा और पारदर्शिता देगा। कोर्ट ने बताया कि ये सुधार न्यायिक संस्कृति और कार्यप्रणाली को बेहतर और सुलभ बनाने के लिए हैं।
नया नहीं, अब फिर पुराना प्रतीक चिह्न
सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2024 में अपनी 75वीं वर्षगांठ पर नया प्रतीक चिह्न जारी किया था। इसमें अशोक चक्र, न्यायालय की इमारत और संविधान का चित्रण था। अब यह प्रतीक बदलकर पुराने स्वरूप में वापस आ गया है। पुराने प्रतीक की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है। इसे संस्कृत वाक्य “यतो धर्मस्ततो जयः” के साथ पारंपरिक न्यायिक मूल्यों का प्रतीक बताया गया है।
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कांच की दीवारों को हटाने का निर्णय
पूर्व CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ के कार्यकाल में कोर्ट की इमारत को आधुनिक बनाने के लिए गलियारों में कांच की दीवारें लगाई गई थीं। इसका मकसद वातानुकूलन को बेहतर बनाना था। वकीलों ने इसे कोर्ट की पारंपरिक खुली संरचना के खिलाफ बताया। अब कोर्ट ने इन कांच की दीवारों को हटाने का निर्णय लिया है। इससे सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में फिर से खुलापन और पारदर्शिता लौटेगी।
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वकीलों की संस्थाओं की बड़ी भूमिका
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित कई वकील संगठनों ने कांच की दीवारों को हटाने की मांग की थी। उनका मानना था कि कोर्ट की खुली गलियारा प्रणाली अधिक सुलभ, पारदर्शी और सहयोगात्मक है। इन संगठनों की लगातार अपील और परंपराओं की रक्षा के आग्रह के बाद यह निर्णय लिया गया, जो वकालत समुदाय के एक बड़े हिस्से की भावनाओं का सम्मान करता है।
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आगे और क्या बदलाव हो सकते हैं?
इन निर्णयों से संकेत मिलता है कि सुप्रीम कोर्ट भविष्य में और भी कई पारंपरिक पहलुओं को वापस ला सकता है। खासकर वे पहलू जो न्यायपालिका की मूल आत्मा और संस्कृति से जुड़े हैं। आधुनिक सुविधाएं जारी रहेंगी। लेकिन न्यायालय की पहचान और गरिमा सर्वोपरि बनी रहेगी।
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