भोपाल. प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के लिए खर्च का कोई मानक तय नहीं है। एक ही बीमारी के इलाज के लिए अलग-अलग बिल थमा दिया जाता है। अन्य शब्दों में कहें तो प्राइवेट अस्पतालों की मनमर्जी चल रही है। इसी मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने केंद्र सरकार से अस्पतालों में स्टैंडर्ड चार्ज पर फैसला करने को कहा है। अदालत ने 14 साल पुराने कानून क्लिनिकल स्थापना नियमों को लागू करने में केंद्र की नाकामी पर नाराजगी जताई है और चेतावनी दी है कि अगर सरकार स्टैंडर्ड रेट को अधिसूचित करने में विफल रहती है तो वो सरकारी रेट लागू पर विचार करेंगे
ऐसे समझें निजी और सरकारी अस्पतालों के चार्ज में अंतर
सरकारी अस्पताल में मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने में एक आंख के लिए लगभग 10 हजार तक का खर्च आ सकता है, जबकि निजी अस्पताल ( private hospital ) में यह खर्च 30 हजार से डेढ़ लाख रुपए तक जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की असमानता पर चिंता व्यक्त की और केंद्र सरकार को 14 साल पुराने कानून को लागू करने में नाकाम रहने के लिए फटकार लगाई। यह कानून है क्लिनिकल स्थापना नियम (केंद्र सरकार)। इस कानून के अनुसार, राज्यों के साथ विचार-विमर्श करके महानगरों, शहरों और कस्बों में इलाज और बीमारियों के इलाज के लिए एक मानक दर तय की जानी चाहिए थी।
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश
- सभी राज्यों में हॉस्पिटल्स के लिए एक स्टैंडर्ड चार्ज फिक्स किए जाएं। प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी फीस वसूली नहीं चलेगी।
- देश के सभी अस्पातलों को निर्देश दिया जाए कि सभी प्रकार के इलाज और सर्जरी के फिक्स रेट को वह मरीजों के लिए डिस्प्ले पर लगाएं।
- इलाज और सर्जरी का रेट डिस्प्ले स्क्रीन पर लोकल लैंग्वेज के साथ अंग्रेजी में लगाया जाए, ताकि मरीजों को इसकी जानकारी हो।
- नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा का मौलिक अधिकार है और केंद्र सरकार इस आधार पर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती।