भारत के खेतों में पेड़ लगे होना सिर्फ खेती की जरूरत ही नहीं परंपरा भी है। यह पेड़ एक तरफ मिट्टी के स्वास्थ्य और कार्बन भंडारण के लिए उपयोगी होते हैं। वहीं दूसरी तरफ खेतों में पेड़ों पर झूले बनाकर झूलने और नीम, पीपल के पेड़ों की पूजा करने की परंपरा भी भारत में बहुत पुरानी है। कृषि के नवीनीकरण के इस दौर में खेतों से पेड़ गायब होते जा रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 सालों में भारत के खेतों से कुछ 53 लाख छायादार पेड़ गायब हुए हैं। आपको जानकार हैरानी होगी कि इसमें एक बड़ा हिस्सा देश के सबसे स्वच्छ शहर और मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर का भी हैं। इंदौर के आस-पास कई ऐसे हॉटस्पॉट देखे गए हैं जहां के खेतों से भारी संख्या में पेड़ गायब हुए हैं।
खेतों में कम होते पेड़
भारत एक कृषि प्रधान देश है। खेती किसानों की रोजी-रोटी और देश के लोगों का भोजन है। इस खेती में तकनीक के चलते बदलावों का दौर चल रहा है। यह बदलाव एक तरफ जहां उत्पादन बढ़ा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ इससे कम होते पेड़ों की संख्या कोई अच्छा संकेत नहीं है। भारत के खेतों में पेड़ों की गणना और उनकी स्थिति देखते हुए डेनमार्क के कोपेनहेगन विश्वविद्यालय ( Copenhagen University Denmark ) से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक नया अध्ययन किया गया है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी ( Nature Sustainability ) में प्रकाशित हुए हैं।
इस शोधकर्ताओं ने भारत के खेतों में मौजूद 60 करोड़ पेड़ों का अध्ययन कर उनकी मैपिंग की है। इस अध्ययन के हिसाब से देश में प्रति हेक्टेयर पेड़ों की औसत संख्या 0.6 है। इनमें सबसे ज्यादा पेड़ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में देखे गए। यहां के कई इलाकों में प्रति हेक्टेयर पेड़ संख्या 22 तक दर्ज की गई। इन पेड़ों पर 10 वर्षों तक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में वृक्षारोपण के जरिए लगाए गए पेड़ों को शामिल नहीं किया गया है।
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कम होते पेड़ों पर अध्ययन
10 साल के इस अध्ययन के नतीजे आपको चौंका सकते हैं। 2010-11 में मैप किए गए करीब 11 फीसदी बड़े छायादार पेड़ 2018 तक गायब हो चुके थे। इस रिपोर्ट में और गौर किया जाए तो परिपक्व हुए पेड़ों के गायब होने की संख्या 5 से 10 प्रतिशत तक रही। तेलंगाना और महाराष्ट्र में परिपक्व पेड़ों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। इसके अलावा स्टडी में पाया गया कि 2018 से 2022 के बीच करीब 53 लाख पेड़ खेतों से गायब हो गए। यह सभी परिपक्व पेड़ थे। औसतन देखा जाए तो हर 1 किलोमीटर के क्षेत्र से 2.7 पेड़ गायब हुए। कुछ इलाकों में यह संख्या 50 पेड़ों के गायब होने तक की रही।
पेड़ कटाई का हॉटस्पॉट बना इंदौर
पेड़ों के खेतों से गायब होने के रिसर्च में मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर की हालत खराब पाई गई। रिपोर्ट में कई हॉटस्पॉट का जिक्र है, जहां के खेतों से 50 फीसदी तक के पेड़ गायब हुए हैं। इन क्षेत्रों में प्रति वर्ग किलोमीटर 22 पेड़ गायब हुए हैं। इन बड़े हॉटस्पॉट के अलावा कई छोटे हॉटस्पॉट भी उभर कर आए हैं जहां पेड़ों को खासा नुकसान हुआ है। यह पेड़ ज्यादातर मध्य भारत में इंदौर के आस-पास के हैं।
इसमें खास बात यह है कि इंदौर में पेड़ सिर्फ खेतों से गायब नहीं हो रहे। न ही पेड़ों के गायब होने की कहानी आज की है। इस शहर का एक प्रचलित रहवासी क्षेत्र नौलखा एक समय पर अपनी हरियाली के लिए जाना जाता था। होलकर राजवंश से लेकर अंग्रेजों के शासन काल तक इस इलाके को हरियाली के लिए ही रखा गया। लेकिन आज यह इलाका एक रहवासी क्षेत्र बनकर रह गया है। यह इंदौर की हरियाली और पेड़ों के लिए बिलकुल अच्छा संकेत नहीं है।
खेतों में पेड़ों के ना होने से नुकसान
खेतों में कुछ खास पेड़ सालों से देखे गए हैं। नीम, महुआ, जामुन, कटहल, खेजड़ी (शमी), बबूल, शीशम, करोई, नारियल जैसे पेड़ अक्सर खेतों में लगे होते थे। छाया और फल देने के अलावा यह खेती के लिए भी बड़े फायदेमंद होते हैं। यह पेड़ मिट्टी की उर्वरता बनाए रखते हैं। इसके अलावा इन पेड़ों के जरिए किसानों को फल, लकड़ी, चारा, दवा, जलावन जैसे उपयोगी उत्पाद मुफ्त में मिल जाते हैं। खेतों से पेड़ों के गायब हो जाने से यह सुविधा भी किसानों से छूट रही है। कहीं ना कहीं किसान अपना ही नुकसान कर रहे हैं।
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पेड़ों के गायब होने की वजह
कोपेनहेगन विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने देश के खेतों से पेड़ों के गायब होने की वजह पर भी स्टडी की। इस स्टडि में खेतों से पेड़ों के गायब होने की वजह चिन्हित की गई है-
- खेती के तौर तरीकों में बदलाव आने के कारण, खेतों में लगे पेड़ों को किसानों द्वारा फसलों के लिए हानिकारक माना जा रहा है।
- खेतों में सिंचाई के लिए कई तरह के आधुनिक संसाधनों का प्रयोग किया जा रहा है। इन संसाधनों की खेती में जगह बनाने के लिए किसान खेतों में लगे पेड़ों को काट रहे हैं।
- किसानों को यह भी लगता है कि नीम जैसे छायादार पेड़ उनकी फसलों की पैदावार के लिए हानिकारक है।
इसके अलावा शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि खेतों में पेड़ों की घटती संख्या के पीछे जलवायु परिवर्तन नहीं है। ग्रामीणों का मानना है कि खेतों में देशी पेड़ दुर्लभ हो गए हैं। खुद किसान भी इस बात को मानते हैं कि पेड़ों की घटती संख्या का कारण जलवायु परिवर्तन नहीं है। ऐसे में यह तो साफ है कि पेड़ों की घटती संख्या के पीछे की वजह मानव की लालच है।
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