चारधाम यात्रा में सबसे पहले किस धाम के करना चाहिए दर्शन, जानिए क्या है वजह

चारधाम यात्रा एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक यात्रा है, जो चार पवित्र स्थलों- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ती है। जानें यात्रा के स्थान, महत्व और यात्रा टिप्स।

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Kaushiki
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चारधाम यात्रा की शुरुआत 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया से शुरू होगी। लाखों श्रद्धालु पहले ही इस पवित्र यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं। चारधाम यात्रा में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ ये चार महत्वपूर्ण स्थल श्रद्धालुओं के लिए एक अद्भुत धार्मिक अनुभव देते हैं।

बता दें कि, पहले यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट खोले जाएंगे, इसके बाद 2 मई को केदारनाथ और 4 मई को बद्रीनाथ के कपाट खुलेंगे। यह यात्रा न केवल आध्यात्मिक शांति की खोज का अवसर है, बल्कि यह हिमालय की अपूर्व सुंदरता के बीच एक अद्भुत यात्रा भी है।

माना जात है कि, इस यात्रा के माध्यम से लोग अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति की उम्मीद करते हैं। आइए जानें इस यात्रा के महत्व को...

चारधाम यात्रा क्या है

चारधाम यात्रा एक धार्मिक यात्रा है, जिसमें चार पवित्र तीर्थ स्थल- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, और बद्रीनाथ शामिल हैं। ये सभी स्थान उत्तराखंड में स्थित हैं और हिंदू धर्म में इनका विशेष महत्व है। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, चारधाम यात्रा का उद्देश्य भक्तों को आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति दिलाना है। ये यात्रा से न केवल शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है, बल्कि यह यात्रा भव्य हिमालयों की सुंदरता को भी निहारने का मौका देती है।

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यात्रा का महत्व

इस यात्रा को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र धार्मिक यात्रा माना जाता है। इसके महत्व को समझने के लिए इन बिंदुओं को जानना आवश्यक है:

मोक्ष और आत्मिक शुद्धि

धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, यह यात्रा व्यक्ति को अपने पापों से मुक्ति दिलाने और मोक्ष की प्राप्ति में मदद करती है। माना जाता है कि इस यात्रा के माध्यम से आत्मा को शुद्धि मिलती है और वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है।

पवित्र नदियों से जुड़ाव

प्रत्येक चारधाम स्थल एक पवित्र नदी से जुड़ा हुआ है:

  • यमुनोत्री – यमुन नदी
  • गंगोत्री – गंगा नदी
  • केदारनाथ – मंदाकिनी नदी
  • बद्रीनाथ – अलकनंदा नदी
  • मान्यता के मुताबिक, इन नदियों में स्नान करने से आत्मा शुद्ध होती है और व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।

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भगवान शिव और भगवान विष्णु का आशीर्वाद

  • केदारनाथ भगवान शिव को समर्पित है।
  • बद्रीनाथ भगवान विष्णु को समर्पित है।
  • इन मंदिरों की यात्रा से भक्तों को भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनका जीवन सुधरता है।
  • समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ाव
  • चारधाम यात्रा हिंदू धर्म की प्राचीन परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ने का एक अद्भुत अवसर है।

यात्रा की शुरुआत कहा से होती है

मान्यता के मुताबिक, चारधाम यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री से करनी चाहिए और अंत बद्रीनाथ पर करना सबसे अच्छा माना जाता है।

यात्रा की शुरुआत:

  • यमुनोत्री से यात्रा शुरू करें, क्योंकि यहां यमुनाजी का जन्म स्थान है और यहां स्नान करने से पापों का नाश होता है।
  • फिर गंगोत्री जाएं, जहां गंगा नदी का स्रोत है। यहां पूजा करने से शुद्धि मिलती है और जीवन में सकारात्मकता आती है।

यात्रा का अंत:

  • केदारनाथ जाएं, जो भगवान शिव का धाम है। यह यात्रा आपके आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी होती है।
  • अंत में बद्रीनाथ पर जाएं, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है।
  • इस तरह, यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री से करें और समाप्ति बद्रीनाथ पर हो, तो यात्रा पूरी होती है।

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यात्रा के प्रमुख स्थल

यमुनोत्री - यमुन नदी का स्रोत

यमुनोत्री, यमुन नदी का उद्गम स्थल है और यह समुद्रतल से 3,293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां स्थित यमुनोत्री मंदिर माता यमुनाजी को समर्पित है। भक्त यहां गर्म जल के स्रोत में स्नान करते हैं, जिससे पापों की शुद्धि होती है।

गंगोत्री - गंगा नदी का स्रोत

गंगोत्री, गंगा नदी के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थल समुद्रतल से 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और गंगोत्री मंदिर में देवी गंगा की पूजा की जाती है।

केदारनाथ - भगवान शिव का स्थल

केदारनाथ, भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध है और यह समुद्रतल से 3,583 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां केदारनाथ मंदिर है, जो पांडवों द्वारा बनवाया गया था।

बद्रीनाथ - भगवान विष्णु का स्थल

बद्रीनाथ, भगवान विष्णु को समर्पित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जो 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां बद्रीनाथ मंदिर है, जहां भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

यात्रा के लिए उपयुक्त समय

इस यात्रा का सबसे उपयुक्त समय मई से नवंबर के बीच होता है। इस समय मौसम अनुकूल रहता है और तीर्थ यात्रा के मार्गों पर यात्रा करना आसान होता है।

  • मई से जून (गर्मी का मौसम) – यात्रा के लिए आदर्श समय।
  • जुलाई से सितंबर (मानसून) – यह समय थोड़ा जोखिमपूर्ण हो सकता है, क्योंकि बारिश के कारण रास्ते प्रवाहहीन हो सकते हैं।
  • सितंबर से नवंबर (पतझड़ का मौसम) – यह समय भी यात्रा के लिए उपयुक्त है क्योंकि मौसम ठंडा और आरामदायक रहता है।

यात्रा के लिए टिप्स

  • यात्रा से पहले एक स्वास्थ्य चेकअप जरूर कराएं, क्योंकि यह यात्रा शारीरिक रूप से थका देने वाली हो सकती है।
  • यात्रा के लिए आवश्यक सामान पैक करें, जिसमें गर्म कपड़े, ट्रैकिंग जूते, रेन गियर, प्राथमिक चिकित्सा किट और अन्य जरूरी सामान शामिल हो।
  • मार्ग में किसी भी स्वास्थ्य समस्या का सामना करते समय स्थानीय डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
  • यात्रा के दौरान पानी की भरपूर मात्रा पीने और यदि ट्रैकिंग में समस्या हो, तो घोड़े या पालकी का इस्तेमाल करें।

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