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Dakshineswar Kali Temple:इस समय देशभर में शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। इन नौ दिनों में भक्तगण मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना करते हैं और शक्ति के जागृत स्थानों पर अपनी श्रद्धा व्यक्त करने जाते हैं।
ऐसे मे आज हम आपको एक ऐसे ही अत्यंत पूज्यनीय धार्मिक स्थल के बारे में बताने जा रहे हैं जो न केवल देवी मां के शक्ति स्वरूप का केंद्र है बल्कि यह महान संत रामकृष्ण परमहंस की कर्मभूमि भी रहा है।
यह है पश्चिम बंगाल का प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर जिसे भवतारिणी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ये पश्चिम बंगाल के कोलकाता के पास हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित एक अत्यंत प्रसिद्ध और पूज्यनीय धार्मिक स्थल है। आइए इनकी पौराणिक कथा और मान्यताओं के बारे में जानें...
पौराणिक कथा और मान्यताएं
शक्तिपीठ से संबंध
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, दक्षिणेश्वर काली मंदिर को एक जागृत शक्तिपीठ माना जाता है। हालांकि यह 51 शक्तिपीठों की मुख्य सूची में हमेशा शामिल नहीं होता है पर इसकी महत्ता शक्तिपीठों जितनी ही है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि, जब भगवान विष्णु ने शिव के तांडव को शांत करने के लिए माता सती के शरीर के 51 टुकड़े किए थे तो मां के दाएं पैर की चार उंगलियां इसी पवित्र भूमि पर गिरी थीं। यही कारण है कि यह स्थान शक्ति की उपासना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
रानी रासमणि का स्वप्न
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, मंदिर की स्थापना की कहानी रानी रासमणि की गहरी भक्ति और एक दिव्य स्वप्न से जुड़ी हुई है। 19वीं शताब्दी में रानी रासमणि, जो जान बाजार की एक धनी जमींदार और समाज सेविका थीं भगवान शिव की नगरी वाराणसी की तीर्थयात्रा के लिए तैयारी कर रही थीं।
यात्रा से ठीक एक रात पहले, उन्हें स्वप्न में मां काली ने दर्शन दिए। मां काली ने उनसे कहा: "तुम्हें वाराणसी जाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
तुम गंगा (हुगली) के तट पर मेरी एक सुंदर प्रतिमा स्थापित करो और मेरा मंदिर बनवाओ। मैं उसी प्रतिमा में प्रकट होकर भक्तों की पूजा स्वीकार करूंगी।"
इस स्वप्न से रानी रासमणि अत्यंत प्रभावित हुईं और उन्होंने तत्काल वाराणसी जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया। उन्होंने गंगा किनारे मंदिर निर्माण के लिए भूमि की तलाश शुरू की।
फिर दक्षिणेश्वर में 25 एकड़ जमीन खरीदी, जिसका कुछ हिस्सा मुस्लिम कब्रिस्तान और कुछ हिस्सा एक यूरोपीय व्यक्ति का था। यह जमीन कछुए के कूबड़ के आकार की थ, जिसे तंत्र परंपराओं के मुताबिक शक्ति पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस प्रकार विभिन्न धर्मों की जमीन पर मंदिर का निर्माण धार्मिक एकता के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।
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रामकृष्ण परमहंस और भवतारिणी
इस मंदिर की सबसे बड़ी आध्यात्मिक मान्यता इसके पुजारी रहे महान संत रामकृष्ण परमहंस से जुड़ी है। रानी रासमणि के दामाद के सुझाव पर रामकृष्ण परमहंस (तब गदाधर चट्टोपाध्याय) के बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय को मंदिर का प्रधान पुजारी नियुक्त किया गया।
रामकुमार की मृत्यु के बाद, स्वयं रामकृष्ण परमहंस ने मंदिर की सेवा संभाली। रामकृष्ण परमहंस के लिए मां काली केवल पत्थर की मूर्ति नहीं थीं; वे उन्हें साक्षात जीवित मां मानते थे।
उन्होंने यहीं पर गहन साधना की और माना जाता है कि उन्हें कई बार मां काली के प्रत्यक्ष दर्शन हुए और वे मां से बातचीत भी करते थे।
उनकी अटूट भक्ति और आध्यात्मिक अनुभवों ने इस स्थान को एक सिद्ध धाम और दुनिया भर के भक्तों के लिए एक अद्वितीय तीर्थस्थल बना दिया।
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मंदिर की संरचना और वास्तु-कला
निर्माण कार्य
- दक्षिणेश्वर काली माता मंदिर (कोलकाता की हुगली नदी) का निर्माण कार्य 1847 ईस्वी में शुरू हुआ और इसे पूरा होने में लगभग आठ वर्ष लगे। यह मंदिर 31 मई 1855 को स्नान यात्रा के शुभ दिन पर भक्तों के लिए खोला गया था।
वास्तुकला शैली (नवरत्न)
यह मंदिर बंगाल की पारंपरिक 'नवरत्न' (नौ शिखर) वास्तुकला शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
मुख्य मंदिर: यह तीन मंजिला है, जो लगभग 46 फीट चौड़ा और 100 फीट से अधिक ऊंचा है। इसकी सबसे ऊपरी दो मंजिलों पर नौ शिखर बने हुए हैं, जो इसे एक विशिष्ट भव्यता प्रदान करते हैं।
गर्भ गृह: मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में मां काली की मनमोहक मूर्ति 'भवतारिणी' के रूप में स्थापित है। इस मूर्ति में देवी काली, अपने संहारक रूप में, भगवान शिव के वक्षस्थल पर खड़ी दिखाई देती हैं।
प्रतिमा का आधार: मां भवतारिणी और भगवान शिव की मूर्तियां शुद्ध चांदी से बने एक हजार पंखुड़ियों वाले कमल पुष्प पर स्थापित हैं, जो देवी की शक्ति और पवित्रता का प्रतीक है।
मंदिर परिसर
लगभग 25 एकड़ के विशाल परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण संरचनाएं भी हैं:
द्वादश शिव मंदिर: मुख्य मंदिर के पूर्व दिशा में हुगली नदी के किनारे एक पंक्ति में बारह एक जैसे छोटे शिव मंदिर स्थापित हैं, जो बारह ज्योतिर्लिंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन मंदिरों का निर्माण बंगाली 'आठ-चाला' (आठ ढलान वाली छत) शैली में किया गया है।
राधा-कृष्ण मंदिर: परिसर के उत्तर-पूर्व कोने में 'राधाकांत मंदिर' है, जो भगवान कृष्ण और राधा को समर्पित है।
रामकृष्ण परमहंस का कमरा (कथाघर): मंदिर परिसर में वह छोटा कमरा आज भी सुरक्षित है, जहां श्रीरामकृष्ण परमहंस अपनी पत्नी शारदा देवी के साथ रहे और अपनी तपस्या की। इस कमरे में उनका पलंग और कुछ निजी वस्तुएं रखी हैं, जो भक्तों के लिए एक पूज्यनीय स्थल है।
पंचवटी: यहां पांच पवित्र बरगद के पेड़ लगाए गए थे, जहाँ रामकृष्ण परमहंस ध्यान और साधना करते थे।
रानी रासमणि की समाधि: मंदिर परिसर के भीतर ही रानी रासमणि की समाधि भी मौजूद है।
नटमंदिर: मुख्य मंदिर के सामने एक विशाल सभा कक्ष है, जहाँ धार्मिक आयोजन होते हैं।
कुछ और जरूरी बातें
मुख्य देवी: इस मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां भवतारिणी हैं, जो मां काली का ही एक सौम्य रूप मानी जाती हैं। हालांकि उनकी मुद्रा शिव के वक्ष पर खड़ी होने के कारण शक्ति और संहार दोनों को दर्शाती है।
सामाजिक समरसता: मंदिर की संस्थापक रानी रासमणि ने इसे सभी जातियों और धर्मों के लोगों के लिए खोल दिया था, जो उस समय की सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ एक प्रगतिशील कदम था।
नदी का महत्व: यह मंदिर हुगली नदी के तट पर स्थित है, जिसे यहां गंगा के रूप में पूजा जाता है। भक्त पूजा से पहले नदी में स्नान करना पवित्र मानते हैं।
आध्यात्मिक केंद्र: यह मंदिर न केवल मां काली की पूजा का केंद्र है, बल्कि रामकृष्ण मठ और मिशन के संस्थापक स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस की गहन साधना स्थली होने के कारण एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक और दार्शनिक केंद्र भी है।
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कैसे पहुंचे दक्षिणेश्वर काली मंदिर
दक्षिणेश्वर काली मंदिर कोलकाता से लगभग 13 किलोमीटर उत्तर में हुगली नदी के तट पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए तीनों प्रमुख मार्ग उपलब्ध हैं:
मेट्रो रेल द्वारा
यह मंदिर पहुंचने का सबसे तेज और सुविधाजनक तरीका है।
स्टेशन: दक्षिणेश्वर मेट्रो स्टेशन।
मार्ग: यह स्टेशन कोलकाता मेट्रो की ब्लू लाइन (ब्लू लाइन) का अंतिम स्टेशन है।
सुविधा: स्टेशन से मंदिर का मुख्य द्वार पैदल केवल 5-10 मिनट की दूरी पर है, क्योंकि यह सीधे स्काईवॉक से जुड़ा हुआ है।
लोकल ट्रेन द्वारा
स्टेशन: दक्षिणेश्वर रेलवे स्टेशन (Dakshineswar Railway Station)।
मार्ग: यह स्टेशन सियालदह या हावड़ा जंक्शन से आने वाली लोकल ट्रेनों के मार्ग पर स्थित है। सियालदह या दमदम से यहाँ के लिए नियमित लोकल ट्रेनें चलती हैं।
सुविधा: रेलवे स्टेशन से मंदिर परिसर तक पैदल या रिक्शा/ऑटो से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
सड़क मार्ग द्वारा
बस: कोलकाता शहर के विभिन्न हिस्सों से दक्षिणेश्वर के लिए नियमित बसें चलती हैं।
टैक्सी/कैब: आप पूरे कोलकाता शहर से मंदिर तक टैक्सी (पीली टैक्सी) या ऐप-आधारित कैब (जैसे उबर/ओला) किराए पर ले सकते हैं।
ऑटो रिक्शा: नजदीकी स्थानों, जैसे दमदम या बाराकपुर से दक्षिणेश्वर के लिए साझा और आरक्षित ऑटो-रिक्शा आसानी से उपलब्ध होते हैं।
जल मार्ग द्वारा
जलयान सेवा: हुगली नदी के पार, बेलूर मठ से दक्षिणेश्वर तक आप फेरी या नाव सेवा का उपयोग करके भी पहुंच सकते हैं। यह मार्ग सुंदर और दर्शनीय होता है।
स्थान: दक्षिणेश्वर घाट पर उतरकर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
सुझाव: यदि आप पहली बार जा रहे हैं और भीड़ से बचना चाहते हैं, तो मेट्रो रेल का उपयोग करना सबसे अच्छा विकल्प है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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