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शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व 22 सितंबर से शुरू हो चुका है और इस दौरान हर कोई देवी की भक्ति में लीन है। इस शुभ अवसर पर देशभर के श्रद्धालु माता रानी की सेवा में व्यस्त हैं।
ऐसे में आज हम आपको भारत के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक, मां वैष्णो देवी के दरबार की यात्रा के बारे में बताते हैं। जम्मू और कश्मीर राज्य में त्रिकुटा पर्वत की गोद में स्थित मां वैष्णो देवी का यह पवित्र धाम, हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है।
हर साल लाखों भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर इस दुर्गम यात्रा को पूरा करते हैं। यह यात्रा सिर्फ एक शारीरिक चुनौती नहीं, बल्कि एक गहरा और आध्यात्मिक अनुभव भी है।
मां वैष्णो देवी का ऐतिहासिक महत्व
मां वैष्णो देवी का इतिहास सदियों पुराना है और यह कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। यह माना जाता है कि मां वैष्णो, देवी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का संयुक्त अवतार हैं। उनका उद्देश्य पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करना और बुराई का नाश करना था।
पौराणिक कथाएं
एक प्रसिद्ध कथा के मुताबिक, माता वैष्णो देवी ने पृथ्वी पर एक मानव रूप में जन्म लिया था ताकि वे धर्म की रक्षा कर सकें। उनका जन्म दक्षिण भारत में रत्नाकर सागर के घर हुआ था जिन्होंने उन्हें त्रिकुटा नाम दिया था।
बचपन से ही त्रिकुटा की आध्यात्मिक प्रवृत्ति बहुत प्रबल थी। एक बार, भगवान राम ने उन्हें एक तपस्वी के रूप में दर्शन दिए और उन्हें त्रिकुटा पर्वत पर ध्यान करने का निर्देश दिया।
उन्होंने उन्हें यह भी वचन दिया कि कलियुग में जब उनका नाम भगवान विष्णु के अवतार के रूप में विख्यात होगा तब त्रिकुटा वैष्णो देवी के रूप में पूजी जाएंगी।
भैरवनाथ की कथा
मां वैष्णो देवी की कहानी भैरवनाथ के उल्लेख के बिना अधूरी है। भैरवनाथ, एक तांत्रिक ने माता वैष्णो देवी को पहचान लिया और उन्हें अपनी शक्ति से प्राप्त करने की कोशिश की।
माता ने उनसे भागकर अपनी पवित्रता और तपस्या की रक्षा करने का प्रयास किया। भैरवनाथ उनका पीछा करते हुए त्रिकुटा पर्वत तक आए। माता ने कई स्थानों पर विश्राम किया, जिन्हें आज भी भक्तों द्वारा पवित्र माना जाता है जैसे कि बाणगंगा, चरण पादुका और अर्धकुमारी।
अंतिम में एक गुफा में मां वैष्णो देवी ने भैरवनाथ का वध किया। अपनी मृत्यु के समय, भैरवनाथ ने अपनी गलती का एहसास किया और मां से क्षमा मांगी।
माता ने उन्हें क्षमा कर दिया और यह वरदान दिया कि उनकी यात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाएगी जब तक कि भक्त उनके दर्शन के बाद भैरवनाथ मंदिर के दर्शन न कर लें।
पवित्र गुफा की यात्रा
भैरों नाथ वैष्णवी का पीछा करते रहे। इस दौरान, वैष्णवी ने कई स्थानों पर विश्राम किया, जो आज भी भक्तों के लिए तीर्थस्थल हैं।
बाण गंगा: जब वैष्णवी को प्यास लगी, तो उन्होंने अपने धनुष से जमीन पर एक तीर चलाया। वहाँ से एक पवित्र जलधारा निकली, जिसे आज बाण गंगा के नाम से जाना जाता है।
चरण पादुका: भैरों नाथ से बचने के लिए, वैष्णवी ने एक चट्टान पर अपने चरण चिह्न छोड़े। यह स्थान आज 'चरण पादुका' के नाम से जाना जाता है, जहां भक्त माता के चरणों के दर्शन करते हैं।
अर्धकुंवारी गुफा: वैष्णवी ने एक गुफा में नौ महीने तक ध्यान किया, जिसे आज अर्धकुंवारी कहा जाता है।
पवित्र गुफा: अंत में, वैष्णवी एक गुफा में पहुंची, जहां भैरों नाथ ने उनका पीछा करना जारी रखा। जब भैरों नाथ ने वैष्णवी को घेर लिया, तो वैष्णवी ने काली का रूप धारण किया और भैरों नाथ का वध कर दिया।
वैष्णो देवी का अंतिम रूप
इसके बाद, वैष्णवी ने अपने शरीर को तीन पिंडी (पिंड-समोहित रूप) में बदल दिया। ये तीन पिंडियां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का प्रतीक हैं और भक्त आज भी पवित्र गुफा में इन्हीं पिंडियों के दर्शन करते हैं।
मां वैष्णो देवी का मुख्य मंदिर एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है। गुफा के अंदर मां की तीन पवित्र पिंडियां हैं जो उनकी तीन शक्तियों - महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का प्रतिनिधित्व करती हैं।
इन पिंडियों को ही मां वैष्णो देवी का स्वरूप माना जाता है और भक्तों को इन्हीं के दर्शन होते हैं। गुफा के भीतर भक्तों को पवित्र जल से स्नान करना पड़ता है, जिसे यहां चरण गंगा कहा जाता है। यह जल यात्रा की थकान को दूर करने और मन को शुद्ध करने में मदद करता है।
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मंदिर की संरचना और दर्शन प्रक्रिया
गुफा तक पहुंचने के लिए, भक्तों को कटरा से लगभग 12 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है। यह यात्रा पैदल, घोड़े, पालकी या हेलिकॉप्टर के माध्यम से की जा सकती है।
हाल के वर्षों में, वैष्णो देवी मंदिर श्राइन बोर्ड ने भक्तों की सुविधा के लिए कई सुविधाएं विकसित की हैं जैसे कि रोपवे और बैटरी चालित गाड़ियां। गुफा के मुख्य द्वार तक पहुंचने के बाद, भक्तों को एक कतार में प्रवेश करना होता है।
गुफा के अंदर का रास्ता संकरा और थोड़ा मुश्किल होता है, लेकिन भक्तों की श्रद्धा उन्हें आगे बढ़ाती रहती है। मां के दर्शन के बाद भक्त भैरवनाथ मंदिर की ओर बढ़ते हैं जो लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर है।
यात्रा का आध्यात्मिक अनुभव
मां वैष्णो देवी की यात्रा का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। धार्मिक मान्यता है कि, मां का बुलावा आने पर ही कोई भक्त यह यात्रा कर पाता है। यह यात्रा भक्तों के लिए एक तपस्या है, जो उन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से शुद्ध करती है।
पहाड़ों की ठंडी हवा, "जय माता दी" के जयकारे और भक्तों की अटूट श्रद्धा एक ऐसा वातावरण बनाती है जो हर किसी को अपनी ओर खींचता है। यह यात्रा न केवल पापों का नाश करती है, बल्कि भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति और शांति भी प्रदान करती है।
माना जाता है कि जो भक्त सच्ची श्रद्धा से माता वैष्णो देवी के दरबार में आता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। लोग अपनी खुशियों और दुखों को माता के साथ साझा करने आते हैं। कई भक्त अपनी पहली यात्रा के बाद हर साल दोबारा आने का संकल्प लेते हैं, क्योंकि उन्हें माता के आशीर्वाद का अनुभव होता है।
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आधुनिक सुविधाएं और सुरक्षा
श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने भक्तों की सुरक्षा और सुविधा के लिए उत्कृष्ट व्यवस्थाएं की हैं। यात्रा मार्ग पर कई चिकित्सा केंद्र, शौचालय और भोजन की व्यवस्था है।
सुरक्षा व्यवस्था भी बहुत कड़ी है ताकि भक्तों को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो। मां की यात्रा एक अद्वितीय और अविस्मरणीय अनुभव है।
यह लाखों भक्तों के लिए सिर्फ एक तीर्थयात्रा नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है जो उन्हें उनके भीतर की शक्ति से जोड़ती है। यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा और दृढ़ संकल्प के साथ किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है।
कैसे पहुंचे मां वैष्णो देवी मंदिर
जम्मू और कश्मीर में स्थित कटरा शहर ही वैष्णो देवी मंदिर की यात्रा का शुरुआती बिंदु है। सभी तरह के परिवहन साधन यहीं तक पहुंचते हैं।
वायु मार्ग-
सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जम्मू एयरपोर्ट है, जिसे जम्मू सिविल एन्क्लेव भी कहते हैं।
यह कटरा से लगभग 50 किलोमीटर दूर है।
जम्मू हवाई अड्डे से आप कटरा के लिए टैक्सी, बस या शेयरिंग कैब ले सकते हैं।
रेल मार्ग-
कटरा में ही श्री माता वैष्णो देवी कटरा रेलवे स्टेशन (SVDK) है।
यह स्टेशन देश के विभिन्न प्रमुख शहरों जैसे नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, आदि से सीधी रेलगाड़ियों से जुड़ा हुआ है।
यह सबसे सुविधाजनक और किफायती तरीका माना जाता है।
सड़क मार्ग-
अगर आप सड़क मार्ग से यात्रा करना चाहते हैं, तो जम्मू से कटरा तक का रास्ता अच्छी तरह से बना हुआ है।
दिल्ली, चंडीगढ़ और जम्मू से कटरा के लिए नियमित बसें (सरकारी और निजी दोनों) चलती हैं।
आप अपनी कार से भी जा सकते हैं।
कटरा से मंदिर तक की यात्रा
कटरा पहुंचने के बाद आपको भवन तक की 12 किलोमीटर की चढ़ाई करनी होती है। यह चढ़ाई आप इन तरीकों से कर सकते हैं:
पैदल: यह सबसे लोकप्रिय तरीका है। रास्ता पूरी तरह से पक्का और रोशनी से युक्त है। इसमें लगभग 4-6 घंटे लग सकते हैं।
पिट्ठू और पालकी: अगर आप पैदल नहीं चल सकते, तो पिट्ठू और पालकी की सेवा ले सकते हैं। ये सेवाएं कटरा और अर्धकुमारी में उपलब्ध हैं।
घोड़ा/खच्चर: आप घोड़े या खच्चर किराए पर ले सकते हैं। यह एक बहुत आम विकल्प है और इसके लिए किराए की दरें तय होती हैं।
बैटरी कार: अर्धकुमारी से भवन तक के लिए बैटरी कार की सुविधा उपलब्ध है। यह विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों के लिए बहुत सुविधाजनक है।
हेलिकॉप्टर: यह सबसे तेज तरीका है। हेलिकॉप्टर सेवा कटरा से सांझीछत तक उपलब्ध है। सांझीछत से भवन तक की दूरी लगभग 2.5 किलोमीटर है, जिसे आप पैदल या बैटरी कार से तय कर सकते हैं।
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