भारत में मनाई जाती है परंपरागत दिवाली, इस राज्य में होती है यमराज पूजा

प्रकाश के पर्व का प्रतीक दीपावाली का त्योहार भारत के कई हिस्सों में लोग विभिन्न प्रथाओं और कई तरीकों से दिवाली मनाते हैं। भारत के अधिकांश हिस्सों में, दीवाली को देवी लक्ष्मी की पूजा करके, घरों को दीयों से रोशन करते है।

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Sandeep Kumar
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भारत में अनेक त्योहार मनाएं जाते है इसलिए इसे त्योहारों का देश कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। यहां पर देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं। प्रकाश के पर्व का त्योहार दीपावाली भी इस लिस्ट में सबसे ऊपर आता है। भारत के कई हिस्सों में लोग विभिन्न प्रथाओं और कई तरीकों से दिवाली मनाते हैं। भारत के अधिकांश हिस्सों में, दीवाली को देवी लक्ष्मी की पूजा करके, घरों को दीयों से रोशन करते है। आज हम आपको भारत के कुछ हिस्सों में कैसे अलग-अलग तरीकों से दिवाली मनाई जाती है, जैसी जानकारी दे रहे हैं। 

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मध्यभारत में कैसे मनाते हैं दिवाली

मध्यभारत में भारत के मुख्यत: 2 राज्य आते हैं- मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़। दोनों राज्यों में दीपावली का पर्व 5 दिनों का होता है। यहां के आदिवासी क्षेत्रों में दीपदान किए जाने का रिवाज है। इस अवसर पर आदिवासी स्त्री और पुरुष नृत्य करते हैं। यहां धनतेरस के दिन से यमराज के नाम का भी एक दीया जलाया जाता है। यह दीप घर के मुख्य द्वार पर लगाया जाता है ताकि घर में मृत्यु का प्रवेश न हो।

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कोलकाता की दिवाली 

कोलकाता में दिवाली काली पूजा (diwali kali puja ) या श्यामा पूजा के साथ मेल खाती है जो रात में होती है। देवी काली को हिबिस्कस के फूलों से सजाया जाता है और मंदिरों और घरों में पूजा की जाती है। भक्त मां काली को मिठाई, दाल, चावल भी चढ़ाते हैं। कोलकाता में दक्षिणेश्वर और कालीघाट (Dakshineswar and Kalighat ) जैसे मंदिर काली पूजा के लिए प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा, काली पूजा से एक रात पहले, बंगाल में 14 दीये जलाकर बुरी शक्ति को दूर करने के लिए भूत चतुर्दशी अनुष्ठान भी किया जाता है।

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दिवाली बनारस वाली

सबसे पहले बात करते है भगवान शिव की नगरी वाराणसी की। वाराणसी या बनारस या काशी में देवताओं की दिवाली मनाई जाती है। जिसे देव दीपावली (Dev Diwali ) के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म का मानना है कि इस दौरान देवी-देवता गंगा में डुबकी लगाने के लिए धरती पर आते हैं। भक्त देवी गंगा की पूरा करते हैं और दिए अर्पित करते हैं। देव दीपावली कार्तिक मास की पूर्णिमा को पड़ती है, और दीवाली के पंद्रह दिन बाद आती है।

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गुजरात में दिवाली 

गुजराती लोग दिवाली के अगले दिन गुजराती नव वर्ष दिवस मनाते हैं। उत्सव की शुरुआत वाग बरस से होती है, उसके बाद धनतेरस, काली चौदश, दिवाली और भाई बिज आते हैं।

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पंजाब में दिवाली 

पंजाब में दिवाली का त्योहार सर्दियों के आगमन का प्रतीक माना जाता है। यहां पंजाबी हिंदू (punjabi hindu ) देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, वहीं सिख भी गुरुद्वारों (Gurudwaras ) में त्योहार मनाते हैं। दिवाली का त्योहार, सिखों के त्योहार बंदी छोर दिवस के साथ मेल खाता है। इस दौरान दिवाली की तरह ही घरों और गुरुद्वारों में दावत होती है और रोशनी, उपहार और पटाखे फोड़ने के साथ मनाया जाता है।

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दिवाली ओडिशा में 

दिवाली के अवसर पर ओडिशा में लोग कौरिया काठी करते हैं। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें मान्यताओं के अनुसार लोग स्वर्ग से पधारे हुए पूर्वजों की पूजा करते हैं। वे अपने पूर्वजों को बुलाने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए जूट की जलाते हैं। दिवाली के दौरान, भगवान गणेश (Lord Ganesha ) उड़िया देवी लक्ष्मी, और माता काली की पूजा अर्चना करते हैं।

गोवा ऐसे मनाई जाती है दिवाली 

गोवा में दिवाली भगवान कृष्ण (Lord Krishna ) के सम्मान में मनाई जाती है। जिन्होंने राक्षस नरकासुर को हराया था। दीवाली से एक दिन पहले नरकासुर चतुर्दशी (Narakasura Chaturdashi ) के दिन राक्षस के विशाल पुतले बनाए और जलाए जाते हैं। दिवाली के दौरान, गोवा और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में लोग पाप से मुक्त होने के लिए अपने शरीर पर नारियल का तेल लगाते हैं।

तमिलनाडु में दिवाली

तमिलनाडु में यहां दीपावली का पर्व तो मनाया ही जाता है लेकिन सबसे ज्यादा महत्व दिवाली के 1 दिन पूर्व मनाए जाने वाले नरक चतुर्दशी का है। यहां मात्र 2 दिन का उत्सव होता है। इस दिन दीपक जलाने, रंगोली बनाने और नरक चतुर्दशी पर पारंपरिक स्नान करने का ही अधिक महत्व होता है।

महाराष्ट्र में होती है गाय की पूजा

महाराष्ट्र में दीपावली का त्योहार 4 दिनों तक चलता है। पहले दिन वसुर बरस मनाया जाता है। जिसके दौरान आरती गाते हुए गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है। दूसरे दिन धनतेरस पर्व भी मनाया जाता है। इसके बाद पटाखे फोड़कर दीपावली मनाई जाती है।

क्या होता है भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में

दीपावली ( Diwali ) में पूर्वी भारत में इस दिन दीये तो जलाए ही जाते हैं, साथ ही पारंपरिक नृत्य को भी महत्व दिया जाता है। यहां प्रकाश करते लोग अपने घरों के दरवाजे खुले रखते हैं। जिससे कि देवी लक्ष्मी ( Goddess Lakshmi ) प्रवेश कर सकें, क्योंकि देवी लक्ष्मी अंधेरे घर में प्रवेश नहीं करती हैं। 

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