देवउठनी एकादशी पर क्यों चढ़ाते हैं गन्ना और सिंघाड़ा? जानें इस पुरानी परंपरा को

देवउठनी एकादशी वो पावन तिथि है जब भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं। इस दिन से सभी मांगलिक काम फिर से शुरू हो जाते हैं। इस विशेष पर्व पर गन्ने और सिंघाड़े का भोग चढ़ाने की परंपरा है...

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Kaushiki
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Latest Religious News: सनातन धर्म में देवउठनी एकादशी का दिन सबसे खास माना जाता है। यह वह पावन तिथि है जब सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु अपनी चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं और पृथ्वी पर शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन से ही विवाह, मुंडन और गृह प्रवेश जैसे सभी मांगलिक कार्य शुरू होते हैं।

इस विशेष पर्व पर शालिग्राम शिला और तुलसी का विवाह रचाया जाता है। वहीं इस दिन गन्ने और सिंघाड़े का भोग लगाना एक सदियों पुरानी परंपरा है। इस बार ये पर्व 02 नवंबर को है। ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि इस पर्व पर इन दो मौसमी चीजों को इतना महत्व क्यों दिया जाता है? आइए जानें...

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गन्ना: मधुरता, ऊर्जा और सूर्य का आशीर्वाद

 देवउठनी एकादशी ठीक कार्तिक मास के आस-पास आती है जो शीत ऋतु के आगमन का समय होता है। इस समय गन्ना बिल्कुल तैयार हो चुका होता है। इसका रस सबसे ज्यादा पोषक तत्वों से भरा होता है।

धार्मिक महत्व:

  • विष्णु जी को जगाना

    गन्ने को मधुरता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। भगवान विष्णु चार माह की लंबी योगनिद्रा से जागते हैं। तो उन्हें मिठास और ताजगी का प्रतीक गन्ना चढ़ाया जाता है ताकि उनका जागरण मंगलमय और ऊर्जा से भरा हो।

  • वंश वृद्धि

    मान्यता के मुताबिक, पूजा में गन्ने का मंडप बनाने की परंपरा है। यह मंडप खुशहाली, संपन्नता और वंश वृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

  • एनर्जी बूस्टर

    शरद ऋतु के बाद जैसे ही ठंड बढ़ने लगती है। शरीर की इम्युनिटी थोड़ी कम होने लगती है। गन्ने का रस नेचुरल शुगर और मिनरल्स का भंडार होता है, जो शरीर को तुरंत ऊर्जा देता है और थकावट को दूर करता है।

  • पीलिया और लीवर के लिए

    आयुर्वेद में गन्ने के रस को लीवर और पीलिया जैसी बीमारियों के लिए अमृत माना गया है। एकादशी का व्रत खोलने के बाद, यह शरीर को डिटॉक्स करने और पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में मदद करता है।

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सिंघाड़ा: शीतकालीन कवच और जलीय शक्ति

सिंघाड़ा भी इसी समय खेतों से निकलना शुरू होता है। यह एक जलीय फल है जो तालाबों और झीलों में पैदा होता है। व्रत में फलाहार के रूप में इसका इस्तेमाल विशेष रूप से किया जाता है।

  • शुद्धता और जलीय भोग: 

    चूंकि सिंघाड़ा जल में उत्पन्न होता है इसलिए इसे शुद्ध और पवित्र माना जाता है। एकादशी के कठिन उपवास में इसका प्रयोग फलाहार के रूप में करने से व्रत भंग नहीं होता। यह माता लक्ष्मी को भी प्रिय है क्योंकि यह जल से संबंधित है।

  • नवरात्रि का आहार: 

    कई लोग नवरात्रि और अन्य व्रतों में भी सिंघाड़े के आटे का उपयोग करते हैं। इससे यह व्रत-उपवास के दौरान आहार की शुद्धता को बनाए रखने का प्रतीक बन जाता है।

  • पोषक तत्वों का पावरहाउस: 

    सिंघाड़े में पोटैशियम, जिंक, फाइबर और आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह शरीर को अंदर से ठंडा रखता है और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करता है।

  • आयरन और ब्लड सर्कुलेशन: 

    ठंड के मौसम में अक्सर जोड़ों में दर्द और रक्त संचार की समस्या शुरू होती है। सिंघाड़े में उच्च आयरन होने के कारण यह रक्त की कमी दूर करता है और शरीर को ठंड का सामना करने के लिए तैयार करता है।

इस तरह देवउठनी एकादशी पर गन्ने और सिंघाड़े के भोग की परंपरा केवल धार्मिक नहीं है। बल्कि यह भारतीय संस्कृति का एक सुंदर उदाहरण है कि हमारे पूर्वज धार्मिक अनुष्ठानों को मौसम और स्वास्थ्य की जरूरतों के साथ कैसे जोड़ते थे।

ये प्रसाद हमें प्रकृति के साथ तालमेल बिठाना सिखाते हैं, शरीर को आने वाली सर्दी के लिए तैयार करते हैं और सबसे जरूरी भगवान विष्णु (तुलसी और शालिग्राम का विवाह) के प्रति हमारी अटूट श्रद्धा को दिखाते हैं।

डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट | Hindu News

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