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Latest Religious News: ओडिशा के पुरी जिले में समुद्र तट के किनारे खड़ा कोणार्क सूर्य मंदिर सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक अजूबा है। इसे 13वीं शताब्दी में पूर्वी गंगा वंश के प्रतापी राजा नरसिंहदेव प्रथम ने बनवाया था। इस मंदिर को देखकर महान कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि, "यह वह जगह है जहां पत्थर की भाषा, मनुष्य की भाषा से भी अधिक प्रभावशाली लगती है।"
यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है। इसकी सबसे खास बात यह है कि इसे एक विशाल रथ के रूप में बनाया गया है। कल्पना कीजिए, सूर्य भगवान सात घोड़ों पर सवार होकर आकाश में विचरण कर रहे हैं—बस उसी दृश्य को राजा ने पत्थरों में हमेशा के लिए कैद कर दिया।
यह सिर्फ पत्थरों की कारीगरी नहीं, बल्कि उस पौराणिक कथा का प्रमाण है जहां भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब ने सूर्य की कठोर आराधना से रोग-मुक्ति पाई थी। जैसे छठ में हम उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, वैसे ही यह मंदिर हमें सूर्य की जीवनदायिनी शक्ति और आस्था के महत्व की याद दिलाता है।
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पौराणिक कथाएं
कोणार्क सूर्य मंदिर के निर्माण के पीछे एक बड़ी ही दिलचस्प और पुरानी कथा है, जो सीधा भगवान श्री कृष्ण के परिवार से जुड़ी है।
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साम्ब का कुष्ठ रोग और तपस्या
पौराणिक कथा के मुताबिक, भगवान कृष्ण के पुत्र थे साम्ब। एक बार साम्ब ने नारद मुनि का किसी बात पर अपमान कर दिया था। नारद मुनि के श्राप के कारण साम्ब को एक भयानक बीमारी कुष्ठ रोग हो गया।
उस समय इस रोग का कोई इलाज नहीं था। इस भयंकर कष्ट से मुक्ति पाने के लिए साम्ब ने चंद्रभागा नदी के किनारे जाकर सूर्य देव की कठोर तपस्या शुरू की। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि सूर्य देव उन पर प्रसन्न हुए और उन्हें रोग से मुक्ति का वरदान दिया।
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मूर्ति की स्थापना
रोग से ठीक होने के बाद, जब साम्ब चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे, तो उन्हें वहां सूर्य देव की एक अद्भुत मूर्ति मिली। माना जाता है कि यह मूर्ति किसी कुशल शिल्पी ने बनाई थी।
साम्ब ने इस मूर्ति को कोणार्क में स्थापित किया और बाद में राजा नरसिंहदेव प्रथम ने इसी स्थान पर भव्य सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया। इस तरह, यह मंदिर सिर्फ कला का नहीं, बल्कि आराधना, शक्ति और जीवन-ऊर्जा का भी प्रतीक बन गया।
वास्तुकला का करिश्मा
कोणार्क सूर्य मंदिर की वास्तुकला एक विश्व चमत्कार है। इसीलिए 1984 में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) घोषित किया गया।
रथ का स्वरूप
पूरा मंदिर एक विशाल रथ के आकार में बना है। इस रथ को सात घोड़े खींचते हुए दिखाए गए हैं। मान्यता है कि इन सात घोड़ों के नाम गायत्री, बृहती, उष्णिह, जगती, त्रिष्टुभ, अनुष्टुभ और पंक्ति हैं जो वैदिक छंदों के नाम हैं।
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24 पहिए और सूर्य घड़ी
इस रथ में कुल 24 विशाल पहिए हैं, जो वास्तव में सूर्य घड़ी का काम करते हैं। इन 24 पहियों को दिन के 24 घंटों का प्रतीक माना जाता है। हर पहिए में 8 तीलियां हैं, जो दिन के आठ प्रहर को दर्शाती हैं।
इसके अलावा, 12 जोड़ी पहिए हिंदू कैलेंडर के 12 महीनों का भी प्रतीक हैं। इनकी सूक्ष्म नक्काशी इतनी सटीक है कि आज भी पहियों की परछाई देखकर सही समय बताया जा सकता है। यह स्थापत्य कला और ज्योतिष विज्ञान का अद्भुत मेल है।
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सूर्य की पहली किरण
मंदिर की संरचना कुछ इस तरह बनाई गई थी कि जब सूर्योदय होता था, तो उसकी पहली किरणें सीधे गर्भगृह में स्थापित सूर्य देव की मूर्ति पर पड़ती थीं। हालांकि अब गर्भगृह और मुख्य शिखर का एक हिस्सा नष्ट हो चुका है।
लेकिन यह संरचना तत्कालीन कारीगरों के वैज्ञानिक कौशल को दिखाती है। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं, युद्धों और दैनिक जीवन के दृश्यों की सुंदर नक्काशी उकेरी गई है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट | Hindu News
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