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Latest Religious News: कुंभ को विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम कहा जाता है। इसमें करोड़ों श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगाने के लिए एकत्रित होते हैं। माना जाता है कि समुद्र मंथन में जो अमृत कलश निकला था, उसे लेकर देवता और असुरों के बीच छीना-झपटी हुई थी।
इस छीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदें भारत के चार स्थानों पर गिरी थीं। वे थीं हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), नासिक और उज्जैन। इन्हीं चार स्थानों पर हर 12 साल में कुंभ महापर्व का आयोजन किया जाता है। आज हम जानेंगे क्या है कुंभ और अर्धकुंभ का वास्तविक अर्थ।
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कुंभ और अर्धकुंभ का खगोलीय संबंध
ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, ये पावन पर्व कब आयोजित होंगे इसका निर्धारण शुद्ध रूप से सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की विशेष खगोलीय स्थितियों से किया जाता है:
कुंभ महापर्व:
यह पर्व (कुंभ मेले का महत्व) हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों तीर्थों पर बारी-बारी से आता है। जब सूर्य और बृहस्पति एक विशेष राशि में होते हैं, तब कुंभ योग बनता है।
अर्धकुंभ:
अर्धकुंभ का आयोजन छह वर्ष के अंतराल पर केवल हरिद्वार और प्रयागराज में ही किया जाता है। यह कुंभ के ठीक बीच का समय होता है। इसलिए इसे अर्धकुंभ कहा जाता है। इसका महत्व भी बहुत अधिक माना जाता है।
इन पावन अवसरों पर गंगा, यमुना और गोदावरी जैसी पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। ऐसा विश्वास है कि इन महायोगों में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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सिंहस्थ: उज्जैन का विशेष नाम
ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, जब कुंभ पर्व (उज्जैन सिंहस्थ कुंभ) का आयोजन उज्जैन की पुण्य धरा पर किया जाता है तब इसे सिंहस्थ कहा जाता है। ये कुंभ का ही एक विशेष नाम है।
नाम का कारण:
ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, ये उज्जैन में सिंहस्थ तब होता है, जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में प्रवेश करते हैं। 'सिंह' राशि में गुरु (बृहस्पति) का यह प्रवेश ही इस पर्व को सिंहस्थ नाम देता है।
स्थान:
यह पर्व मध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर आयोजित किया जाता है, जिसका महत्व यहां के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के कारण और भी बढ़ जाता है।
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सिंहस्थ में देश भर से साधु-संत, अखाड़े और श्रद्धालु यहां एकत्रित होते हैं। माना जाता है कि उज्जैन में सिंहस्थ योग के दौरान किया गया स्नान, दान और पुण्य कार्य अनंत फल देता है।
सिंहस्थ (उज्जैन सिंहस्थ 2028) की गणना भी 12 वर्ष के अंतराल पर ही की जाती है। ठीक वैसे ही जैसे अन्य कुंभ पर्वों की गणना की जाती है। इस पर्व के दौरान शिप्रा नदी का जल अमृत तुल्य हो जाता है। इससे स्नानार्थियों को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट
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