बदरीनाथ में सरस्वती नदी के उद्गम स्थल पर आयोजित होने वाला 'पुष्कर कुंभ' इस बार खास होने वाला है क्योंकि, यह 12 साल बाद आयोजित हो रहा है। यह पवित्र कुंभ 15 मई से शुरू होगा और 25 मई तक चलेगा। इस दौरान दक्षिण भारत के सैकड़ों आचार्य भी इसमें शामिल होंगे। माणा गांव में स्थित सरस्वती नदी का महत्व भी इस आयोजन से जुड़ा हुआ है, जहां वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी।
ये खबर भी पढ़ें... बदरीनाथ के कपाट खुलने की तिथि हुई तय, जानें तारीख और समय
पुष्कर कुंभ का धार्मिक महत्व
पुष्कर कुंभ का आयोजन 12 साल में एक बार होता है और यह खास तौर पर मिथुन राशि में बृहस्पति के प्रारंभ पर आयोजित किया जाता है। माना जाता है कि यहीं पर वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना की थी और सरस्वती नदी के शोर से परेशान होकर उन्होंने इस स्थान को चुना था। इस धार्मिक स्थल से जुड़ी परंपराएं आज भी श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
तो ऐसे में इस बार, यह कुंभ वेदव्यास के महाभारत रचनास्थल पर मनाया जा रहा है, जो एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। दक्षिण भारत के आचार्य इस पर्व में भाग लेने के लिए हर 12 साल में यहां आते हैं और इस मौके पर सरस्वती नदी के उद्गम स्थल पर पूजा-अर्चना करते हैं। यह भी माना जाता है कि वेदव्यास जी ने यहां केशव प्रयाग में अपनी तपस्या के दौरान महाभारत की रचना की थी। इस अवसर पर दक्षिण भारत के प्रमुख शंकराचार्य भी इस आयोजन में हिस्सा लेते हैं।
बद्रीनाथ मंदिर समिति की तैयारियां
बता दें कि, बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने इस आयोजन के लिए विशेष तैयारियां शुरू कर दी हैं। यहां की सड़कें दुरुस्त की जा रही हैं और लॉज एवं ऑनलाइन बुकिंग की प्रक्रिया भी चालू हो चुकी है। इस आयोजन के दौरान स्थानीय लोगों द्वारा श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं का प्रबंध किया जाएगा ताकि वे कुंभ के दौरान किसी भी प्रकार की परेशानी से बच सकें।
ये खबर भी पढ़ें... केंद्र सरकार की कैबिनेट बैठक: केदारनाथ और हेमकुंड साहिब के लिए रोपवे की मंजूरी
अक्षय तृतीया के बाद शुरू होने वाली यात्रा
इसके अलावा, 2025 में चारधाम यात्रा का भी आगाज होने जा रहा है। 30 अप्रैल को यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट खुलने के बाद यात्रा शुरू होगी। 2 मई को बाबा केदार के कपाट खोलने के साथ बदरीनाथ के कपाट भी 4 मई को खोले जाएंगे।
आचार्य और दक्षिण भारत की परंपरा
पुष्कर कुंभ के आयोजन में दक्षिण भारत के प्रमुख आचार्य, जैसे शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और माधवाचार्य, प्रत्येक 12 साल में एक बार यहां ज्ञान प्राप्ति के लिए आते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और वेदव्यास की तपस्थली पर आचार्य अपनी पूजा अर्चना करते हैं।
Akshaya Tritiya | केदारनाथ धाम | केदारनाथ की यात्रा | बदरीनाथ धाम | धर्म ज्योतिष न्यूज | कुंभ मेले का महत्व | कुंभ मेला 2025
ये खबर भी पढ़ें...
चारधाम यात्रा में सबसे पहले किस धाम के करना चाहिए दर्शन, जानिए क्या है कारण
MP के चमत्कारी धाम, यहां बजरंगबली के दर्शन मात्र से पूरे होते हैं सारे बिगड़े काम