उत्तराखंड के चमोली जिले की ऊंची पर्वतीय घाटियों में स्थित श्री रुद्रनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित पंच केदारों में से एक है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 36 सौ मीटर (11,800 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है और हर वर्ष सीमित समय के लिए श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। इस बार 18 मई 2025 को मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे।
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पांडवों की मुक्ति की कथा
ऐसी मान्यता है कि, महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने भाइयों, कौरवों की हत्या से व्यथित होकर मोक्ष की खोज में भगवान शिव की आराधना करने निकले।
भगवान शिव उनके पाप से नाराज थे और उनसे छुप गए। कई प्रयासों के बाद भगवान शिव ने पांच अलग-अलग स्थानों पर अपने अंगों को प्रकट किया, जिसे आज पंच केदार के नाम से जाना जाता है।
रुद्रनाथ में भगवान शिव के मुख के दर्शन होते हैं और यहीं पांडवों को अपने पाप से मुक्ति मिली थी।
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मंदिर की संरचना
बता दें कि, रुद्रनाथ मंदिर प्राकृतिक चट्टानों से बना हुआ है और यह चारों ओर से रोडोडेंड्रोन के बौने वृक्षों और अल्पाइन घास के मैदानों से घिरा है।
यह स्थान ना सिर्फ आध्यात्मिक रूप से बल्कि प्राकृतिक रूप से भी अत्यंत आकर्षक है। यहाँ की यात्रा कठिन है लेकिन श्रद्धालुओं को यह मार्ग अध्यात्मिक अनुभूति से भर देता है।
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मंदिर परिसर में विराजमान मूर्तियां
मुख्य मंदिर में भगवान शिव के मुख की पूजा की जाती है। मंदिर के बाईं ओर पांचों पांडव, माता कुंती, द्रौपदी और वन देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं, जबकि दाईं ओर यक्ष देवता यानी स्थानीय जाख देवता का मंदिर भी स्थित है। यह परिसर स्थानीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं का एक जीवंत संगम है।
पंच केदारों में रुद्रनाथ का विशेष स्थान
पंच केदारों की श्रृंखला में रुद्रनाथ को चतुर्थ केदार कहा जाता है। केदारनाथ में भगवान शिव का धड़, मध्यमहेश्वर में मध्य भाग, तुंगनाथ में भुजाएं, रुद्रनाथ में मुख और कल्पेश्वर में उनकी जटाएं पूजी जाती हैं।
इनमें से तीन तीर्थस्थल (केदारनाथ, मध्यमहेश्वर, तुंगनाथ) रुद्रप्रयाग में जबकि रुद्रनाथ और कल्पेश्वर चमोली जिले में स्थित हैं।
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