समुद्र मंथन से जुड़ी है कांवड़ यात्रा की परंपरा, जानें क्यों सावन में है यह यात्रा खास

सावन में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है। यह यात्रा पवित्र नदियों से गंगाजल लेकर भगवान शिव को अर्पित करने का एक धार्मिक और ऐतिहासिक प्रतीक है। जानें इस यात्रा का महत्व और क्यों इसे कठिन तपस्या माना जाता है...

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Kaushiki
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कांवड़ यात्रा का इतिहास
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कांवड़ यात्रा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो हर साल सावन मास में भगवान शिव को समर्पित किया जाता है। यह यात्रा श्रद्धा, तपस्या और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है।

इसमें लाखों शिव भक्त विशेष रूप से गंगाजल लेकर शिवलिंग पर अर्पित करने के लिए यात्रा करते हैं। इस यात्रा का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और पौराणिक संबंध भी है।

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कांवड़ यात्रा 2025

पंचांग के मुताबिक, श्रावण माह की शुरुआत 11 जुलाई 2025 को रात 2:06 बजे से होगी और यह 9 अगस्त तक चलेगा। इस बार ये यात्रा 11 जुलाई से शुरू हो जाएगी, जब सावन माह का पहला दिन आएगा।

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क्या है कांवड़ यात्रा

कांवड़ यात्रा एक वार्षिक तीर्थ यात्रा है, जिसमें श्रद्धालु अपने कंधों पर एक विशेष बांस की कांवड़ (जिसमें पानी से भरे घड़े या बोतलें लटकी होती हैं) लेकर पवित्र नदियों, विशेषकर गंगा नदी, से जल लाकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।

यह जल आमतौर पर हरिद्वार, ऋषिकेश, गोमुख और सुल्तानगंज जैसी पवित्र जगहों से भरा जाता है। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति को दर्शाना है।

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ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

समुद्र मंथन से जुड़ाव:

कांवड़ यात्रा की सबसे प्रसिद्ध कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। जब समुद्र मंथन से हलाहल विष उत्पन्न हुआ, तो भगवान शिव ने इस विष को पी लिया और सृष्टि को बचाया।

विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया, जिसे नीलकंठ के नाम से जाना गया। उसी समय, सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव पर पवित्र जल अर्पित किया, जिससे शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।

भगवान परशुराम से संबंध:

एक अन्य कथा के मुताबिक, भगवान परशुराम ने पहले हरिद्वार से गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक किया था। इसे पहली कांवड़ यात्रा माना जाता है, जो इस अनुष्ठान की शुरुआत का प्रतीक है।

श्रवण कुमार की पितृभक्ति:

कांवड़ यात्रा को कुछ लोग श्रवण कुमार की पितृभक्ति से भी जोड़ते हैं। श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर तीर्थ यात्रा पर ले गए थे। इसी प्रकार, शिवभक्त भी गंगाजल लेकर शिवधाम जाते हैं।

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इतनी कठिन तपस्या क्यों

कांवड़ शारीरिक और मानसिक रूप से अत्यधिक चुनौतीपूर्ण होती है। कांवड़िया नंगे पैर पैदल यात्रा करते हैं, धूप, बारिश और थकान का सामना करते हुए अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं। यह यात्रा भगवान शिव के प्रति भक्तों की असीम श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है।

भक्तों का मानना है कि इस कठिन तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस यात्रा करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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यात्रा का महत्व और श्रद्धा

इस यात्रा के दौरान शिवभक्त अपनी पूरी श्रद्धा से यात्रा करते हैं और इस कठिन यात्रा के माध्यम से मानसिक शांति और शारीरिक मजबूती प्राप्त करते हैं।

इस यात्रा का उद्देश्य केवल शारीरिक तपस्या नहीं है, बल्कि यह आत्मा की पवित्रता और भगवान शिव के प्रति विश्वास और समर्पण को बढ़ाने का एक साधन भी है।

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