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Google ने इंडिया में अपना कमाल का 'नो-कोड' ऐप मेकिंग प्लेटफॉर्म Opal लॉन्च कर दिया है। ये खबर इंडिया के लाखों छोटे बिजनेसमैन, स्टार्टअप्स और उन लोगों के लिए है। ये उन लोगों के लिए है जिनके पास शानदार ऐप आइडियाज तो हैं, लेकिन कोडिंग का C भी नहीं आता। ये एक ऐसा टूल है जो टेक्नोलॉजी की दुनिया का पूरा सीन बदलने वाला है।
अब तक एक छोटा सा बेसिक ऐप बनवाने के लिए भी ऐप डेवलपर्स लाखों रुपए चार्ज करते थे। इसका कारण था ऐप बनाने के लिए प्रोग्रामिंग लैंग्वेज पर जबरदस्त कमांड चाहिए।
इस मजबूरी का फायदा उठाकर डेवलपर्स मनमानी कीमत वसूलते थे। लेकिन अब Google Opal के आने से ये पूरा खेल बदल चुका है। अगले कुछ सालों में ऐप डेवलपर्स की मनमानी और नॉन-टेक्निकल लोगों को बेवकूफ बनाने का खेल पूरी तरह खत्म होने वाला है।
AI ने किया सब कुछ आसान
सोचिए आपके पास अपनी कॉफी शॉप के लिए या अपने जिम के क्लाइंट्स के लिए एक शानदार ऐप बनाने का आइडिया है। तो ऐसे में पहले क्या होता था? या तो आपका आइडिया एक सपना ही रह जाता या फिर आपको डेवलपर्स को लाखों रुपए की टैक्स टाइप फीस देनी पड़ती।
आपको कोडिंग नहीं आती इसलिए हमेशा से डेवलपर्स नॉन-टेक्निकल लोगों को अपनी शर्तों पर चलाते थे। मगर अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वजह से ये पूरा सीन पलट गया है। टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक नया रिवोल्यूशन आया है जिसे नो-कोड (No-Code) कहते हैं। इसका सीधा मतलब है बिना एक भी लाइन कोड लिखे, खुद का ऐप बनाना।
इससे पहले भी मार्केट में कुछ लो-कोड टूल्स थे। अब गूगल ने अपना Google Opal टूल भारत में लॉन्च कर दिया है। हालांकि शुरुआत में Opal की अपनी कुछ लिमिटेशन्स हैं। आप इससे बहुत बड़े और कॉम्प्लेक्स स्केलेबल ऐप्स नहीं बना सकते हैं। लेकिन छोटे और मिनी-ऐप्स के लिए यह एक गेम-चेंजर है।
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क्या है Google Opal और ये काम कैसे करता है
गूगल का Opal एक 'नो-कोड' मिनी-ऐप मेकिंग प्लेटफॉर्म है। ये एक ऐसा टूल है जो टेक्नोलॉजी को एकदम डेमोक्रेटाइज कर देता है।
यह कैसे काम करता है?
सिंपल प्रॉम्प्ट्स:
Opal यूज करना इतना आसान है जैसे आप किसी को वॉट्सऐप पर मैसेज लिख रहे हों। आपको बस अपनी नॉर्मल भाषा में चाहे वो हिंदी हो, इंग्लिश हो या हिंग्लिश हो AI को एक्सप्लेन करना है कि आपको कैसा ऐप चाहिए।
जैसे: "मुझे एक ऐसा ऐप चाहिए जो मेरे छोटे रेस्टोरेंट के लिए ऑनलाइन ऑर्डर ले सके और कस्टमर्स का नाम और फोन नंबर सेव कर सके।"
AI का मैजिक:
जैसे ही आप यह कमांड देते हैं, Opal का AI इस कमांड को डीप लेवल पर समझता है। बैकएंड में गूगल के पावरफुल लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स और जेनरेटिव AI काम करना शुरू कर देते हैं।
ऑटोमेटिक कोड और डिजाइन:
AI तुरंत जरूरी कोड खुद लिख देता है, ऐप का बेसिक डिजाइन (UI - User Interface) तैयार कर देता है और डेटाबेस भी सेट कर देता है।
ड्रैग-एंड-ड्रॉप:
यूजर को बस 'ड्रैग-एंड-ड्रॉप' फीचर का इस्तेमाल करके अपने ब्रांड के हिसाब से ऐप का लुक, कलर और फॉन्ट फाइनल करना होता है।
ये पूरा प्रोसेस मिनटों में पूरा हो जाता है। जिस काम के लिए ट्रेडिशनल मेथड में डेवलपर्स हफ्ते लगाते थे और लाखों मांगते थे, वो अब कुछ ही देर में और वो भी फ्री में हो रहा है।
डिजिटल इकोनॉमी के लिए बड़ा गेम-चेंजर
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती डिजिटल इकोनॉमी है। हमारे देश में लाखों स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज, छोटे दुकानदार इंडिविजुअल क्रिएटर्स हैं। इनमें से 90% लोग अपने बिजनेस को ऑनलाइन ले जाना चाहते हैं लेकिन ऐप बनवाने का खर्च ही उनके लिए सबसे बड़ी रुकावट थी।
यह खर्च 50 हजार रुपए से लेकर कई लाख रुपए तक जाता था। Google Opal इस सबसे बड़ी प्रॉब्लम को ग्रासरूट लेवल पर सॉल्व करता है।
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Opal से क्या-क्या पॉसिबल है
छोटे रेस्टोरेंट और कैफे:
नोएडा का एक छोटा सा ढाबा या रेस्टोरेंट अपनी डेली डील्स दिखाने और ऑनलाइन डिलीवरी ऑर्डर लेने के लिए एक मिनी-ऐप बना सकता है।
लोकल जिम ट्रेनर:
एक जिम ट्रेनर अपने क्लाइंट्स के लिए वर्कआउट ट्रैकर, डाइट प्लान और पेमेंट कलेक्शन के लिए ऐप लॉन्च कर सकता है।
वेडिंग प्लानर्स/इवेंट ऑर्गेनाइजर्स:
ये लोग कपल्स के लिए इनविटेशन, चेकलिस्ट और गेस्ट लिस्ट मैनेज करने का ऐप बना सकते हैं।
कॉलेज फेस्ट ऑर्गेनाइजर्स:
कॉलेज स्टूडेंट्स अपने एनुअल फेस्ट के लिए इवेंट्स की जानकारी, टाइम-टेबल और रजिस्ट्रेशन के लिए एक इन्फॉर्मेशन-ऐप कुछ ही घंटों में रेडी कर सकते हैं।
यह टूल 'डिजिटल इंडिया' और 'स्टार्टअप इंडिया' जैसे मिशनों को सही मायने में सपोर्ट करेगा, क्योंकि अब छोटे मर्चेंट्स को बेसिक मिनी ऐप्स के लिए महंगे कोडर्स के पास जाने की जरूरत नहीं होगी। इससे समय और पैसा दोनों बचेगा और डिजिटल ग्रोथ की रफ्तार तेज होगी।
क्या अब खतरे में है कोड डेवलपर्स की नौकरी
अगर Artificial Intelligence फ्री में ऐप (Google Chrome) बना रहा है तो क्या अब प्रोग्रामर्स की जॉब खत्म हो जाएगी? एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। Google Opal जैसे 'नो-कोड' प्लेटफॉर्म्स का आना ट्रेडिशनल कोडिंग का अंत नहीं है बल्कि ये टेक्नोलॉजी को (Digital India) और भी ज्यादा लोगों तक पहुंचाने का एक जरिया है।
कॉम्प्लेक्स ऐप्स:
बैंकिंग, स्टॉक ट्रेडिंग, हाई-सिक्योरिटी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स या बड़े डेटा एनालिटिक्स वाले ऐप्स के लिए हमेशा हाईली स्किल्ड डेवलपर्स की जरूरत रहेगी। Google Opal जैसे टूल अभी इतनी कॉम्प्लेक्स स्केलेबिलिटी नहीं दे सकते।
प्रोसेस सिम्पलीफिकेशन:
Opal जैसे टूल्स डेवलपर्स का कीमती टाइम छोटे-मोटे टास्क को ऑटोमेट करने और बिजनेस प्रोसेस को सिंपल बनाने में बचाएंगे। इससे डेवलपर्स अब अपना पूरा फोकस बड़े और ज्यादा चैलेंजिंग प्रोजेक्ट्स पर लगा पाएंगे।
तो Google Opal ने डेवलपर्स (Google AI Multi Search) को छोटे-मोटे काम से आजाद कर दिया है। अब वे नॉन-टेक्निकल लोगों से काफी पैसा चार्ज करने से भी कतराएंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि मार्केट में एक फ्री और स्मार्ट ऑप्शन आ गया है। यह टेक्नोलॉजी की जीत है और उन सभी लोगों के लिए एक बड़ी राहत है जो अपने आइडिया को हकीकत में बदलना चाहते हैं।
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