Congress : अर्श से फर्श पर कैसे पहुंच गई सबसे बड़ी और असरदार पार्टी

खास बात यह रही कि पार्टी को सीटें ( Seats ) कम मिली, फिर भी सरकार ( government ) बनाने की कला में वह माहिर थी। जिसके चलते छह दशक तक यह सिरमौर बनी रही।

author-image
Dr Rameshwar Dayal
एडिट
New Update
द सूत्र
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

नई दिल्ली. इस देश में सबसे ज्यादा साल तक राज चलाने का रिकॉर्ड कांग्रेस ( congress ) पार्टी के नाम ही है। कभी गांधी परिवार ( Gandhi family ) तो कभी उससे निकलकर भी इस पार्टी ने देश में सबसे अधिक सालों तक सत्ता संभालने का रिकॉर्ड बनाया है। खास बात यह रही कि पार्टी को सीटें ( Seats ) कम मिली, फिर भी सरकार ( government ) बनाने की कला में वह माहिर थी। जिसके चलते छह दशक तक यह सिरमौर बनी रही। लेकिन अब इस पार्टी के दुख भरे दिन चल रहे हैं। पिछले दो दशक में इसके साथ जो बीती है, वह हैरान करने वाली गाथा है। पुराने वक्त को वापस लाने में पार्टी नेता मेहनत कर रहे हैं, लेकिन हालात इसे ‘दिल्ली से दूर’ रख रहे हैं। हम आपको बताते हैं कि देश आजाद होने के बाद से आज तक कांग्रेस और देश की राजनीति हालचाल और गठजोड़।

गठजोड़ की सरकार में भी कांग्रेस का हाथ ऊपर रहा  

आप पता चलेगा कि लोकसभा चुनाव कब होंगे

इलेक्टोरल बॉन्ड को समझना है तो इस खबर को पढ़ें

paytm की उलझन कुछ कम हुई है?

सुप्रीम कोर्ट ने SBI को फिर टारगेट पर क्यों लिया

देश में पिछले कुछ सालों में वोटिंग का प्रतिशत बढ़ रहा है, वरना लोगों की चुनाव में अति रुचि कम ही नजर आती थी। लोग मानते थे कि कोई जीते, उनका व देश का हाल सुधरने वाला नहीं है। खास बात यह कि कम वोटिंग प्रतिशत के बावजूद कांग्रेस को जब मौका मिला, उसने सरकार बना दली। वैसे तो कांग्रेस को सबसे अधिक 415 सीटें वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति के चलते मिली थीं और वर्ष 2004 में सबसे कम 145 सीटें मिली थी, लेकिन तब भी कांग्रेस ने गठजोड़ कर अपने नेता मनमोहन सिंह को पीएम बना दिया था। तब गठबंधनों की सरकारों के चलते देश की राजनीति में बहुत समीकरण बन बिगड़ जाते थे, लेकिन अब पिछले दस सालों से एक ही पार्टी को मिलने वाले बहुमत के चलते बहुत कुछ बदल गया है। पुराना इतिहास खुद को दोहराता नजर नहीं आ रहा है। अब  मोदी लहर ने बहुत कुछ बदल दिया है, जिसके चलते कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर में गुजर रही है।

देश के पहले चुनाव में क्या हुआ था

असल में नेहरू-इंदिरा और राजीव गांधी के दौर में कांग्रेस को बहुत अधिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। संकट आए भी उनको सुलझा लिया। अब आजाद भारत के पहले चुनाव 1951-1952 में 489 लोकसभा सीटों पर हुआ। इसमें जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में कांग्रेस के अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, भारतीय बोल्शेविक पार्टी, जमींदार पार्टी समेत 53 पार्टियां मैदान में उतरी थीं। चुनाव में कुल 1874 प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई। इनमें से कांग्रेस ने 264 सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बना ली। इस चुनाव में भाकपा को 16, सोशलिस्ट पार्टी को 12 और बीजेपी की मातृत्व पार्टी भारतीय जनसंघ को तीन सीटें प्राप्त हुई थीं।

वर्ष 1957 का चुनाव: कांग्रेस की चढ़त

वर्ष 1957 में 494 सीटों पर हुए दूसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दमदार बहुमत मिला था। उसने 371 सीटें जीती। 542 निर्दलियों ने दूसरा आम चुनाव लड़ा और इनमें से 42 ने जीत दर्ज की, वहीं भाकपा ने 111 प्रत्याशी मैदान में उतारे और 27 पर जीत दर्ज की। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के 194 में से 19 ने चुनाव जीता। भारतीय जनसंघ ने 133 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव से उससे एक सीट ज्यादा यानी चार सीटें मिलीं।

वर्ष 1962 का चुनाव: इंदिरा गांधी ने दिखाए जलवे

वर्ष 1962 का लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री की मौत् से लेकर इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के रूप में याद किया जाता है। इस चुनाव में कांग्रेस ने 494 सीटों में से 361 सीटों पर परचम फहराया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस चुनाव में 29 सीटें जीतीं। जनसंघ की साख बढ़ी और उसने 14 सीटों पर जीत दर्ज की। यही वह चुनाव था जब कांग्रेस की अध्यक्ष बनने के बाद इंदिरा गांधी देश की प्रधामंत्री बनी और देश ने उनसे ढेरों उम्मीदें बांधी।

वर्ष 1967 का चुनाव: कांग्रेस की सीटों में आई कमी

साल 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पहली बार पहले की अपेक्षा कम सीटें मिलीं। इस चुनाव में उसे 520 सीटों में से 283 सीटें ही मिल पाईं। पार्टी का मत प्रतिशत भी घटकर 40.78 फीसदी पर आ गया। इस चुनाव में पहली बार जनसंघ ने 35 सीटें जीतकर सनसनी फैला दी थी। वह तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। एक और अन्य स्वतंत्र पार्टी ने 44 सीटें जीतकर सभी को चौंकाया।

वर्ष 1971 का चुनाव: नए नारों के साथ कांग्रेस की जीत कायम रही

इस चुनाव में नारों ने अपनी गंभीर मौजूदगी दर्ज कराई। तब विपक्ष ने नारा दिया था 'इंदिरा हटाओ-देश बचाओ।' लेकिन कांग्रेस और इंदिरा गांधी के नारे 'गरीबी हटाओ' ने विपक्ष को आगे आने ही नहीं दिया। इस चुनाव में 545 सीटों में से कांग्रेस की सीटें फिर बढ़कर 352 पर आ गईं। चुनाव में कांग्रेस (ओ) को 16 सीटें, जनसंघ को 22 सीटें और सीपीआई को 23, सीपीआईएम को 25, स्वतंत्र पार्टी को 8 व अन्य को भी गिनी-चुनी सीटें ही मिलीं।

वर्ष 1977 का चुनाव: पहली बार कांग्रेस और इंदिरा गांधी को मिली हार

वर्ष 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी। जिसकार खूब विरोध हुआ। लेकिन इंदिरा गांधी के आगे किसी की नहीं चल पाई क्योंकि उन्होंने विरोधियों को जेल में डाल दिया था। उन्होंने साल 1977 में लोकसभा चुनाव की धोषणा की लेकिन बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा। उस चुनाव में कांग्रेस और गठबंधन को 153 सीटें ही मिल पाईं। दूसरी ओर इंदिरा गांधी के खिलाफ बने विभिन्न दलों की जनता पार्टी ने 296 सीटें जीतकर पहली बार देश में गैर कांग्रेस सरकार बनाई। यह ऐसा पहला चुनाव था जो कांग्रेस बनाम दूसरे दल का था।

गजब था वर्ष 1980 का लोकसभा चुनाव

यह चुनाव इसलिए हुआ क्योंकि चुनाव से पहले मोरारजी देसाई और फिर चरण सिंह की सरकार कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गिर गई। इस चुनाव ने बताया कि बेमेल गठबंधन की सरकार का चलना कठिन है। विशेष बात यह रही कि इस चुनाव में कांग्रेस की दोबारा वापसी हुई और लोगों ने इमरजेंसी के अत्याचार को बिसरा कर इंदिरा गांधी का फिर से प्रधानमंत्री बना दिया। इस चुनाव के दौरान सभी दलों में घमासान था लेकिन कांग्रेस ने 353 सीटें जीतकर आसानी से सत्ता पर कब्जा कर लिया। इसके बाद का चुनाव अपने कार्यकाल से पहले इसलिए हो गया।

वर्ष 1984 का चुनाव: इंदिरा गांधी की हत्या और कांग्रेस की रिकॉर्ड जीत

वैसे तो यह चुनाव वर्ष 1985 में होना था, लेकिन साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के चलते एक साल पहले ही चुनाव हुआ। इंदिरा गांधी ( Indira Gandhi ) की हत्या ने उनके बेटे राजीव गांधी को पीएम तो बनाया ही साथ ही इस चुनाव में कांग्रेस 542 लोकसभा सीटों में से 401 सीटें जीतकर देश की राजनीति में एक रिकॉर्ड बना दिया जो आज भी कायम है। इसी चुनाव में बीजेपी का मात्र दो ही सीटों पर संतोष करना पड़ा। इस चुनाव में बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी समेत आला नेताओं को हार का सामना करना 

वर्ष 1991 का चुनाव: राजीव की हत्या लेकिन रिकॉर्ड नहीं बना

वर्ष 1991 में मतदान से एक दिन पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई।  जून में चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को सबसे ज्यादा 232 सीटें मिलीं। बीजेपी 120 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर आ गई। जबकि जनता दल को सिर्फ 59 सीटें ही मिल पाईं। तब कांग्रेस की सरकार तो बनी लेकिन मुखिया पहली बार गांधी परिवार से नहीं था। जब पीवी नरसिंहराव ने सत्ताा संभाली थी। इस दौरान पंजाब में लोकसभा चुनाव बाद में हुए और जम्मू-कश्मीर में नहीं हुए थे।

वर्ष 1996 का चुनाव: गठबंधन का दौर शुरू, कांग्रेस के लिए परेशानी

इस चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। 161 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। तब कांग्रेस को सिर्फ 140 सीटों पर संतोष करना पड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 मई को प्रधानमंत्री का पद संभाला लेकिन बहुमत के अभाव में 13 दिन में सरकार गिर गई। गठबंधन का दौर शुरू हुआ और जनता दल के नेता एचडी देवेगौडा एक जून को पीएम बने। उनकी सरकार भी 18 माह तक चल पाई। तब उनके कार्यकाल में विदेश मंत्री रहे इन्द्र कुमार गुजराल ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से प्रधानमंत्री का पद संभाला। वह भी 1997 तक इस पद पर रहे।

वर्ष 1998 का चुनाव: कांग्रेस का ग्राफ लुढ़का, बीजेपी की सरकार बनी लेकिन

इस 12वें लोकसभा चुनाव में पहली बार सही मायनों में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। इस चुनाव में बीजेपी को 182 सीटें और कांग्रेस 141 सीटें ही जीत पाई। सीपीएम ने 32 सीटें जीती और सीपाआई ने सिर्फ नौ सीटें जीतीं। समता पार्टी को 12, जनता दल को 6 और बीएसपी को 5 लोकसभा सीटें मिली। क्षेत्रीय पार्टियों ने 150 लोकसभा सीटें जीतीं। बीजेपी ने शिवसेना, अकाली दल, समता पार्टी, एआईएडीएमके और बिजू जनता दल के सहयोग से सरकार बनाई। वाजपेयी फिर से पीएम बने लेकिन उनकी सरकार 13 महीने ही चल पाईं।

वर्ष 1999 का चुनाव: कांग्रेस लगातार लुढ़कती रही

यह चुनाव कांग्रेस के लिए पहले की तरह ही अच्छा नहीं रहा। इस चुनाव में बीजेपी ने विदेशी सोनिया बनाम स्वदेशी वाजपेयी का माहौल बनाया। बीजेपी को इसके चलते सबसे ज्यादा 182 सीटें मिली और वाजपेयी एक बार फिर से केंद्र में सरकार बनाने में सफल रहे। इस चुनाव मे कांग्रेस का ग्राफ फिर गिरा और उसे 114 सीटों पर संतोष करना पड़ा। चुनाव में सीपीआई को 33 सीटें मिली थी। यह पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी, जिसने अपना पांच का कार्यकाल पूरा किया।

वर्ष 2004 का चुनाव: कांग्रेस की चमत्कारिक वापसी

साल 2004 के 14वें लोकसभा चुनाव में बीजेपी का 'इंडिया शाइनिंग' का नारा कामयाब नहीं हो पाया। जिसने कांग्रेस की सत्ता वापसी का रास्ता आसान कर दिया। इस चुनाव में कांग्रेस को 145 सीटें मिलीं। जबकि बीजेपी के खाते में 138 सीटें आई। सीपीएम के खाते में 43 सीटें गई और सीपीआई 10 सीटें जीतने में कामयाब रही। कांग्रेस ने दूसरे दलों को साथ मिलकर आसानी से पांच साल सरकार चलाई। तब एक बार फिर से गांधी परिवार से इतर मनमोहन सिंह पीएम बने।

वर्ष 2009 का चुनाव: बढ़त के साथ कांग्रेस की दूसरी बार भी वापसी

इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दोबारा सत्ता में आई। सोनिया गांधी के पीएम बनने से इंकार के बाद मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। इस 15वें आम चुनाव में कांग्रेस ने 206 सीटें जीतीं थी। दूसरी ओर बीजेपी की सीटें घटकर 116 पर आ गई। कांग्रेस ने अपने सहयोगी दलों के साथ एक बार फिर से सरकार बनाई और पांच साल बिना भव-बाधा के राज किया।

वर्ष 2014 का चुनाव: कांग्रेस का सबसे बुरा हाल

इस चुनाव में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी और उसका बहुमत जानदार और शानदार था। इस चुनाव में बीजेपी ने 282 सीटों समेत एनडीए गठबंधन ने 336 लोकसभा सीटों पर रिकॉर्ड बहुमत प्राप्त किया था। इस चुनाव में कांग्रेस की बुरी गत रही क्योंकि वह मात्र 44 सीटें ही जीत पाई। नरेंद्र मोदी का केंद्र की राजनीति में आगमन हुआ और उनकी सरकार पूरे पांच साल बिना किसी परेशानी के चली।

वर्ष 2019 का चुनाव: मोदी ने फिर कांग्रेस को धूल चटा दी

इस चुनाव में एक बार फिर नरेंद्र मोदी की सूनामी नजर आई और उन्होंने पूरे विपक्ष को एक तरफ धकेल दिया। इस चुनाव में उनके एनडीए गठबंधन को 353 सीटें मिली, जिनमें BJP की 303 सीटें शामिल थीं। वैसे कांग्रेस की सीटों का ग्राफ बढ़कर 52 पर पहुंच गया। लेकिन उसके लिए शर्मनाम बात यह रही कि पार्टी 17 राज्यों में एक भी सीट नहीं जीत पाई। कांग्रेस इसके साथ-साथ राज्यों में विधानसभा चुनाव भी लगातार हारती रही। दिल्ली में जहां उसने 15 साल राज किया वहां पिछले 10 सालों में उसका एक भी विधायक नहीं है।  | 

CONGRESS BJP Indira Gandhi government