अति पिछड़े जिलों में विकास की गति बढ़ाने की योजना में 8 में से 6 जिले फिसड्डी

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अति पिछड़े जिलों में विकास की गति बढ़ाने की योजना में 8 में से 6 जिले फिसड्डी

भोपाल. देश के 117 अति पिछड़े जिलों में विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए लागू की गई केन्द्र की महत्वाकांक्षी योजना (आकांक्षी जिला कार्यक्रम) पर अमल में मप्र बुरी तरह पिछड़ गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्टस में से एक इस योजना में मप्र के 8 जिलों को शामिल किया गया था। साल 2018 में शुरु किए गए इस प्रोजेक्ट के जिलो में विकास के लिए जरुरी बुनियादी सुविधाओं में सुधार के साथ-साथ लोगों की आय और जीवन स्तर में भी सुधार करना था। 5 साल के लिए लागू की गई इस योजना के आखिरी महिने में द सूत्र ने इस प्रोजेक्ट की सफलता की हकीकत जानने के लिए पड़ताल की तो मध्यप्रदेश के 8 जिलों में से 6 जिले फिसड्डी साबित हुए हैं। इन जिलों में मध्य प्रदेश के राजगढ़, खंडवा (पूर्व निमाड़), गुना, दमोह, छतरपुर, बड़वानी, विदिशा, सिंगरौली मिलाकर 8 जिले शामिल किए गए थे। 





जानें क्या है आकांक्षी योजना और किस तरह बदलनी थी जिलों की सूरत: इस योजना में प्रदेश के 8 जिले शामिल हैं जिनका सुधार/परफॉरमेंस देखने के लिए इस योजना के पांच पैरामीटर तय किए गए थे। इनमें स्वास्थ्य और पोषण व्यवस्था, शिक्षा, कृषि और जल संसाधन, बुनियादी ढांचा और स्किल डेवलपमेंट सहित वित्तीय समावेश थे। लेकिन इस रिपोर्ट में हम जिलों में बुनियादी सुविधा और वित्तीय समावेश-स्किल डेवलपमेंट इन दो पैरामीटर में हुए कामों के बारे में बताएंगे। इन दो पैरामीटर्स पर आठों जिलों को देखा जाए तो बुनियादी सुविधाओं में राजगढ़, दमोह, खंडवा, सिंगरौली, विदिशा, बड़वानी पिछड़ गए है केवल छतरपुर और गुना ने ही बेहतर प्रदर्शन किया। यहां पर बुनियादी सुविधाओं का मतलब सड़क, बिजली, पानी, आवास जैसी सुविधाएं है और नीति आयोग ने इन जिलों की परफॉर्मेंस को जांचने के लिए 8 पैरामीटर्स तय किए थे।  उसमें मुख्य तौर पर घरेलू शौचालय, पेयजल, बिजली, सड़क, इंटरनेट जैसे पैरामीटर्स शामिल किए गए थे। साथ ही वित्तीय समावेश और स्किल डेवलपमेंट के पैरामीटर पर देखा जाएं तो सभी जिले फिसड्डी साबित हुए है। वित्तीय समावेश और स्किल डेवलपमेंट के पैरामीटर का आंकलन करने के लिए 6 बिंदु तय किए गए थे। इनमें केंद्र की योजनाओं का क्रियान्वयन जैसे अटल पेंशन योजना, पीएम जीवन ज्योति बीमा योजना, जनधन योजना में बैंक खाते, मुद्रा लोन साथ ही स्किल डेवलपमेंट के लिए पीएम कौशल विकास योजना समेत 10 बिंदु तय किए गए थे। जिसके तहत गरीब तबके के लोगों को इन योजनाओं का लाभ दिया जाना था।  





बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर और वित्तीय समावेश के लिए तय टारगेट हासिल करने में जिले हुए असफल: आपको बता दें कि नीति आयोग पांच साल से लगातार इस योजना में हुए कामों का आंकड़ा/ डाटा इक्कट्ठा करता रहा है। योजना के पैरामीटर्स का एक टारगेट तय किया गया था। किसी भी जिले ने इन दो पैरामीटर्स पर ये टारगेट अचीव नहीं किए। उसके आधार पर जिलों कि निम्नलिखित स्थिति है: 



1. जिला- राजगढ़





बुनियादी सुविधा:  दिसंबर 2019 में 19.62 फीसदी थी; दिसंबर 2021 में घटकर 19.12 रह गई



वित्तीय समावेश और स्किल डेवलपमेंट: दिसंबर 2019 में 38.51 फीसदी; दिसंबर 2021 में घटकर 30.49 फीसदी रह गया





2. जिला-दमोह





बुनियादी सुविधा: दिसंबर 2019 में 27.98 फीसदी; दिसंबर 2021 में घटकर हुआ 24.82 फीसदी  



वित्तीय समावेश और स्किल डेवलपमेंट: दिसंबर 2019 में 31.13% था; दिसंबर 2021 में 22.28% रह गया





3. जिला- खंडवा





बुनियादी सुविधा: दिसंबर 2019 में 12.48% था; दिसंबर 2021 में यह घटकर 11.43% रह गया



वित्तीय समावेश और स्किल डेवलपमेंट: दिसंबर 2019 में 21.3% था; दिसंबर 2021 में 14.01% ही रह गया





4. जिला- सिंगरौली





बुनियादी सुविधा: दिसंबर 2019 में 27.05% था; दिसंबर 2021 में घटकर 23.96% रह गया



वित्तीय समावेश और स्किल डेवलपमेंट: दिसंबर 2019 में 34.02% था; दिसंबर 2021 में बस 31.08% रह गया





5. जिला- विदिशा





बुनियादी सुविधा: दिसंबर 2019 में 14.43% था; दिसंबर 2021 में यह घटकर 14.22% रह गया



वित्तीय समावेश और स्किल डेवलपमेंट: दिसंबर 2019 में 39.97% था; नवम्बर 2021 तक बढ़कर 48.59% हुआ और दिसंबर 2021 में घटकर 48.34%  रह गया





6.जिला- बड़वानी





बुनियादी सुविधा: दिसंबर 2019 में 21.71% था; दिसंबर 2021 में यह घटकर 19.73 % रह गया



वित्तीय समावेश और स्किल डेवलपमेंट: दिसंबर 2019 में 34.47% था; दिसंबर 2021 में 26.04% ही रह गया





7. जिला - छतरपुर





बुनियादी सुविधा: दिसंबर 2019 में इसका प्रतिशत 16.5% था; दिसंबर 2021 में यह बढ़कर 17.39% था



वित्तीय समावेश और स्किल डेवलपमेंट: दिसंबर 2019 में 28.87% था;दिसंबर 2021 में 23.36% ही रह गया





8. जिला- गुना





बुनियादी सुविधा: दिसंबर 2019 में 14.69% था; दिसंबर 2021 में यह बढ़कर 18.71% था



वित्तीय समावेश और स्किल डेवलपमेंट: दिसंबर 2019 में 21.94% था; दिसंबर 2021 में 13.66% ही रह गया





टॉप 10 जिलों की लिस्ट में मध्यप्रदेश का एक भी जिला नहीं: नीति आयोग ने दिसंबर 2021 में “आकांक्षी जिला कार्यक्रम” के आंकड़ें जारी किए। इन आंकड़ों के मुताबिक ओवरआल परफॉरमेंस की टॉप 10 जिलों की लिस्ट में प्रदेश के एक भी जिले का नाम नहीं है। इसके साथ ही जिलों के ओवरआल परफॉरमेंस के आधार पर ही की गई मासिक डेल्टा रैंकिंग में भी मध्य प्रदेश का कोई जिला नहीं है। इसी तरह अगर स्थापना के बाद से जिलों के थीम-वार (स्वास्थ्य और पोषण/वित्तीय समावेशन और कौशल विकास/शिक्षा/बुनियादी अवसंरचना/कृषि और जल संसाधन) परफॉरमेंस की टॉप 10 लिस्ट की बात करें तो उसमें भी प्रदेश का एकमात्र विदिशा जिला ही शिक्षा की वजह से अपना नाम बना पाया।





आंकड़ों में पंचायतों में 100% नेट कनेक्शन पर असल में काम नहीं हुआ, सड़कें-शौचालय की हालत खराब: द सूत्र की टीम ने राजगढ़ की करीब एक दर्जन पंचायतों का दौरा किया और बुनियादी सुविधाओं के लिए तय किए गए पैरामीटर इंटरनेट कनेक्टिविटी की जमीन हकीकत देखी। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक राजगढ़ में इंटरनेट कनेक्टिविटी का बेंचमार्क 100 फीसदी तय किया गया था। 2018 में जब योजना शुरू हुई तब जिले की 29.42 फीसदी पंचायतों में इंटरनेट कनेक्शन था और रिपोर्ट के मुताबिक 31 दिसंबर 2021 तक ये 100 फीसदी हो गया। यानी इस पैरामीटर को अचीव कर लिया गया लेकिन हकीकत में केवल आंकड़ों में ही ये शानदार बढ़ोतरी हुई है। कनेक्टिविटी 100 फीसदी हो गई लेकिन इंटरनेट तो चल ही नहीं रहा। ज्यादातर ग्राम पंचायतों इंटरनेट से जुड़ी है लेकिन कनेक्शन काम ही नहीं करता, तो ऐसे अचीवमेंट का क्या कोई मतलब रह जाता है। बात अगर सडकों की करें तो पीएम ग्राम सड़क योजना के तहत सभी गांवों में सड़क का प्रतिशत 99.58 फीसदी बताया गया यानी 99 फीसदी पहुंच मार्ग है लेकिन जमीनी हकीकत में सड़कें खराब पड़ी है। इसके अलावा पीएम आवास योजना की गांवों में लिस्ट तो लगी है लेकिन पीएम आवास योजना का लाभ तो कई गांव वालों को अब तक नहीं मिला है... वैसे ही हाल शौचालय के है।  इसी तरह वित्तीय समावेश और स्किल डेवलपमेंट के पैरामीटर्स पर भी जिले में कोई प्रगति नहीं है। बल्कि मनरेगा के तहत काम तो मशीनों से होते हैं और ग्रामीणों से सरपंच सचिव उनके खातों से पैसा निकाल लेते हैं। योजना में जिम्मेदारों ने आंकड़ें पेश कर अपनी पीठ थपथपा ली लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही रही। 





जिम्मेदारों ने बताई योजना के पिछड़ने की वजह: इस मामले में जिला पंचायत के सदस्य मोना सुस्तानी ने बताया कि जमीन पर तो कुछ खास काम नहीं हुआ है। वहीं जिला पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि जसवंत गुर्जर ने भी माना कि वैसा काम नहीं हुआ जैसी उम्मीद की जा रही थी। वहीँ जब इस मामले में द सूत्र ने योजना और नीति आयोग के अधिकारियों से बात की एवं उनसे पूछा कि आखिरकार क्यों एमपी में योजना कारगर नहीं हुई है तो अधिकारियों ने कहा कि 2018 के मुकाबले तो डेवलपमेंट हुआ लेकिन बाकी राज्यों के मुकाबले ये उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। जब हमने इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश की तो अधिकारियों ने साफ कहा कि कामों में निरंतरता नहीं है, यानी कभी काम किया कभी नहीं किया। दूसरा इस योजना में केंद्र और राज्यों के अधिकारियों को बेहतर तालमेल के साथ काम करने के लिए कहा गया था। लेकिन केंद्र और राज्य आपस में तालमेल नहीं बिठा पाए। वहीं दूसरी तरफ योजना की खामी ये भी है कि ये डेटा पर आधारित है लेकिन जमीन पर काम करने की जो व्यवस्था है वो लचर है। यानी पीएम मोदी का जो ड्रीम प्रोजेक्ट है उसे लेकर ही अधिकारियों ने जमीनी स्तर पर कैसे काम किया है उस पर भी सवालिया निशान लग गया है।



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