हरीश दिवेकर। नौतपा आने वाले हैं, लेकिन इससे पहले से ही दो महीने से लगातार नौतपा तप रहा है। बरखा कब बहार लाएगी, हर कोई यही बाट जोह रहा है। आसमान से भले ही आग बरस रही हो, लेकिन तेल में लगी आग कुछ कम जरूर हुई। पेट्रोल-डीजल के दाम कम हो गए हैं। इधर, मध्य प्रदेश में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव का रास्ता साफ हो गया। चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ होंगे। सत्ताधारी बीजेपी और कांग्रेस अपने-अपने तरीके से अपनी जीत बता रही हैं। वहीं, 34 साल पुराने में मामले में गुरु यानी नवजोत सिद्धू एक साल के लिए जेल में चले गए। उधर, बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद केस सुप्रीम कोर्ट ने जिला कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया है। सर्वे में दावा किया जा रहा है कि मस्जिद में शिवलिंग मिला। खबरें तो इधर प्रदेश में भी पकीं और खुशबू भी बिखरी, आप तो सीधे अंदर उतर आइए...
हमने पुकारा और हम पकड़ाए...
शिवराज सिंह चौहान की स्मरण शक्ति और दृष्टिदोष बीते दिनों खूब चर्चा में रहे। कलेक्टरों से सीधे बातचीत कर रहे थे। मीटिंग बहुत देर तक कुशल-मंगल चलती रही तो लगा वायरल करने और फारम बताने लायक तो कुछ हुआ ही नहीं। ऐसा सोच ही रहे थे कि स्क्रीन पर एक मुंडी इधर-उधर होते दिखी। मामा ने स्क्रीन पर शहर का नाम पड़ा, फिर कनखियों से अपने कागज में झांका और वायरल मटेरियल के लिए दन्न से डायलॉग दे मारा- इधर, उधर मत देखो, बुरहानपुर कलेक्टर। मेरी सब जगह निगाह रहती है। प्रवीण..जब मैं बोल रहा हूं तो तुम्हें बोलने का कोई अधिकार नहीं है। यहां तक सब ठीक था, लेकिन जो मुंडी हिला रहे थे, उन्हें पता ही नहीं चला कि उनका नया नामकरण संस्कार हो गया है। अब वे काशीराम से प्रवीण हो गए हैं। कहानी कुल जमा यह थी कि उस दिन बैठक में कलेक्टर प्रवीण सिंह थे ही नहीं। उनकी जगह एसडीएम काशीराम बडोले बैठे थे। मामाजी ने फारम दिखाने के चक्कर में काशी-मथुरा सब एक कर दिया। उधर कांग्रेस ने मामा के दृष्टिदोष और कमजोर स्मरण शक्ति का आनंद ले रही है और उधर कलेक्टर साहब अलग बोल-बोलकर थके जा रहे हैं कि- मैं नहीं था, मैं नहीं था। मुझे नहीं डांटा...। बड़े-बड़े प्रदेशों में छोटी-छोटी घटनाएं हो जाती हैं। ज्यादा भावुक नहीं होने का...।
चलो रे ठेला उठाओ कहार...
चलो रे ठेला उठाओ कहार..कि चुनाव मिलन की रुत आई। वोट चाहिए तो ठेला, धेला, चेला, बुलडोजर जो काम आ जाए ले लो। अभी की राजनीति के लिए ठेला ही ठेला (धकाया) जा रहा है। मामाजी सीएम को पता नहीं किसने ज्ञान दे दिया कि बुलडोजर तो बाबा पर ही ठीक लगता है, आप तो ठेला चलाओ। आप मामा हो, भांजों के काम आओ। खिलौने इकट्ठे करो। बस, मामा निकल पड़े ठेला लेकर। मामा तो निकल गए, लेकिन उनके संगी-साथियों को नानी याद आ रही है। दबी-छुपी जुबान में बोल रहे हैं- ठीक है राजनीति करो, पर इतना नीचे भी मत आओ कि सड़क पर ठेला धकाते फिरो। आज ठेला लेकर निकले हो, कल बच्चों की तीन पहिया साइकिल चलाने लग जाओगे। मामा हो, आप पर तो सब फबता है, हम ठेला लेकर निकलेंगे तो अच्छा लगेगा क्या। बात तो सही है, लेकिन जहां नेताजी वोट के लिए वोटर के पैरों में लोट रहे हैं, मालिश कर रहे हैं, वहां ठेला घाटे का सौदा नहीं है। ट्राई तो करो। मां कसम, फायदा ही होगा।
लफड़े वाला लव...
इश्क, मोहब्बत सीधे रास्ते से की जाए तो सही है, रास्ता बदला तो खैर नहीं। एक बड़े अखबार समूह में एक बड़े पदाधिकारी दफ्तर की ही एक महिला से दिल लगा बैठे। बात सिर्फ दिल लेने-देने तक ही नहीं, काफी आगे पहुंच गई। अखबार समूह का राजधानी में नामी-गिरामी होटल है। बड़े पदाधिकारी ने इसी होटल में अपनी प्रेयसी से मुलाकात तय की। प्रेयसी पहुंच भी गई। लेकिन ये बात प्रेयसी के पति को पता लग गई। वो भाईसाहब भी होटल पहुंच गए। पतिदेव ने अपनी पत्नी की चैट निकाल ली और उसे कई ग्रुपों में भेज दिया। पतिदेव यहीं तक नहीं रुके, वे अखबार के डायरेक्टर के पास गुहार लगाने पहुंच गए कि मुझे पत्नी से तलाक दिलवाओ। इससे डायरेक्टर साहब भी बुरी तरह उलझ गए कि आखिर करें तो क्या...। अब पूरे दफ्तर में बड़े पदधारी की ठिठोली हो रही है। इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपता...और इश्क जब गलत जगह हो जाए तो भगवान ही मालिक है।
ये भी महारानी का दरबार है
खेल-खेल में खेल मंत्री ने खेल कर दिया। खेल मंत्री उर्फ महारानी यशोधरा राजे यूं भी अपने तेवरों के लिए जानी जाती हैं, लेकिन तेवर महाराज के बंदो पर भी चल जाएंगे, ऐसा किसी ने सोचा नहीं था। पर ये राजनीति है बाबू, यहां जो सोचा नहीं जाता, वो भी हो जाता है। कम से कम पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया तो इस बात को अच्छे से समझ ही गए हैं। तो साहब...हुआ यूं कि महारानी ने कोई बैठक बुलाई। वे समय पर पहुंच गईं, लेकिन सिसौदिया और उनके साथ अटैच जिला पंचायत अध्यक्ष राजू बाथम की आमद देर से हुई। अब महारानी किसी का इंतजार करें। ना ना...बहुत नाइंसाफी है ये तो। सो हुआ यूं कि उन्होंने मंत्रीजी और श्रीमान अध्यक्षजी को राजशाही अंदाज में समझा दिया कि समय बड़ा बलवान है, इसका ध्यान रखना चाहिए। दोनों ने इस ज्ञान को ग्रहण किया। क्षमा मांगी और उसके बाद बैठक शुरू हुई। इंटरवल..। बाद की पिक्चर कुछ इस तरह चली कि बैठक में जिस भी कार्यकर्ता ने ये दृश्य देखा, उसके मानसिक सुकून में अचानक तेजी से सुधार हुआ। जांच में पता चला सिंधिया एंड कंपनी के कुछ मंत्रियों से कार्यकर्ता पीड़ित हैं। उन्हें इस बात का सुकून मिला कि ग्वालियर-चंबल में कोई तो है, जो महाराज के बंदों पर भी महारानीगीरी बता सकता है।
पल-पल दिल के पास रहता है कमल...
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी है, जिसे हवेली बचानी है, उसे पार्टी बदलनी है। ये पंक्त्तियां इतिहास से नहीं, राजनीति से उठाई हैं। राजनीति ये है कि बुंदेलखंड में एक ब्राह्मण कांग्रेसी नेता हैं। पहले विधायकी ग्रहण कर चुके हैं, पर आजकल उन पर ग्रहण लगा हुआ है। क्षेत्र के ही एक ठाकुर, जो मंत्री भी हैं, इनसे दो-दो हाथ, दो-दो आंख हो रही है। इससे हुआ ये कि ठाकुर साहब ने सीधे हिंसा करने के बजाय कागजी हिंसा का हथियार चलाना शुरू कर दिया। प्राचीन विधायक एक हवेली के मालिक हैं और ठाकुर साहब को पता चला कि इस हवेली के नाप-जोख में भारी खोट है। बस फाइलें फड़फड़ाने लगीं, बुलडोजर में तेल-पानी देने की तैयारी हो गई। यहीं से ब्राह्मण नेताजी का हृदय परिवर्तन हुआ। क्या रखा है पंजे में...सब मोह-माया है...। कल था..आज नहीं है...। कमल तो कल भी था, आज भी है। आगे भी रहेगा...। हम भी इसके ही रहेंगे। हम इसके रहेंगे तो हमारी हवेली भी रहेगी। तो जजमानों...ज्ञान का अगला अध्याय ये है- ब्राह्मण नेता जी जल्दी ही कमलमय होंगे। हरि ओम...।
इति लक्ष्मी कथा...
कथा राम की हुई, भागवत की हुई, पता नहीं, लेकिन चली पूरी लक्ष्मी जी के आसपास ही। पंडाल से होते हुए पुलिस तक पहुंच गई। पाप-पुण्य का हिसाब छोड़ो, यहां तो इज्जत के लाले पड़ गए। ये कहानी उस कथा की है, जिसमें महाराज को लक्ष्मी जी की उतनी आवक नहीं हुई, जितनी तय हुई थी। मोह-माया के त्याग का ज्ञान देने वाले महाराज जी को ये त्याग गवारा नहीं हुआ। उन्होंने पहले तो उन भक्तों को पकड़ा, जो मोटा आंकड़ा दिखाकर उन्हें पांडाल तक ले आए थे और बाद में आंकड़ा सिकुड़ गया। सुना है पहले तो बाबा ने आयोजकों को ज्ञान दिया कि इस जनम में वादाखिलाफी करो तो अगला जनम कष्टप्रद हो जाता है। सुना है कि आयोजकों ने अगले जनम के कष्टों का लोड नहीं लिया। फिर बाबा ने अपने संपर्कों का लाभ उठाया और बात वहां पहुंचा दी, जहां डंडा, सलाखें, ताजिराते हिंद की तमाम दफाएं आयोजकों का इंतजार कर रही थीं। इसके बाद जो हुआ वो लिखने की नहीं, समझने की चीज है। वैसे इशारों में बता दें कि बाबा पिछले डेढ़-दो सालों में ख्याति का फर्राटा भर रहे हैं। अभी देश में हैं, जल्दी ही विदेश में भी कथा होगी। पांडाल डॉलर-डॉलर होने वाला है। सच्ची...।
दिल दिया, दर्द लिया
इंदौर में जब से जयपाल सिंह चावड़ा इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बने हैं, तब से बेचारे कई असली दावेदारों का कोलेस्ट्राल ऊपर-नीचे हो रहा है। आखिर दिल भी कितना दर्द सहे। दर्द इसलिए कि प्राधिकरण इंदौर का है और देवास के रहने वाले चावड़ा इंदौर आकर अध्यक्ष बन गए। अब इंदौर वाले उनके आसपास भाई साहब-भाई साहब कर रहे हैं। ये दर्द कम नहीं हुआ था और नया दर्द आहट दे रहा है। मेयर के चुनाव के लिए कहीं कोई बाहर से प्रकट होकर ना लड़ ले। सोशल मीडिया पर एक बड़े नेता ने इस संभावित दर्द की शंका जाहिर की है। जिन्होंने शंका जताई, वो वही नेता हैं, जिनका नाम हर बार किसी बड़े पद के लिए चलता है और नाम चलकर फिर ठहर जाता है। पहले नगर अध्यक्ष के लिए चला, लेकिन वहां भूतपूर्व कांग्रेसी बीजेपी अध्यक्ष बनकर विराजमान हो गए। फिर आईडीए अध्यक्ष के लिए चला तो देवास की जय-जयकार हो गई। अब मेयर का पद है सामने। डरे हुए हैं। दिल देकर कब तक दर्द लें।