SHIVPURI. पोहरी नगर परिषद के बोर्ड पर लिखा है गणेश नगरी में आपका स्वागत है। दरअसल यहां 200 साल पुराना रियासत कालीन गणेश मंदिर है। इसे इच्छापूर्ण गणेशजी कहा जाता है क्योंकि गणेश जी हर भक्त की मुराद पूरी करते हैं। बप्पा को यहां श्रीजी के नाम से पुकारते हैं। जाहिर है कि गणेश मंदिर में पूजा-अर्चना से ही पोहरीवासियों के दिन की शुरुआत होती है। नेताओं के लिए भी ये आस्था का केंद्र है। पोहरी सीट पर भी सिंधिया राजघराने का प्रभाव है लेकिन यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की बजाय यशोधरा राजे सिंधिया का ज्यादा असर है। पोहरी से इस समय विधायक हैं सुरेश राठखेड़ा। पोहरी भी वो विधानसभा सीट है जहां दलबदल के चलते उपचुनाव हो चुका है।
सियासी मिजाज
पोहरी विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1962 में हुआ और कांग्रेस के तुलाराम यहां से विधायक चुने गए थे। इसके बाद 1967, 1972 और 1977 के चुनाव में भारतीय जनसंघ और जनता पार्टी के कब्जे में ये सीट रही। 1980 में हरिवल्लभ शुक्ला ने जनसंघ का प्रभाव तोड़ते हुए कांग्रेस की वापसी करवाई। 1990 में बीजेपी ने यहां पहली बार चुनाव जीता और जेपी वर्मा विधायक बने। दिलचस्प बात ये है कि 1990 के चुनाव के बाद से 2013 तक यहां निर्दलीय और बीजेपी के उम्मीदवार तो जीत दर्ज करवाते रहे लेकिन कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई। कांग्रेस की जीत का सूखा 2018 के चुनाव में सुरेश राठखेड़ा ने दूर किया। मगर ज्यादा दिनों तक कांग्रेस खुशी नहीं मना सकी और राठखेड़ा सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हो गए और एक बार फिर बीजेपी का कब्जा हो गया।
जातिगत समीकरण
पोहरी विधानसभा सीट पर मुद्दों की बजाय जातिगत समीकरण हावी रहते हैं और यहां जातिगत आधार पर ही वोटिंग होती है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां 5 बार ब्राह्मण समुदाय के कैंडिडेट और 5 बार धाकड़ समुदाय के प्रत्याशी चुनाव जीते हैं। इस सीट पर कुल मतदाता 2 लाख 15 हजार 517 हैं जिसमें धाकड़ जाति के मतदाता 50 हजार, ब्राह्मण जाति के मतदाता 35 हजार, आदिवासी वर्ग के 30 हजार मतदाता, जाटव मतदाताओं की संख्या 20 हजार, कुशवाह मतदाताओं की संख्या 20 हजार, यादव समुदाय के मतदाताओं की संख्या 12 हजार और रावत समुदाय के मतदाताओं की संख्या करीब 10 हजार है। राजनीतिक दल जातिगत आधार को देखते ही अपने उम्मीदवार मैदान में उतारते हैं और इसलिए यहां बीएसपी का भी अच्छा खासा असर देखने को मिलता है।
सियासी समीकरण
अब पोहरी भी वो सीट है जहां दलबदल हुआ है और इस सीट पर भी ये पूछा जा रहा है कि इस बार टिकट किसे मिलेगा सिंधिया समर्थक चेहरे को या बीजेपी के चेहरे को, क्योंकि बीजेपी के प्रहलाद भारती अकेले विधायक हैं जो दो बार यहां से चुनाव जीते थे। 2018 में सुरेश धाकड़ ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर भारती को पटखनी दी थी। अब सुरेश राठखेड़ा खुद बीजेपी में हैं। यहां से पूर्व विधायक नरेंद्र बिरथरे भी दावेदार हैं। जो उमा भारती समर्थक कहे जाते हैं। इसके साथ ही नए चेहरे के रूप में डॉ. सलोनी धाकड़ भी एक विकल्प है। कांग्रेस अब तक ब्राह्मण कैंडिडेट को मैदान में उतारती रही लेकिन यदि कांग्रेस ने धाकड़ बनाम धाकड़ समीकरण का दांव खेला तो पूर्व जनपद अध्यक्ष प्रधुम्न वर्मा का नाम सबसे ऊपर है। बहरहाल इस सीट को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के अपने-अपने दावे हैं।
पोहरी विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे
इस विधानसभा में बिजली-पानी की समस्या बड़ी समस्या है। सुरेश धाकड़ के मंत्री बनने के बाद इस क्षेत्र के युवाओं को उनसे रोजगार की आस थी लेकिन अब भी युवा वर्ग खाली हाथ भटक रहा है। बेरोजगारी यहां बड़ा मुद्दा है। रोजगार को लेकर जनता में बड़ी नाराजगी है। बात करें किसानों की तो सिंचाई का पानी नहीं होने की वजह से उन्हें बेहद दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पोहरी की सड़कों की हालत बेहद खराब है। यहां के सभी प्रमुख स्थानों की सड़क खस्ताहाल है। कुल मिलाकर सीट का मुआयना करने पर एक बात निकल कर आई कि मंत्री होने के बावजूद क्षेत्र विकास के लिए तरस रहा है।
पोहरी विधानसभा सीट की पड़ताल के दौरान द सूत्र ने चुनाव में हारे हुए प्रत्याशी, इलाके के प्रबुद्धजनों, वरिष्ठ पत्रकारों और आम जनता से बात कर इलाके के कुछ अन्य मुद्दे भी जाने जिसमें प्रमुख रूप से कुछ सवाल सामने आए।
- मंत्री होने के बावजूद इलाके में विकास की रफ्तार धीमी क्यों ?
मंत्री सुरेश राठखेड़ा के पास नहीं था कोई जवाब
जनता के इन सवालों के बाद हमने मंत्री जी के जवाबों का इंतजार किया लेकिन मंत्री सुरेश धाकड़ राठखेड़ा सवालों के जवाब देने की बजाय सवालों से भागते नजर आए। मंत्री के पास जनता के इन सवालों का कोई जवाब नहीं था।
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