News Strike : ग्वालियर चंबल में अब कलह छिपना मुश्किल ? सिंधिया तोमर आमने सामने

ग्वालियर चंबल में बीजेपी के दो सीनियर नेताओं, नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। तोमर ने सार्वजनिक रूप से सिंधिया पर निशाना साधा, जिससे गुटबाजी स्पष्ट हो गई है। पार्टी में इस संघर्ष को लेकर टकराव बढ़ सकता है।

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Harish Divekar
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news strike 28 july

Photograph: (The Sootr)

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बीजेपी के दो सीनियर लीडर्स में क्या सब कुछ ठीकठाक है। ऊपरी मन से बीजेपी के दिग्गज नेता भले ही हां में जवाब दे दें या ये डींगे हांक दें कि गुटबाजी और कलह जैसी बातें बीजेपी में नहीं होती। पर सच्चाई ये है कि पार्टी के दो सीनियर लीडर्स में आपस में ठन गई है। ठनी भी कुछ यूं है कि गुबार पब्लिकली फूटने लगा है। ये बात और है कि पॉलिटिकल मैच्योरिटी दिखाते हुए एक नेता ने दूसरे नेता का नाम नहीं लिया। लेकिन, जिस तरह से सरेआम निशाना साधा है। उससे ये समझने में देर नहीं लगी कि तीरे जुबां चला किस ओर है। अगर आप भी यही सोच रहे हैं कि ये नेता कौन है जो बीजेपी की परंपराओं की उल्टी दिशा में तैर रहे हैं। तो चलिए हम आपको सब कुछ तफ्सील से बता देते हैं।

सुना आपने नरेंद्र सिंह तोमर ने क्या कहा। ये तो आप समझ ही गए होंगे कि हम जिन दो सीनियर लीडर्स की बात कर रहे हैं, उसमें से एक हैं नरेंद्र सिंह तोमर। जो भरे मंच से माइक पर कुछ बोल रहे हैं। जरा गौर से सुनिए वो क्या बोल रहे हैं और किसके बारे में बोल रहे हैं। 

सुना आपने और कुछ समझे आप। अगर इतने पर ही आप समझ गए हैं कि नरेंद्र सिंह तोमर किस पर निशाना साध रहे हैं तो अच्छी बात है। और, जो नहीं समझे हैं वो इस कॉलम को पूरा पढ़ें। तोमर के इन बयानी तीरों के निशाने पर माने जा रहे हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया। उन्हें बीजेपी का एक धड़ा भले ही अपनी पार्टी का दिग्गज नेता माने या न माने। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि वो ग्वालियर चंबल के दिग्गज और दमदार नेता हैं। पीएम मोदी की कैबिनेट में फुलटाइम मंत्री भी हैं। इसलिए ये तो नहीं कहा जा सकता कि बीजेपी में सिंधिया का औरा फीका पड़ चुका है। पांच साल पहले ही बीजेपी में आने के बावजूद उन्हें पार्टी में सब कुछ मिल रहा है। लोकसभा में टिकट मिला और फिर मंत्री भी बना दिए गए। शायद यही बात प्रदेश के बाकी नेताओं को खटकती है और जब सहन करना मुश्किल हो जाता है तब इस तरह वो टीस सबके सामने आ ही जाती है।

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कामों का क्रेडिट लेने में सिंधिया नहीं करते कोई गुरेज 

तोमर के इस बयान में कोई नाम नहीं है फिर भी सियासी हलकों में ये मान लिया गया है कि उनके निशाने पर सिंधिया ही हैं। इसकी कई वजह हैं। पहली तो यही है कि सिंधिया अक्सर बहुत से कामों का क्रेडिट लेने में गुरेज नहीं करते हैं। बात चाहें माधव नेशनल पार्क की हो या ग्वालियर चंबल के विकास की हो। वो खुद अपनी पीठ थपथपा ही लेते हैं। कुछ ही दिन पहले ग्वालियर को नई ट्रेन मिली तो सिंधिया ने ट्वीट कर ये याद दिला दिया कि उनके पत्र की वजह से ये सौगात लोगों को मिल सकी।

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पार्टी में सिमट सा गया है तोमर का दायरा!

दूसरी वजह ये है कि सिंधिया के पार्टी में आने के बाद से तोमर का दायरा भी अपनी ही पार्टी में कुछ सिमट सा गया है। बीजेपी में रह कर ग्वालियर चंबल के सबसे बड़े नेता का टैग लिए घूमने वाले तोमर को बार-बार सिंधिया से चैलेंज मिल ही जाता है। फिर भले ही बात जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की हो या अपने खास लोगों को टिकट दिलाने की हो। कोई 19 तो कोई 20 होता है, लेकिन मुकाबला तो करना ही पड़ता है। इस वजह से चंबल में इन दो दिग्गजों की लड़ाई गहराती जा रही है। और, तोमर का सरेआम इस तरह बयान देना ये जाहिर करता है कि खाई इतनी गहरी हो चुकी है कि आसानी से पाटना भी मुश्किल ही होगा।

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कांग्रेस भी डाल रही आग में घी

पिछले दिनों विजयपुर सीट के भी उपचुनाव हुए। कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए राम निवास रावत इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी थे। बताया जाता है कि तोमर ने उन्हें जिताने के लिए पूरी ताकत झौंक दी थी जबकि सिंधिया रावत की हार चाहते थे। रावत वाकई उपचुनाव हार गए जिसके बाद सिंधिया का परचम थोड़ा और बुलंद हुआ और तोमर की साख घटी। ऐसे एक दो नहीं कई छोटे-बड़े इंसिडेंट हैं जो तोमर बनाम सिंधिया की गवाही देते हैं। कुछ नेता तोमर के साथ हैं तो कुछ सिंधिया के साथ हैं। यानी एक ही पार्टी के दो नेताओं के गुट अब आमने-सामने है। और, बीजेपी इस पावर पॉलिटिकल गेम शो को चुपचाप देखने के लिए मजबूर है। कांग्रेस भी इस लड़ाई की आग में घी डालने का काम कर रही है। बालेंदु शुक्ला ने भी तोमर के बयान पर प्रतिक्रिया दी है।

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क्या ग्वालियर चंबल में दो धड़ों में बंटी नजर आएगी बीजेपी?

दिलचस्प बात ये है कि बालेंदु शुक्ला बीजेपी से कांग्रेस में गए हैं। उससे भी ज्यादा दिलचस्प ये है कि एक जमाने में बालेंदु शुक्ला सीनियर सिंधिया यानी कि माधव राव सिंधिया के बेहद करीबी माने जाते थे। तोमर की तरह वो भी सिंधिया पर निशाना साधने से नहीं चूके। हालांकि उन्होंने कुछ गोलमोल बाते भी कीं। इससे ये तो साफ हो जाता है कि ग्वालियर चंबल में सिंधिया के खिलाफ गुटबाजी तेज हो चुकी है। बीजेपी के हर लिखित और अलिखित संविधान का पालन करने वाले तोमर भी खुद पर काबू नहीं रख पाए। वो भी तब जब मानसून सत्र का समय शुरू हो चुका है। तो समझा जा सकता है कि उनकी नाराजगी कितनी ज्यादा और किस कदर होगी। बीजेपी जल्द ही इसका कोई हल निकाल पाएगी या फिर ग्वालियर चंबल में बीजेपी भी कांग्रेस की तरह दो धड़ों में बंटी नजर आएगी।

इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक (News Strike) के लेखक हरीश दिवेकर (Harish Divekar) मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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