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Photograph: (The Sootr)
क्या इंदौर शहर बीजेपी के हाथ से फिसल रहा है। ये सवाल आप भी पूछेंगे अगर इंदौर के ताजा हालात जान लेंगे। वैसे मध्यप्रदेश के इस शहर इंदौर की तासीर के क्या कहने। ये शहर जितना पेटू है उतना ही शौकीन भी। हर काम में अव्वल बात चाहे स्वच्छता की हो या फिर बिजनेस की। इंदौर हर मामले में अलग पहचान रखता है। एक खास पहचान और है इस शहर की। वो ये कि शहर अरसे से बीजेपी का गढ़ है। लेकिन, अब इस गढ़ की दीवारों में दरार दिखने लगी है। अपने ही गढ़ में बीजेपी घिरने लगी है और उस पर से बढ़ते क्राइम का ठप्पा भी शहर पर लग रहा है। इंदौर में पिछले दिनों ऐसा क्या क्या हुआ जो ये सवाल उठने लगे। आज उसी पर चर्चा करते हैं।
अलग-अलग धड़ों की सियासत का गढ़ बन रहा इंदौर
इंदौर एक ऐसा शहर है जो स्वच्छता मामले में कई सालों से अव्वल आ रहा है। वेस्ट मैनेजमेंट के मामले में इंदौर ने वाकई खुद को लाजवाब साबित किया है। लेकिन अब वही इंदौर बढ़ते क्राइम का अड्डा बन गया है और अलग-अलग धड़ों की सियासत का गढ़ बनता जा रहा है। बात शुरू करते हैं विधायक मालिनी गौड़ के बेटे से। पहले याद दिला दें कि मालिनी गौड़, लक्ष्मण सिंह की पत्नी हैं। लक्ष्मण सिंह शिवराज सरकार में मंत्री थे। और, दूसरे बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे थे, लेकिन उनका करियर पीक पर पहुंच पाता उससे पहले ही एक सड़क हादसे में उनका निधन हो गया। उसके बाद मालिनी गौड़ को टिकट मिला और उनकी सीट से विधायक बन रही हैं। अब उनके बेटे एकलव्य लगातार सुर्खियां बटोर रहे हैं।
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बीजेपी नेता के शगूफे पर भारी पड़ी एकता
एकलव्य ने शहर के शीतलामाता बाजार के व्यापारियों के साथ बैठक ली और सारे मुस्लिम कर्मचारियों को काम से हटाने का फरमान जारी किया। साथ ही ये धमकी भी दी कि जो बात नहीं मानेगा उससे अपने तरीके से निपटेंगे। इसके बाद सड़क पर तमाम मुस्लिम कर्मचारी उतर आए और एकलव्य के खिलाफ प्रदर्शन किया और हम एक हैं के नारे भी लगाए। कांग्रेस भी एकलव्य के खिलाफ मैदान में उतरी। एकलव्य के खिलाफ रैली में मुस्लिमों के अलावा हिंदू कर्मचारी भी शामिल हुए। हैरानी की बात ये है कि बीजेपी ने पार्टी लेवल पर अब तक एकलव्य के इस कदम पर कोई स्टैंड क्लियर नहीं किया है। पर, ये साफ है कि एकलव्य ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए या आलाकमान की नजरों में आने के लिए जो भी प्रपोगेंडा किया। उसमें वो कामयाब नहीं हुए। इस बीजेपी नेता के शगूफे पर इंदौर की एकता भारी पड़ गई।
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बीजेपी नेताओं के करीबी पर सरेआम चलीं गोलियां
दूसरा मामला भू माफिया से जुड़ा है। ये मामला एकलव्य के मामले से भी ज्यादा गंभीर है और बीजेपी की पेशानी पर बल लाने वाला है। बीते बुधवार को शहर के मनोज उर्फ मनोहर नागर नाम के शख्स पर सरेआम गोलियां चलीं। भूमाफिया के तौर पर कुख्यात मनोज को तीन गोलियां लगीं। हालांकि वो खतरे से बाहर हैं, लेकिन मामला चिंताजनक इसलिए है क्योंकि मनोज कई बीजेपी नेताओं के करीबी बताए जाते हैं। इंदौर में दबी जुबान में ये भी कहा जाता है कि वो बीजेपी नेताओं के करीबी हैं इसलिए खुलकर जमीन घोटाले करते हैं।
कुछ ही दिन पहले बीजेपी के प्रदेश संगठन मंत्री हितानंद शर्मा ने विधानसभा पांच में एक बैठक ली थी। उस बैठक में मनोज भी शामिल हुआ था। कहा जा रहा है कि इस बैठक में मनोज खास मेहमान था। शहर की कृष्णबाग कॉलोनी में डेढ़ सौ मकान टूटने पर जब सुप्रीम कोर्ट ने स्टे दिया था। तब मनोज के साथ पार्षद संगीता जोशी, उनके पूर्व सांसद प्रतिनिधि पति ने जमकर खुशियां भी बांटी थीं। ये घटना इंदौर में पनप रहे क्राइम और बढ़ रहे हौसलों की तरफ तो इशारा करती है। बीजेपी नेताओं के कथित करीबी पर गोली चलाने का मामला ये जाहिर भी करता है कि कुछ तो है जो बीजेपी की जड़ें कमजोर करने में लगा हुआ है।
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जयस के आंदोलन ने उड़ाई बीजेपी नेताओं की नींद
जयस के आंदोलन ने भी इंदौर में बीजेपी नेताओं की नींद उड़ाई। मालवा के कुछ इलाकों में जयस पहले भी अपनी ताकत दिखा चुकी हैं। एमवाय अस्पताल के चूहा कांड में जयस ने जिस तेजी से आंदोलन किया। उससे जाहिर है कि जयस का फोकस अब इंदौर पर शिफ्ट हो सकता है। ये कांग्रेस के साथ साथ बीजेपी के लिए भी चिंता की बात है। हालांकि जयस ने अपना बड़ा आंदोलन स्थगित कर दिया है।
क्या इंदौर में कमजोर हो रहीं बीजेपी की जड़ें?
इस बीच दो युवाओं ने बड़ी रैली कर भगत सिंह की जयंती मना डाली और तिरंगा यात्रा के नाम पर शक्ति प्रदर्शन भी किया। इसे नजरअंदाज करना भी बीजेपी के लिए भारी पड़ सकता है। ये सारी घटनाएं ये साफ इशारा कर रही हैं कि इंदौर में बीजेपी की जड़ें कमजोर हो रही हैं। और, अगर कमजोर न भी मानी जाएं तो ये तो दिख ही रहा है कि उन जड़ों को काटने की तैयारी जोर शोर से और चारों तरफ से चल रही है। हालांकि हालात तो कांग्रेस के लिए भी अच्छे नहीं है।
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आखिर दिग्विजय सिंह को किसने रोका?
एकलव्य गौड़ के खिलाफ हो रहे कर्मचारियों के प्रदर्शन को समर्थन देने खुद दिग्विजय सिंह ने शीतलामाता बाजार जाने का फैसला लिया था। इसको लेकर कांग्रेस में खासा बवाल मचा। पहले तो कांग्रेस नेता ये कोशिश करते रहे कि दिग्विजय सिंह वहां न जाए। नए-नए युवा कांग्रेसियों ने खांटी राजनेता को इसका नफा-नुकसान समझाने तक की कोशिश कर डाली। लेकिन, दिग्विजय सिंह नहीं माने तो पुलिस प्रशासन का सहारा तक ले लिया गया। संबंधित थाने की पुलिस दिग्विजय सिंह को रोकने के लिए एक्टिव नजर आई और दिग्विजय सिंह को बाजार नहीं जाने दिया। अंदरूनी खबर ये है कि खुद जीतू पटवारी और दूसरे कांग्रेसी ये नहीं चाहते थे कि दिग्विजय सिंह वहां तक जाएं। जीतू पटवारी और चिंटू चौकसे पर पुलिस के साथ गठजोड़ के भी आरोप लग रहे हैं।
कुल जमा इंदौर में वो सब हो रहा है जो पहले कभी नहीं हुआ। कांग्रेस यहां पैर जमाने में बहुत कामयाब नहीं रही। पर अब ये साफ दिख रहा है कि बीजेपी ओवर कॉन्फिडेंट हुई या जल्दी एक्टिव नहीं हुई तो उसकी जमीन जरूर हिल सकती है।
इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक (News Strike) के लेखक हरीश दिवेकर (Harish Divekar) मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं