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Photograph: (thesootr)
NEWS STRIKE : बीजेपी की जिला कार्यकारिणी भी आपसी विवाद और कलह का शिकार हो रही हैं। न्यूज स्ट्राइक में हम लगातार आपको ये बता रहे हैं कि मध्यप्रदेश बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं है। ग्वालियर चंबल, बुंदेलखंड, विंध्य कोई भी अंचल ले लीजिए दिग्गज नेताओं के मन मुटाव और खींचतान की खबरें आप सुन ही लेंगे।
पिछले ही एपिसोड में हमने आपको ये भी बताया था कि हालात ठीक करने के लिए बीजेपी ने समन्वय टोली भी बनाई है। ये टोली क्या करने वाली है और इसकी क्या कमियां हैं ये आप न्यूज स्ट्राइक के पिछले एपिसोड में देख सकते हैं। लिंक आपको डिस्क्रिप्शन बॉक्स में मिल जाएगी।
कार्यकारिणी बनने के बाद से ही होने लगे विवाद
फिलहाल हम बात करते हैं बीजेपी की जिला कार्यकारिणियों की। बीजेपी ने संगठन स्तर पर 62 टीम तैयार करने का फैसला लिया है। जिनमें से 30 में कार्यकारिणी घोषित हो चुकी है।
आमतौर पर जब बीजेपी की टीम तैयार हो जाती है उसके बाद अनुशासन इस कदर कस दिया जाता है कि कोई शिकवा शिकायत सुनाई नहीं देता, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इस बार बीजेपी की कार्यकारिणी बनने के बाद से लगातार विवाद भी सामने आ रहे हैं।
इसकी शुरुआत मऊगंज से हुई। मऊगंज जिला कुछ ही समय पहले बना है। यहां बीजेपी ने अपनी टीम तैयार की और उपाध्यक्ष बनाया राहुल गौतम को। बता दें की राहुल गौतम, गिरीश गौतम के बेटे हैं, लेकिन इसके बाद उनका इस्तीफा भी जल्द ही ले लिया गया।
इसके बाद मंडला में संपतिया उईके की बेटी और सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते की बहनों को जिले में अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन उनसे भी इस्तीफा ले लिया गया।
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सिंगरौली से राजेश तिवारी ने दिया इस्तीफा
इसके बाद सिंगरौली का मामला सामने आया है। यहां बीजेपी ने राजेश तिवारी को जिला उपाध्यक्ष बनाया, जबकि तिवारी ने अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी जताई थी। शायद इसी नाराजगी के चलते तिवारी ने उपाध्यक्ष का पद भी नहीं लिया और इस्तीफा दे दिया। तिवारी का कहना है कि वो दो जिला उपाध्यक्ष रह चुके हैं।
इसके अलावा जिला महामंत्री, युवा मोर्चा अध्यक्ष, मीडिया प्रभारी जैसे तमाम पद भी संभाल चुके हैं। इसलिए उन्हें पार्टी से कोई अहम पद मिलने की उम्मीद थी। हालांकि, तिवारी ने इस विवाद को ये कहकर संभाला भी कि वो पार्टी के लिए काम करते रहे हैं और आगे भी करेंगे।
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आगर मालवा में ओम मालवीय से नाराजगी
अब बात करते हैं आगर मालवा की। यहां बीजेपी ने ओम मालवीय को जिला अध्यक्ष बनाया, लेकिन सौंधिया राजपूत समाज उनके खिलाफ प्रदेश भाजपा कार्यालय तक आ गया। पार्टी ऑफिस में प्रदेशाध्यक्ष से मुलाकात नहीं हो सकी तो उनके घर ही पहुंच गए। सौंधिया राजपूत समाज ने जाति को लेकर तो कुछ आपत्तियां जाहिर की ही हैं। साथ ही उन्होंने मौजूदा जिलाध्यक्ष के बर्ताव को लेकर भी शिकायत दर्ज करवाई है।
असल नाराजगी इस बात को लेकर है कि मालवीय पहले एनएसयूआई में रहे हैं, लेकिन कुछ साल पहले बीजेपी में आए और उन्हें ये अहम पद मिल गया इससे पार्टी के नेता खासे नाराज हैं। सौंधिया राजपूत समाज का ये दावा भी है कि जिले की दो सीटों आगर और सुनसनेर पर वो बड़ी संख्या में है. इसलिए जिलाध्यक्ष उनके समाज से होना चाहिए।
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जिलास्तरीय टीम बनाने में बीजेपी में गफलत
जिला कार्यकारिणी में विवाद के ऐसे मामले पहले भी आते रहे हैं। आपको याद होगा कि साल की शुरूआत में जब जिलाध्यक्षों का नाम फाइनल होना था। तब भी बीजेपी में जमकर खींचतान मची थी। जिलाध्यक्षों का नाम फाइनल करने में ही बड़े नेताओं का कभी ईगो आड़े आया तो कभी ये फैसला शक्ति प्रदर्शन का जरिया बन गया था।
ये विवाद अपनी जगह है। हर पार्टी में जब नई नियुक्तियां होती हैं। तब इसी तरह के विवाद सामने आते हैं। हमारा सवाल ये है कि बीजेपी क्यों बार-बार अपने ही संगठन को कसने में नाकाम हो रही है। जिलास्तरीय टीम बनाने में तो बीजेपी में बड़ी-बड़ी गफलत सामने आ रही है।
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परिवारवाद को लेकर बीजेपी की लाइन क्लियर
मसलन हम वापस मऊगंज की सीट की बात करते हैं। यहां विधायक के बेटे के बेटे राहुल गौतम को पद मिलने के बाद इस्तीफा लिया गया। एक परिवार एक पद के फॉर्मूले की याद आते ही पार्टी ने ये फैसला लिया। ये फैसला 31 अगस्त को लिया गया। जिसे बाद में पलटा गया।
इसके बाद सात सितंबर को मंडला जिला कार्यकारिणी का ऐलान हुआ। यहां भी वही गलती हुई। मंत्री की बेटी और सांसद की बहन को अहम पद सौंप दिए गए। संगठन स्तर पर ये जानकारी मिलने पर दोनों का इस्तीफा लिया गया। क्या ये संगठन के लेवल पर बड़ी लापरवाही नहीं है। सिर्फ लापरवाही ही नहीं, बात हैरान करने वाली भी है।
परिवारवाद को लेकर बीजेपी की लाइन हमेशा ही क्लियर रही है, लेकिन इस बार चंद ही दिनों के अंतराल पर ये गलती दो जगह नजर आई और पार्टी को अपना ही फैसला पलटना पड़ा। ये पार्टी में मौजूद कम्यूनिकेशन गैप साफ तौर पर दिखाता है।
हेमंत खंडेलवाल को समय पर एक्शन लेने की जरूरत
आगर मालवा के विवाद से भी ये साफ जाहिर है कि बीजेपी संगठन में पुराने नेता और दलबदलू नेताओं को लेकर नाराजगी निचले लेवल तक है। कुछ पुराने नेता भी असंतोष का शिकार हैं। अगर ये हालात जिला लेवल तक हैं तो क्या नौ लोगों की समन्वय टोली, इस नाराजगी को आसानी से दूर कर सकेगी।
पहले की तरह कसावट लाने के लिए बीजेपी को जबरदस्त तरीके से तैयारी करनी होगी। क्योंकि अब तक के ये फैसला जितना आम लोगों को चौंका रहे हैं उससे कहीं ज्यादा बीजेपी के लिए चिंता बढ़ाने वाले हैं।
हेमंत खंडेलवाल को अध्यक्ष बने अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। पर ये छुटपुट नाराजगियां और घटनाएं ये साफ इशारा करती हैं कि सही समय पर सही फैसले और एक्शन नहीं लिया गया तो जमीनी स्तर पर पार्टी का संगठन बिखरते देर नहीं लगेगी।