News Strike : पीएम मोदी ने MP से दिया ट्राइबल विलेज का विजन, आदिवासी सीटों पर मजबूत होगी BJP?

News Strike : प्रधानमंत्री मोदी ने मध्यप्रदेश में आदिवासी गांवों के विकास के लिए "ट्राइबल विलेज विजन" पेश किया। इस पहल से आदिवासी समाज के लिए एक व्यापक योजना बनाई जाएगी। बीजेपी का लक्ष्य आगामी चुनावों में आदिवासी वोटबैंक को सशक्त करना है।

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Harish Divekar
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Photograph: (THESOOTR)

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न्यूज स्ट्राइक ( NEWS STRIKE ) : 75वें जन्मदिन पर पीएम मोदी ने धार में पीएम मित्र पार्क के साथ मध्य प्रदेश को एक और सौगात दी है। ये सौगात है ट्राइबल विलेज विजन की। ये सुनकर लग सकता है कि पीएम मोदी ने जनजातीय गांवों के हित में बड़ी पहल की है। असल में देखा जाए तो ये एक बड़ी रणनीति है। 

इस एक सौगात से बीजेपी आने वाले चुनावों में बड़े वोट बैंक को साध रही है। वो भी एक नहीं मध्यप्रदेश से सटे करीब तीन राज्यों में इसका असर दिखाई दे सकता है। चुनाव तीन साल दूर है पर बीजेपी ने जनजातीय वोटबैंक की तरफ बड़ा और मजबूत कदम बढ़ा दिया है। 

आदिसेवा पर्व 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक चलेगा

सबसे पहले डिकोड करते हैं कि ट्राइबल विलेज विजन आखिर है क्या। बीजेपी ने इसे अलग-अलग नाम दिए हैं। इसे आदि सेवा पर्व भी कहा गया है। ट्राइबल विजन 2030 भी कहा गया है। आदिसेवा पर्व की शुरुआत आज यानी 17 सितंबर से शुरू हुई है और 2 अक्टूबर तक ये पर्व जारी रहेगा।

इस अभियान के तहत बीजेपी ने एक बड़ी टीम बनाने का लक्ष्य रखा है। इस टीम में तीन लाख से ज्यादा लोग होंगे। जिन्हें चेंज लीडर्स का नाम दिया गया है। ये लोग मास्टर ट्रेनर, ड्रिस्ट्रिक्ट मास्टर ट्रेनर से लेकर विकास खंड, ब्लॉक लेवल तक होंगे। 

अलग-अलग स्वसहायता समूह, एनजीओज और सांस्कृतिक हस्तियों को इस तरह इस पर्व से जोड़ा जाएगा। ये सब मिलकर जनजातीय गांवों के विकास का विजन तैयार करेंगे। एक ऐसा खाका जो समय लेगा, लेकिन गांवों की सूरत बदलने के लिए जमीनी स्तर पर काम करेगा।

गांव-गांव में आदि सेवा केंद्र स्थापित किए जाएंगे। इन केंद्रों के जरिए शिकायत निवारण और सेवा वितरण के काम होंगे। पूरा एक कैलेंडर तैयार किया जाएगा जो गांव के विकास कार्यक्रमों से जुड़ा होगा। 

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जनजातीय समाज को शिक्षा और आय का मिलेगा लाभ

बीजेपी का मानना है कि इससे जनजातीय समाज में आत्मविश्वास बढ़ेगा। गरीबी भी कम होगी। जनजातीय समाज की बच्चियों को शिक्षा मिल सकेगी। साथ ही मातृ और शिशु मृत्युदर घटेगी। क्वालिटी ऑफ लाइफ और अर्निंग पर भी इसका असर पड़ेगा। ये तो हुई जनजातीय समाज यानी कि आदिवासी समाज के विकास की बात।

सरकार ने जैसा सोचा है सब कुछ उसी तरह हुआ तो यकीनन आदिवासी समाज की तरक्की को कोई नहीं रोक सकता। इसके साथ ही बीजेपी को इस से जो फायदा होगा उसका अंदाजा लगाना भी आसान नहीं है।

बीजेपी की आदिवासी वोटबैंक में सेंधमारी रही है कामयाब 

पिछले कुछ चुनावों के नतीजे देखते हुए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ये मान चुके हैं कि आदिवासी वोटर्स प्रदेश के किंग मेकर्स हैं। ये वोटबैंक अमूमन कांग्रेस की तरफ झुकाव रखता है। इसे कांग्रेस अपना कोर वोटबैंक कह सकती है। 

पिछले कुछ चुनाव से बीजेपी इस वोटबैंक में सेंधमारी की कोशिश कर रही है और काफी हद तक कामयाब भी रही है। न सिर्फ मध्यप्रदेश में बल्कि छत्तीसगढ़ और गुजरात में भी एसटी समुदाय में बीजेपी की पकड़ मजबूत हो रही है। 

2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को एसटी आरक्षित 27 सीटों में से 23 हासिल हुई। कांग्रेस को सिर्फ तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा, जबकि 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 15 सीटें जीतने में कामयाब रही थी।

इस जीत को समझते ही बीजेपी ने गुजरात और आसपास के प्रदेशों में आदिवासी नेताओं को इस समुदाय के वोट्स प्रबंधन का जिम्मा सौंप दिया था। साल 2018 में थोड़ी चूक हुई, लेकिन साल 2023 तक बीजेपी ने अपने नुकसान को पूरी तरह कवर कर लिया। 

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90 से 100 सीटों पर आदिवासी वोटबैंक है निर्णायक 

फिलहाल 2011 की जनगणना के मुताबिक बात करते हैं। प्रदेश की आबादी के 21.5 फीसदी लोग एसटी वर्ग से आते हैं। इस लिहाज से हम कह सकते हैं कि प्रदेश का हर पांचवा व्यक्ति आदिवासी वर्ग का हो सकता है। इसी हिसाब से विधानसभा की 230 में से 47 सीटों को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रखा गया है।

इन 47 सीटों के अलावा 90 से 100 सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी वोटबैंक निर्णायक होता है। बीजेपी की जब पहली बार सरकार बनी तब प्रदेश के आदिवासियों का उसे अच्छा खासा साथ मिला। हम बात कर रहे हैं साल 2003 के चुनाव की। तब आदिवासी वर्ग की 41 सीटें ही हुआ करती थीं। जिसमें से 37 बीजेपी के खाते में आई। कांग्रेस दो और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी दो सीटें हासिल करने में कामयाब रही।

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2018 में 47 में से केवल 16 सीटें ही जीत सकी बीजेपी 

2008 में आरक्षित सीटें 47 हो गईं। बीजेपी ने 29 जीती। कांग्रेस का ग्राफ बढ़ा और 17 सीटें जीतने में कामयाब रही। बात करें 2013 के विधानसभा चुनाव की तो बीजेपी ने 31 जीतीं और कांग्रेस ने 15, लेकिन साल 2018 के चुनाव में बीजेपी के समीकरण बुरी तरह लड़खड़ाए और एसटी आरक्षित 47 सीटों में से वो केवल 16 सीटें ही जीत सकी। कांग्रेस ने डबल छलांग लगाई और 30 सीटें अपने नाम कर ली। एक सीट पर निर्दलीय का कब्जा हुआ। 

ये हार बीजेपी के लिए आंखें खोल देने वाली हार साबित हुई। ये वो चुनाव था जिसके बाद कई दिनों तक प्रदेश में बड़ी और एतिहासिक सियासी उथल पुथल भी नजर आई।

कांग्रेस सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही और बीजेपी चंद सीटों के फासले से सिंहासन खो बैठी। इसके बाद साम, दाम, दंड, भेद जैसी किसी भी नीति से बीजेपी सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही। 

सबसे पहले जनजातीय सीटों पर ही राजनीतिक सर्जरी शुरू की। न सिर्फ प्रदेश स्तर के नेता बल्कि राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने भी इसमें अपनी सक्रियता दिखाई। पीएम मोदी के जनजातीय गौरव दिवस में शामिल होना इस बात का सबूत है। 

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पीएम मोदी ने आदिवासियों के लिए खास विजन किया पेश

नतीजा ये हुआ कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी आदिवासियों ने बीजेपी का ही साथ दिया। बीजेपी ने करीब 24 आदिवासी सीटों पर जीत दर्ज की। इस चुनाव के नतीजों की एक इनसाइट ये भी रही कि निमाड़ की कुछ जातियां जैसे भील भिलाला और बारेला ने कांग्रेस का साथ दिया। शायद यही वजह है कि इस बार भी मालवा निमाड़ के इलाके से पीएम मोदी आदिवासियों के लिए खास विजन पेश कर गए हैं।

उम्मीद की जा सकती है कि गांव के विकास का रोड मैप बीजेपी की जीत का रोड मैप भी बन सकता है। हालांकि, चुनाव में अभी काफी वक्त है। कांग्रेस अगर समय रहते कोई रणनीति तैयार करती है तो जाहिर है कि बीजेपी की इस रणनीति को बड़ी चुनौती दे सके।

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