News Strike : जिला कार्यकारिणी गठन में BJP की रफ्तार सुस्त क्यों? निकाय चुनाव पर दिखेगा असर

मध्य प्रदेश में बीजेपी की जिला कार्यकारिणी गठन में सुस्ती आई है, जिससे नगरीय निकाय चुनाव पर असर पड़ सकता है। संगठन विस्तार में बगावत और असंतोष का डर है। बीजेपी आलाकमान नए प्रदेशाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल की निगरानी में काम कर रही है, लेकिन प्रक्रिया धीमी है।

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Harish Divekar
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News Strike bjp district executive

Photograph: (News Strike)

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NEWS STRIKE ( न्यूज स्ट्राइक ) : मध्यप्रदेश में बगावत के सुर कांग्रेस में सुनाई देते हैं और सतर्क बीजेपी हो जाती है, लेकिन ऐसे सतर्क होने का भी क्या फायदा कि नुकसान भी अपना ही जाए। ये पूरा माजरा क्या है, उस पर विस्तार से बात करने से पहले ताजा खबर भी सुन ही लीजिए। 

मोहन कैबिनेट में मध्यप्रदेश नगरपालिका संशोधन अध्यादेश 2025 को कल ही मंजूरी मिल चुकी है। जिसके बाद प्रदेश में 397 नगर पालिका और परिषदों में अध्यक्ष चुनने के लिए सीधे चुनाव कराने का रास्ता साफ हो चुका है। बीच में आई कमलनाथ सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से अध्यक्ष चुनने का प्रावधान किया था। जिसे इस फैसले के जरिए बदलने की तैयारी है। अब जो हम आपको बताने जा रहे हैं उस बात का और इस खबर का सीधा कनेक्शन है। 

जनता में सीधी पकड़ होना बहुत जरूरी

प्रत्यक्ष चुनाव से आशय ये है कि अब जनता ही चुनेगी कि उनके शहर की नगरपालिका का अध्यक्ष कौन होगा। जाहिर है नगरीय निकाय चुनाव बहुत लोकल लेवल पर होगा और लोकल लेवल पर चुनाव जीतना ही सबसे मुश्किल काम होता है। क्योंकि, जनता में सीधी पकड़ होना बहुत जरूरी होता है।

ये बात पार्टी के प्रत्याशी और पार्टी दोनों पर लागू होगी। इसलिए अगर सीधे जनता के जरिए चुनकर नगरीय निकाय के सर्वोच्च पद पर जाना है तो उस जिले में शहर में या उससे भी छोटी इकाई में मजबूत पकड़ जरूरी होगी। इसके लिए जरूरी है कि जिला लेवल पर संगठन भी बहुत मजबूत हो। बस यहीं बीजेपी अब तक चूक रही है।

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कांग्रेस के पास समय कम और काम मुश्किल है

हुआ यूं कि जिले की टीम बनाते समय कांग्रेस में कुछ बगावती सुर सुनाई दिए। जिसके बाद बीजेपी फिर हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है। कांग्रेस में संगठन सृजन अभियान शुरू किया गया है। आलाकमान ने दिल्ली से निर्देश दिए हैं कि तीन महीने के अंदर शहर और जिला अध्यक्षों की नियुक्ति हो जाना चाहिए।

मतलब साफ है ये अभियान तीन महीने तक के लिए जारी रहेगा। कांग्रेस के पास समय कम है, लेकिन काम मुश्किल है। क्योंकि नामों पर रायशुमारी के बीच ही कई तरह के विरोध सुनाई देने लगे हैं। कांग्रेस ने अभी इंदौर शहर और जिलाध्यक्ष का नाम घोषित किया था। उसका विरोध शुरू हो चुका है। ये हालात देखते हुए लग रहा है कि कांग्रेस के लिए नई कार्यकारिणी का गठन बहुत आसान होने वाला नहीं है।

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संगठन विस्तार को लेकर बीजेपी भी सतर्क है

इस बात से बीजेपी भी डरी हुई है। अपने संगठन विस्तार को लेकर बीजेपी काफी सतर्क बनी हुई है। इस वजह से काम चीटी की चाल से आगे बढ़ रहा है। नतीजा ये है कि करीब 26-27 दिन पहले ही आलाकमान से जिला स्तर पर कार्यकारिणी गठन के निर्देश मिले। लेकिन इतने दिनों में सिर्फ 10 जिलों की कार्यकारिणी ही फाइनल हो सकी है।

इससे भी ताज्जुब वाली बात ये है कि ये लोकल लेवल पर टीम बनाने का काम ही सात महीने के इंतजार के बाद शुरू हो सका था और अब भी आधा रास्ता तय नहीं हुआ है। याद दिला दूं कि जिलाध्यक्षों के नाम की घोषणा इस साल जनवरी में ही हो गई थी। 

संगठन के काम की धीमी रफ्तार, बगावत का डर 

नए नवेले प्रदेशाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल अपनी सारी ताकत और पूरे समय का उपयोग नई टीम बनाने पर ही खर्च कर रहे हैं। इसके बाद भी बगावत और असंतोष का डर इस कदर है कि काम रफ्तार ही नहीं पकड़ पा रहा है।

जिला कार्यकारिणी कार्यकारिणी घोषित करने से पहले दो-दो ऑब्जर्वरों को तैनात किया गया था। बताया जा रहा है कि इन ऑब्जर्वरों ने 13 से 16 अगस्त के बीच ही अपनी रिपोर्ट भी खंडेलवाल को सौंप दी थी। इसके बाद भी प्रोसेस शुरू होने में पूरा अगस्त बीत गया और सितंबर भी बस आधा गुजरने को ही है। 

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सही चेहरे का चयन करना भी बना बड़ी चुनौती 

नई टीम के विस्तार से पहले कई जिलों में पेंच अटक रहा है। सूत्रों के मुताबिक ग्वालियर, इंदौर और सागर जैसे जिलों में बड़े नेताओं का प्रभाव बीजेपी के लिए सिरदर्द बन रहा है। कमोबेश ऐसी ही स्थिति कुछ और जिलों में भी नजर आ रही है। जहां से कोई बड़ा या धाकड़ नेता बिलॉन्ग करता हो। कुछ जिलों में नेता पहले से नाराज बैठे हैं। उनके समर्थकों को जगह देने से पहले सोचना समझना जरूरी है।

इसके अलावा टीम को भी अलग-अलग लेवल पर तैयार करना है। हर लेवल के हिसाब से सही चेहरे का चयन करना भी बड़ी चुनौती बना हुआ है। बगावत या नाराजगी का डर इस कदर है कि छोटे से छोटे पद पर तैनात होने वाले नामों पर भी जमकर मंथन हो रहा है। जरूरत पड़ने पर दिल्ली से भी सलाह लेने का ऑप्शन भी रखा गया है।

अंदरूनी असंतोष को खत्म करने की कोशिश 

बीजेपी ने एक व्यक्ति एक पद के फॉर्मूले का भी पूरा ध्यान रखा है। कोशिश है कि किसी विधायक, सांसद या किसी और पदाधिकारी को ऐसा कोई मौका न दिया जाए। इस फॉर्मूले के जरिए पार्टी अंदरूनी असंतोष को भी खत्म करने की कोशिश में है, लेकिन स्थानीय नेता और कार्यकर्ताओं को और उनकी पसंद को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहती है।

नए प्रदेशाध्यक्ष की कोशिश ये है कि बिना किसी विरोध के जिला लेवल पर कार्यकारिणी गठन का काम पूरा हो सके। क्योंकि उसके बाद ही प्रदेश स्तर पर बात आगे बढ़ सकेगी। 

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निकाय चुनाव अग्निपरीक्षा से नहीं होंगे कम

पर बगावत का डर है कि खत्म ही नहीं हो रहा। जिस वजह से प्रदेश स्तर की टीम तक बात पहुंचने में और भी वक्त लग सकता है। ऐसा नहीं है कि बगावत या नेताओं की नाराजगी पहले कभी सामने नहीं आई है। पर हेमंत खंडेलवाल शायद इस तनाव से बचने की कोशिश में है।

जाहिर है जितनी कम नाराजगी दिखेगी आलाकमान के सामने छवि भी उतनी ही बेहतर बनेगी। दूसरी वजह ये भी है कि कांग्रेस नेतृत्व भी मध्यप्रदेश को लेकर संजीदा हो चुका है। प्रदेश स्तर पर कांग्रेस में भी नई टीम का गठन शुरू हो गया। यानी आने वाले स्थानीय निकायों के चुनाव दोनों ही दलों के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे।

इस अग्निपरीक्षा में पास होना बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल के लिए भी जरूरी है। शायद इसलिए उनकी कोशिश है कि लोकल लेवल पर टीम इतनी मजबूत हो कि जीत भी तकरीबन तय हो जाए। इस धीमी रफ्तार से क्या वो अपने इरादे में कामयाब हो पाएंगे, ये देखने वाली बात होगी।

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