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Photograph: (The Sootr)
मध्यप्रदेश में खाद की किल्लत का मामला नेताओं के रसूख या कहें कि नाक का सवाल भी बन गया है। खासतौर से बुंदेलखंड में जहां पहले ही बीजेपी नेताओं के बीच रसूख की जंग जारी है। वहां अपना दबदबा दिखाने के लिए नेताओं ने अब खाद को अपना जरिया बना लिया है। किसान का क्या होगा, क्या हो रहा है। वो बाद की बात है। फिलहाल खाद पर सियासत का आलम है कि यहां भी जिस नेता में है दम उसी की सीट के किसानों को खाद आसानी से मिल रही है। हैरान करने वाली बात ये है कि इस मुद्दे पर बीजेपी के आला नेताओं ने भी दखल देते हुए सबको बराबरी की खाद दिलाने की कोशिश नहीं की है।
सरकार में मंत्री या विधायक की रैंकिंग का पैमाना हमेशा उसका परफॉर्मेंस ही रहा है। इस परफॉर्मेंस की जांच जनता के रिस्पॉन्स और स्थान विशेष के कार्यकर्ताओं और नेताओं की रिपोर्ट के आधार पर होती है। लेकिन इस बार खाद के जरिए नेताओं की रैंकिंग आंकी जा रही है या आंकी जा सकती है। खाद की किल्लत के मुद्दे से कोई भी अनजान नहीं है। हम न्यूज स्ट्राइक में इस मुद्दे को जोरशोर से उठा भी चुके हैं। खाद की खातिर किसानों पूरा-पूरा दिन लाइन में लग रहे हैं। फिर भी उन्हें खाद नहीं मिल रही। किसान अपने अपने लेवल पर आंदोलन भी कर चुके हैं। इन आंदोलन की आंच राजधानी भोपाल तक भी आ चुकी है।
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किसानों को खाद दिलाने की जोर आजमाइश
किसानों की तकलीफ अपनी जगह है। लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि खाद की किल्लत पर राजनीति भी जोरों पर है। वो भी सत्ताधारी दल बीजेपी में ही। जहां नेता अपनी अपनी विधानसभा सीटों पर ज्यादा से ज्यादा खाद दिलाने की जोर आजमाइश में जुटे हैं। ये होड़ सबसे ज्यादा बुंदेलखंड में देखी जा रही है।
बुंदेलखंड के सागर जिले में नेताओं के बीच टसल किसी से छिपी नहीं है। इस एक जिले की तीन विधानसभा सीटों पर बीजेपी के तीन बड़े नेताओं ने जीत हासिल की है। एक हैं गोपाल भार्गव, दूसरे भूपेंद्र सिंह और तीसरे हैं गोविंद सिंह राजपूत। तीनों ही अपने अपने समय के बड़े नेता रहे हैं। गोपाल भार्गव सीनियर मोस्ट विधायक कहे जा सकते हैं तो भूपेंद्र सिंह भी शिवराज सरकार में दिग्गज और दमदार मंत्री रहे हैं। लेकिन मोहन सरकार में और गोविंद सिंह राजपूत की सत्ता का उदय होने के बाद से दोनों के सितारे डूब रहे हैं।
गोपाल भार्गव तो काफी समय से साइडलाइन थे। भूपेंद्र सिंह का भी बुरा हाल है। जिन्हें लगातार अपनी ही पार्टी में किनारे किया जा रहा है। खाद की किल्लत के बीच भी उनके साथ ये बर्ताव जारी है। बुंदेलखंड में कौन सा नेता अपने क्षेत्र में कितनी खाद दिलवा पाया। इस आंकड़े पर एक नजर डालेंगे तो ये बात और भी ज्यादा साफ हो जाएगी।
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सबसे आगे गोविंद सिंह राजपूत
बुंदेलखंड में किसानों को खाद दिलाने के मामले में सुरखी विधायक और कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत सबसे आगे हैं। खरीफ सीजन में वो अपने क्षेत्र सुरखी में जिले में सबसे ज्यादा 2 हजार 563.05 मीट्रिक टन खाद ले गए। इसमें डीएपी, यूरिया और एनपीके तीनों ही शामिल हैं।
दूसरे नंबर पर रहे वीरेंद्र लोधी। बंडा विधायक लोधी 1950 से ज्यादा मीट्रिक टन खाद ले जाने में कामयाब रहे। तीसरे नंबर पर रहली विधायक गोपाल भार्गव हैं जो 1850 से ज्यादा मीट्रिक टन खाद ले जाने में कामयाब रहे।
इसका नतीजा ये हुआ कि सागर की आठ में तीन विधानसभा सीटों पर ही 63.7 फीसदी खाद बंट गई। इसके बाद नरयावली को 1564.88, देवरी को 990.47 मीट्रिक टन खाद ही मिल सकी। भूपेंद्र सिंह अपनी सीट खुरई पर सिर्फ 895.07 मीट्रिक टन खाद ही हासिल कर सके। बीना इस मामले में बुरी तरह पिछड़ा। यहां की निर्मला सप्रे केवल 174.63 मीट्रिक टन खाद ही ला सकीं।
यही वजह भी है कि खाद के लिए सबसे ज्यादा विरोध की आवाज बीना से ही सुनाई दे रही है। खाद न मिल पाने के चलते बीना के किसान एक ही हफ्ते में पांच बार विरोध प्रदर्शन भी कर चुके हैं।
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खाद की किल्लत पर राजनीति हावी
खाद की किल्लत एक बात है, लेकिन इस पर हो रही राजनीति भी साफ दिख रही है। बीजेपी में लगातार साइडलाइन हो रहे भूपेंद्र सिंह अपने ही इलाके के किसानों को खाद नहीं दिलवा पा रहे। निर्मला सप्रे के हालात भी जुदा नहीं हैं। लोकसभा चुनाव के समय ये ऐलान हुआ था कि कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे बीजेपी की सदस्यता ले चुकी हैं। उसके बाद वो बीजेपी की रैली में भी दिखीं। हालांकि उसके बाद से बीना को लेकर स्थिति अस्पष्ट ही है। निर्मला सप्रे से बीजेपी के स्थानीय नेता लगातार नाराज हैं। और, कांग्रेस बार-बार उनके इस्तीफे को लेकर मांग उठाती रही है। लेकिन, न तो बीना विधायक ने स्थिति साफ की है और न ही बीजेपी ने। लेकिन खाद की किल्लत को देखते हुए लगता है कि वो खुद राजनीति का शिकार हैं।
भूपेंद्र सिंह के ऐसे हैं हालात
लेकिन भूपेंद्र सिंह के हालात वाकई दयनीय कहे जा सकते हैं। शिवराज सरकार में वो सीएम शिवराज सिंह चौहान के खासमखास रहे हैं। वो गृह विभाग के मंत्री होने का अहम पद भी संभाल चुके हैं। लेकिन अब अच्छे खासे वोटों से जीतने के बाद भी उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिल सकी है। इस बात का भूपेंद्र सिंह अपने अंदाज में अलग-अलग तरह से विरोध भी दर्ज करवाते रहे हैं। विधानसभा के पिछले शीतकालीन सत्र में उन्होंने अपनी ही सरकार के सामने मालथौन गुजरने वाले नेशनल हाइवे 44 पर अवैध वसूली का मामला उठाया। स्कूलों में यौन शोषण के मामले पर भी सदन में उनकी आवाज गूंजी।
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इससे पहले वो डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला के सामने ही पुलिस पर अपने करीबियों को प्रताड़ित करने का आरोप लगा चुके हैं। भूपेंद्र सिंह खुलेआम ये ऐलान कर चुके हैं कि वो बीजेपी में दो नेताओं को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। हालांकि सिंह ने खुद कोई नाम नहीं लिया था लेकिन उनके निशाने पर गोविंद सिंह राजपूत और उनके जरिए बीजेपी में शामिल हुए नेता अरुणोदय चौबे को माना गया। पिछली दिवाली पर उन्होंने दिवाली मिलन समारोह में भी खुलकर अपना विरोध दर्ज करवाया था। तब भी वो अरुणोदय चौबे के खिलाफ बोलने से खुद को रोक नहीं पाए थे। मोहन सरकार बनने के बाद से भूपेंद्र सिंह लगातार अपनी नाराजगी दर्ज करवा रहे हैं। ताज्जुब की बात ये है कि उनकी इस नाराजगी को कम करने का पार्टी स्तर पर कोई खास प्रयास भी नहीं किया गया। और, अब उन्हें कम खाद देना भी ये जाहिर करता है कि पार्टी ने उन्हें हाशिए पर छोड़ दिया है।
इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक (News Strike) के लेखक हरीश दिवेकर (Harish Divekar) मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं