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Photograph: (The Sootr)
मध्यप्रदेश में खाद समस्या: प्रदेश में खरीफ सीजन के दौरान ही खाद की मारामारी है। सर्वाधिक किल्लत चंबल अंचल में हैं। यहां मुरैना में खाद पाने को लेकर किसानों के बीच लट्ठ चले। इससे खाद वितरण केंद्र पर अफरा-तफरी मच गई। खरीफ में यूरिया की किल्लत से हालात अधिक बिगड़े हैं।
खाद को लेकर प्रशासन और किसान आमने-सामने
सरकार प्रदेश में खाद की पर्याप्त उपलब्धता का दावा करती रही है,लेकिन मैदानी हालात इसके उलट हैं। खाद की किल्लत से किसान परेशान हैं। उन्हें एक बोरी खाद पाने के लिए लंबी कतारें लगानी पड़ रही हैं। कई जगह तो अलसुबह से ही खाद वितरण केंद्रों के बाहर कतारें देखी जा सकती हैं। खाद पहले पाने के लिए भी किसानों के बीच धक्का-मुक्की आम बात है।
इसी के चलते सोमवार को मुरैना जिला मुख्यालय के एक खाद वितरण केंद्र पर किसानों के बीच जमकर लट्ठ चले। इससे वहां अफरा-तफरी मच गई। बताया जाता है कि खाद वितरण में गड़बड़ी की आशंका के बीच कुछ किसान पहले से ही अपने हाथों में डंडे लेकर वहां पहुंचे थे। पुलिस अब इस मामले की जांच कर रही है।
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भिंड कलेक्टर खुद निगरानी करने पहुंचे
भिंड में खाद की किल्लत को लेकर क्षेत्रीय विधायक नारायण सिंह व जिला कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के बीच तनातनी पहले ही सामने आ चुकी है। मुरैना में सोमवार को हुई मारपीट की घटना के बाद भिंड जिला प्रशासन अब सतर्क है। जिला कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव मंगलवार को स्वयं खाद वितरण केंद्रों का मुआयना करने पहुंचे।
जिला कलेक्टर ने नवीन कृषि उपज मंडी पहुंचकर पर्ची वितरण व्यवस्था का बारीकी से निरीक्षण किया। उन्होंने किसानों से सीधे बातचीत की और उनकी समस्याएं सुनीं। श्रीवास्तव ने किसानों को भरोसा दिलाया कि “घबराने की जरूरत नहीं है, हर किसान को खाद मिलेगी।” श्रीवास्तव ने दावा किया कि जिले में खाद का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है।
करना पड़ा था लाठीचार्ज
इसी महीने में गत 8 सितंबर को भिंड की वृहतकर सहकारी संस्था और 2 सितंबर को रीवा की करहिया मंडी में भी किसानों के बीच मारपीट की घटनाएं सामने आई थीं। तब भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को हल्के लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा।
यूरिया की मांग बढ़ने से गड़बड़ाए समीकरण
प्रदेश के करीब दो दर्जन से अधिक जिलों में खाद संकट बना हुआ है। खरीफ में सोयाबीन की जगह मक्का का बुवाई रकबा बढ़ने से खाद को लेकर कृषि विभाग के सारे अनुमान गड़बड़ा गए हैं। बीते साल की तुलना में इस बार यूरिया की ही एक लाख मीट्रिक टन मांग अधिक है।
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मांग चार लाख मी.टन की, आवक 25 परसेंट
सूत्रों के मुताबिक, सितंबर माह में ही प्रदेश में करीब चार लाख मीट्रिक टन यूरिया की मांग दर्ज हुई है। जो बीते साल की तुलना में करीब एक लाख मीट्रिक टन अधिक है। इससे कृषि विभाग के सारे अनुमान गड़बड़ा गए है। इसकी उपलब्धता की बात करें तो इस महीन में गत 15 सितंबर तक सिर्फ एक लाख मीट्रिक टन की ही आपूर्ति हुई है, बाकी खाद अगले एक पखवाड़े में आने के आसार हैं। इसी तरह पिछले महीनों में भी यूरिया व अन्य खाद की कमी रही। इसके चलते किसान सड़कों पर आ गए।
वितरण में भी पक्षपात से बिगड़े हालात
इस साल प्रदेश में मक्का का रकबा बढ़ने से यूरिया की मांग 1 लाख मीट्रिक टन बढ़ गई है। ऐसे में कई जिलों में मांग के अनुसार समय पर खाद पहुंच नहीं पा रही है। वहीं, जिन जिलों में खाद उपलब्ध है वहां इसका वितरण ठीक से नहीं हो पा रहा है। इन दो कारणों से ही जिलों में खाद के लिए मारामारी की स्थिति बन रही है।
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पांच लाख हेक्टेयर में बढ़ी मक्का की बोआई
कृषि विभाग के अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, इस बार मक्का और धान के रकबे में वृद्धि होने से यूरिया की मांग अचानक बढ़ी। वर्ष 2025-26 में मक्का का रकबा 20.8 लाख हेक्टेयर हो गया, जबकि पिछले साल यह 15.3 लाख हेक्टेयर था। वहीं, धान का क्षेत्र भी 36.20 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 36.32 लाख हेक्टेयर हो गया। इसके उलट सोयाबीन की बोआई में कुछ गिरावट आई है। इस बार 51.20 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बोआई हुई है, जबकि पिछले साल यह 53.85 लाख हेक्टेयर में हुई थी। सोयाबीन की तुलना में मक्का में अधिक यूरिया का उपयोग होता है, इसी कारण मांग में उछाल आया है।
इन जिलों में ज्यादा बढ़ा मक्का का रकबा
कृषि विभाग के अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश के शिवपुरी, गुना, विदिशा, नर्मदापुरम, हरदा, सिंगरौली, खरगोन, बड़वानी, खंडवा, देवास, अशोकनगर, सागर और दमोह जिले में मक्का का रकबा बढ़ा है। वहीं, धान का रकबा श्योपुर, भिंड, ग्वालियर, शिवपुरी और अशोकनगर में धान की बोआई का क्षेत्र बढ़ा है।
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डीएपी की जगह नकली एसएसपी का विक्रय
खरीफ में यूरिया के साथ ही डीएपी व अन्य खादों की भी मांग है। इधर,खाद की किल्लत का फायदा नकली खाद बेचने वाले जमकर उठा रहे हैं। मप्र किसान कांग्रेस के केदार सिरोही ने कहा कि प्रदेश में डीएपी खाद की भी भारी कमी है। इसके विकल्प के तौर पर सिंगल सुपर फास्फेट यानी एसएसपी थमाया जा रहा है, लेकिन इसकी गुणवत्ता भी घटिया है, बल्कि कई जगह तो एसएसपी खाद के नाम पर किसानों को राख थमाई जा रही है। उन्होंने दावा किया कि प्रदेश मे खपाया जा रहा एसएसपी खाद 90 प्रतिशत तक अमानक है। इसमें 16 प्रतिशत फॉस्फेट की जगह मिट्टी, रेत और घुलनशील अपशिष्ट हैं। सिरोही ने कहा- अमानक खाद किसानों के साथ छलावा है।
खंडवा में यूरिया की कालाबाजारी करने वाले धराए
बीते सप्ताह ही खंडवा में पुलिस ने यूरिया खाद की तीन हजार से अधिक बोरियों की कालाबाजारी करते दो लोगों को दबोचा। इनमें एक जिला सहकारी बैंक का कर्मचारी तो दूसरा ट्रांसपोर्ट कर्मचारी निकला। हमारे संवाददाता मुश्ताक मंसूरी के मुताबिक, पुलिस खाद कालाबाजारी करने वाले रैकेट को खंगाल रही है।
आपूर्ति का 30 फीसदी हिस्सा निजी विक्रेताओं को
प्रदेश में यूरिया का आवंटन केंद्र सरकार से होता है। इसका तीस फीसदी हिस्सा निजी विक्रेताओं को और शेष का वितरण राज्य सरकार के खाद विक्रय केंद्रो से होता है। खाद वितरण के लिए भी सरकार की तीन एजेंसियां हैं। यूरिया के 70 फीसदी आवंटन में से 35 प्रतिशत सहकारी समितियों को और 35 प्रतिशत डबल लॉक यानी मार्कफेड और एमपी एग्रो को चला जाता है। इनके सेंटर जिला स्तर पर पांच या छह होते हैं, जहां खाद लेने वाले किसानों की लंबी लाइनें लग जाती हैं।
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