News Strike : अंबेडकर पर आर पार, क्या प्रदेशाध्यक्ष पद पर बड़ा फैसला लेने को मजबूर होगी BJP?

मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे देश में 26 जनवरी का दिन गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। अगर हम यह कहें कि इसका अगला दिन यानी कि 27 जनवरी प्रदेश में अंबेडकर दिवस की तरह मनने जा रहा है तो भी कुछ गलत नहीं होगा...

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Harish Divekar
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News Strike Ambedkar cross state president Photograph: (thesootr)

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News Strike : वीडी शर्मा हटे तो बीजेपी का अगला प्रदेशाध्यक्ष एससी यानी दलित समाज से होगा। फिलहाल इस फैसले पर मुहर नहीं लगी है। प्रदेश में जिस तेजी से नई सियासत पनप रही है वो ये साफ इशारा कर रही है कि बीजेपी हो या फिर कांग्रेस हो दोनों के लिए दलित वोटर्स को रिझाना मजबूरी बन चुका है। इसके चलते बीजेपी ये बड़ा दांव खेल सकती है। प्रदेश में आने वाली 27 जनवरी को जो पॉलीटिकल हैपनिंग्स हैं, वो इस बात का साफ इशारा है कि दलित सूबे में एक बार फिर दलित राजनीति शुरू हो चुकी है। 

मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे देश में 26 जनवरी का दिन गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। अगर हम यह कहें कि इसका अगला दिन यानी कि 27 जनवरी प्रदेश में अंबेडकर दिवस की तरह मनने जा रहा है तो भी कुछ गलत नहीं होगा। इसकी वजह समझनी है तो पहले केंद्रीय मंत्री अमित शाह का वो बयान सुन लीजिए जिसकी वजह से पिछले दिनों सियासी बवंडर खड़ा हो गया था।

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प्रदेश में क्या होने वाला है 27 जनवरी को

इस बयान के वायरल होने के चंद ही घंटे बाद बीजेपी को अपनी गलती का अहसास हो गया और पार्टी डैमेज कंट्रोल में जुट गई। अब सियासी खींचतान ये है कि कांग्रेस इस मुद्दे को ज्यादा से ज्यादा कैश करने की कोशिश में है तो बीजेपी इस गलती पर पर्दा डालने की पूरी कोशिश तो कर ही रही है। साथ ही जतन इस बात का भी है कि कांग्रेस इस मुद्दे से जुड़े जितने अभियान चलाए उसकी हवा भी निकाल दी जाए। 27 जनवरी को पूरे प्रदेश में ऐसा ही कुछ होने वाला है। 
कांग्रेस 27 जनवरी को महू यानी कि अंबेडकर नगर में जय बापू, जय भीम, जय संविधान नाम के अभियान के तहत एक बड़ी रैली करने जा रही है। इस रैली में कांग्रेस के सभी दिग्गज शामिल होंगे। जिसमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम भी शामिल है। इस रैली के पीछे कांग्रेस की मंशा को समझना मुश्किल नहीं है। लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने संविधान की प्रतियां खूब लहराईं और संविधान बचाओ का नारा भी दिया। इसका असर ये हुआ कि फिजा काफी कुछ कांग्रेस के फेवर में बदल गई।

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27 जनवरी को ही बीजेपी मना रही गौरव दिवस  

अब कांग्रेस इस मामले को ठंडा नहीं होने देना चाहती है। इसलिए गणतंत्र दिवस के अगले ही दिन ये बड़ी रैली करने जा रही है। जाहिर है कांग्रेस इसमें अपनी पूरी ताकत झौंक देगी, लेकिन बीजेपी ने भी इस रैली का रंग फीका करने की पूरी प्लानिंग कर ली है। बीजेपी 27 जनवरी को ही गौरव दिवस मनाने जा रही है, लेकिन ये गौरव दिवस सिर्फ एक जगह नहीं मनेगा। बल्कि, 7 बड़े संभागों में सात बड़े नेता मौजूद होंगे। इसमें अमित शाह भोपाल में, जेपी नड्डा जबलपुर में, नितिन गडकरी इंदौर में और विनोद तावड़े रीवा में सभा करेंगे। मुख्यमंत्री मोहन यादव ग्वालियर में रहेंगे। दो अन्य केंद्रीय नेता सागर और उज्जैन संभाग में भी सभाएं करेंगे।

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प्रदेश की आबादी में बीस फीसदी हिस्सा दलितों का

अब इसमें कोई राय नहीं की जब पांच बड़े नेता खुद प्रदेश में मौजूद होकर कोई कार्यक्रम करेंगे तब जनता और मीडिया का पूरा ध्यान उसी तरफ चला जाएगा। इस माहौल को देखकर अगर हम यह कहें कि अब मध्यप्रदेश दलित राजनीति की रणभूमि में तब्दील हो रहा है तो भी कुछ गलत नहीं होगा। संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर की जन्मभूमि से इस रण का आगाज करने के पीछे भी सियासी स्ट्रेटजी है। दलित समुदाय इस शहर को किसी पवित्र स्थान की तरह मानता और पूजता है। इसलिए महू इस राजनीति का बड़ा केंद्र बनता नजर आ रहा है। इस समुदाय के सियासी समीकरण समझें तो पिक्चर और क्लियर होगी। प्रदेश की जितनी आबादी है, उसका बीस फीसदी हिस्सा दलितों का है। जिसमें वोटर्स की संख्या करीब 80 लाख के आसपास है। ये हार जीत तय भले ही न कर सकें, लेकिन हार जीत को प्रभावित करने की ताकत जरूर रखते हैं। एक तरह से इस समुदाय को कुछ हिस्सों में किंग मेकर भी कहा जा सकता है। ये वोट बैंक ऐसा वोटबैंक है जो कांग्रेस का कोर वोटर रहा है। ऐसे में बीजेपी इस वोट बैंक में मजूबत पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। ताकि कांग्रेस को नाकाम कर सके।

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केवल एक बार प्रदेश अध्यक्ष बना दलित चेहरा 

इसलिए ये माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी का प्रदेशाध्यक्ष दलित समाज से हो सकता है। बीजेपी की 1980 में स्थापना के बाद से अब तक केवल एक बार ही दलित वर्ग के चेहरे को अध्यक्ष बनने का मौका मिला। वो भी बहुत कम समय के लिए। ये चेहरा हैं सत्यनारायण जटिया। जिन्हें साल 2006 में मनोनीत कर अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन वो सिर्फ नौ महीने ही इस पद पर रह सके। उनसे पहले और न ही उनके बाद कभी दलित समाज को ये मौका दोबारा मिला। इसलिए अब ये सुगबुगाहटें तेज हैं कि पार्टी न सिर्फ प्रदेश के लेवल पर बल्कि, राष्ट्रीय स्तर पर भी एससी समुदाय के किसी फेस को ये मौका दे सकती है।

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चौंकाने वाला हो सकता है प्रदेश अध्यक्ष का नाम

हालांकि, इस रेस में नरोत्तम मिश्रा, हेमंत खंडेलवाल, गजेंद्र पटेल जैसे नाम काफी आगे चल रहे हैं। इसके बाद दो आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते और सुमेर सिंह सोलंकी का नाम है, लेकिन दलित समुदाय से कोई दमदार नाम सामने नहीं आया है। ऐसे में बीजेपी अगर दलितों पर बड़ा दांव खेलना चाहती है तो किसी दलित नेता की लॉटरी भी लग सकती है, जैसे लाल सिंह आर्य या कोई अन्य नेता और वो चेहरा चौंकाने वाला भी हो सकता है।

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