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बीजेपी में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के बाद अब लगता है प्रदेशाध्यक्ष का ऐलान करना भी आसान नहीं होगा। प्रदेशाध्यक्ष को लेकर खींचतान शुरू हो गई है। अंदरखानों की खबरों की माने तो एक नेता का नाम फाइनल हो चुका है। और, एक सीनियर नेता ऐसे हैं जिनके घर पर जबरदरस्त भीड़ लगने लगी हैं। पार्टी के बड़े बड़े नेता उनके घर के चक्कर काट रहे हैं। पर माजरा कुछ अजीब सा लगता है। मैं जिस सीनियर नेता की बात कर रहा हूं उनका नाम है नरोत्तम मिश्रा। जो प्रदेशाध्यक्ष की दौड़ में बहुत स्पीड से आगे बढ़ रहे हैं। पर उनके घर नेताओं का लगातार आना जाना, कुछ सवाल जरूर खड़े कर रहा है। क्या वाकई नरोत्तम मिश्रा के नाम पर मुहर लग गई है या फिर प्रेशर पॉलीटिक्स का चक्रव्यूह रचा जा रहा। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, इसके लिए आपको प्रदेश के मौजूदा सियासी हलचलों को जानना बहुत जरूरी है
आलाकमान से मुलाकात के लिए पहुंच रहे हैं बड़े नेता
जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के बाद बीजेपी में हलचलें कुछ ज्यादा ही तेज हो गई हैं। प्रदेश के कुछ बड़े नेता अचानक आलाकमान से मुलाकात करने पहुंच रहे हैं। इसमें सीएम मोहन यादव का नाम भी शामिल है जो 13 फरवरी को दिल्ली पहुंचे और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले। दूसरा नाम वीडी शर्मा का है। जो कुछ ही दिन पहले दिल्ली होकर आए। डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल भी कुछ दिन पहले दिल्ली गए और सीधे पीएम मोदी से मिलकर आए।
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इन मेल मुलाकातों के बाद राजेंद्र शुक्ल के नाम पर प्रदेशाध्यक्ष की मुहर लगने की अटकलों ने भी जोर पकड़ लिया था। वैसे तो हर मुलाकात के बाद नेता उसे सौजन्य भेंट का नाम देते रहे। पर, अंदर खानों में इसे प्रदेशाध्यक्ष के मुद्दे पर हुई मुलाकात बताया जा रहा है। आपको याद ही होगा भारी रस्साकसी के बीच जिला अध्यक्षों के चुनाव पूरे हुए। बीजेपी ने बहुत सोचने समझने के बाद सारी लिस्ट रात नौ बजे के बाद जारी की। और जहां जहां से विरोध फूटने का डर सताया, उन्हें सुबह होने से पहले ही मैनेज भी कर लिया गया। लेकिन, जिलाध्यक्षों के लिए ही इतना मंथन ये इशारा करता है कि बीजेपी को गुटबाजी और असंतोष पर काबू रखने के लिए अब भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। अब जब इतनी मगजमारी जिलाध्यक्ष के पद के लिए हो चुकी है तो प्रदेशाध्यक्ष के लिए कितनी होगी। ये समझा जा सकता है।
नरोत्तम मिश्रा के नाम की अटकलें जोरों पर
ये दो अटकलें इस पद को लेकर बहुत तेजी से सियासी गलियारों में भूचाल ला रही हैं। इनके अलग अलग मायने हो सकते हैं। आप उनका क्या मतलब निकालेंगे। ये आप पर है। फिलहाल एक समीकरण की बात करते हैं।
प्रदेशाध्यक्ष के पद पर नरोत्तम मिश्रा के नाम की अटकलें बहुत जोरों पर हैं। ये माना जा रहा है कि बीजेपी जिस तरह से राज्यों में सोशल इंजीनियरिंग कर रही है, उससे वीडी शर्मा के रिप्लेसमेंट के रूप में नरोत्तम सबसे मुफीद किरदार होंगे। अव्वल तो वे सामान्य वर्ग से आते हैं, दूसरा केंद्र में भी उनकी पूछपरख है। उन्हें हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जहां उनके प्रभार वाली सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। इस सफलता ने पार्टी नेतृत्व की नजर में उनका कद और बढ़ा दिया है। ऐसे में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रदेश संगठन में उन्हें कोई बड़ी भूमिका मिल सकती है। उनके जैसे कद के नेता के लिए प्रदेशाध्यक्ष के अलावा और क्या पद हो सकता है। निगम मंडल के अध्यक्ष जैसी जिम्मेदारियों उनके तजुर्बे के आगे बहुत छोटी नजर आती हैं। पर एक नाम और है जो उन्हें टक्कर देता हुआ भी दिख रहा है। बहुत सारे नामों की रेस में नरोत्तम मिश्रा थोड़ा आगे निकले हैं। और उनके साथ बराबरी से जो नाम रेस में बना हुआ है वो नाम है हेमंत खंडेलवाल।
अब मध्य प्रदेश में प्रदेशाध्यक्ष पद की रेस में ये दो नाम सबसे आगे चलते दिख रहे हैं। मुहर किस पर लगेगी। ये तो कुछ दिनों में पता चल ही जाएगा। लेकिन उससे पहले बड़े नेताओं ने नरोत्तम मिश्रा के घर के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हैं।
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5 दिन में तीन बड़े नेताओं ने की नरोत्तम के बंगले पर जाकर मुलाकात
पिछले पांच दिन में बीजेपी के तीन बड़े नेता नरोत्तम मिश्रा से उनके बंगले पर जाकर मिल चुके हैं। 9 फरवरी को बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने नरोत्तम से मुलाकात की थी। फिर 12 फरवरी को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, मंत्री तुलसी सिलावट और पूर्व मंत्री प्रभुराम चौधरी के साथ नरोत्तम के बंगले पर पहुंचे और बंद कमरे में उनसे बातचीत की। अब 13 फरवरी को बीजेपी मध्यप्रदेश के प्रभारी डॉ. महेंद्र सिंह ने नरोत्तम के बंगले पर पहुंचकर उनसे चर्चा की। इससे पहले बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल जैसे नेताओं से भी नरोत्तम की बात हुई है।
ये मुलाकातें आखिर क्या इशारा करती हैं। अगर नरोत्तम मिश्रा को प्रदेशाध्यक्ष बनाना ही है तो फिर मेल मुलाकातों की जरूरत ही नहीं ऐलान ही काफी है। वो तो खुद इस ऐलान को सुनने के लिए पलक पावड़े बिछा कर बैठे हैं। इतनी मुलाकातें, इतनी बैठकें और इतनी बातचीत तो तब होती है जब मान मनुहार का दौर चल रहा है। तो क्या पार्टी के बड़े नेताओं को नरोत्तम मिश्रा को मनाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई है।
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क्या शुरू हो गई प्रेशर पॉलिटिक्स ?
क्या नरोत्तम मिश्रा ने पार्टी में प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू कर दी है। जिसे रोकने के लिए सारे बड़े नेता ड्यूटी पर लग गए हैं। क्योंकि अगर पद मिल रहा होता तो इतनी मीटिंग्स की कोई नौबत नहीं आती। जिस तरह से सियासी मेल मुलाकातों का दौर चल रहा है, उससे ये पक्का है कि अंदर ही अंदर कोई सियासी खिचड़ी पक रही है। हालांकि राजनीति के जानकार इसे दूसरे नजरिए से भी देखते हैं। इसके पीछे वे बीजेपी की रणनीति बताते हैं। होता कुछ यूं है कि जिस नेता का नाम चर्चा में लाया जाता है, मीडिया और बाकी नेताओं का फोकस उसकी तरफ हो जाता है। इन सबके बीच एक नए नाम का ऐलान होने की संभावना बढ़ जाती है। तो क्या ये नरोत्तम मिश्रा का ध्यान डाइवर्ट करने की कोई पॉलीटिक्स है या फिर उन्हें मनाया जा रहा है ताकि पद न मिलने पर भी वो शांत रहें।
आमतौर पर बीजेपी अपने हर अहम पद के साथ सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस जरूर करती है। अब ये माना जा रहा है कि जो भी प्रदेशाध्यक्ष बनेगा, उसे बिहार और फिर यूपी में होने वाले चुनाव को देखते हुए ही जिम्मेदारी मिलेगी। अगर नरोत्तम मिश्रा इस समीकरण में फिट बैठ रहे होंगे तो ये पद उन्हें मिलना तय माना जा सकता है और अगर इक्वेशन गड़बड़ाई तो बीजेपी कुछ और भी फैसला ले सकती है।
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