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बीजेपी के सियासी गलियारों में अटकलें थीं कि दिल्ली चुनाव के बाद प्रदेशाध्यक्ष पद का ऐलान हो जाएगा। लेकिन ये इंतजार अब लंबा खिंचता नजर आ रहा है। अब सबका बस एक ही सवाल है कब आएंगे धर्मेंद्र प्रधान। नए प्रदेशाध्यक्ष के नाम का इंतजार सिर्फ बीजेपी के बाकी नेताओं पर ही भारी नहीं है। उन नेताओं पर भी भारी पड़ रहा है जो इस पद के लिए लंबे समय से जोड़तोड़ कर रहे हैं। अब तो वो भी थक हार कर बैठे नजर आ रहे हैं। सिवाय एक नेता के जो पीएम तक से मुलाकात कर चुके हैं। और अब माना जा रहा है कि उनका दावा इस पद के लिए सबसे मजबूत साबित होने वाला है। लेकिन, अगर समीकरण भारी पड़े तो फिर किसी और किस्मत भी चमक सकती है। पर सवाल ये है कि जो भी प्रदेशाध्यक्ष होगा वो अगले दो साल करेगा क्या।
कब होगा नए प्रदेशाध्यक्ष के नाम का ऐलान
जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की लंबी प्रक्रिया के बाद अब बारी है बीजेपी के नए प्रदेशाध्यक्ष की घोषणा की। इसे लेकर बहुत सारे नेता कतार में हैं। सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये ऐलान होगा कब। इस पद के लिए सही व्यक्ति चुनने की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पर है जिनसे बीजेपी के नेता बस एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि कब आओगे।
इस पद के लिए पार्टी के तमाम बड़े नेता दौड़ में शामिल हैं। नरोत्तम मिश्रा हों या अरविंद भदौरिया हों। सब अपने अपने स्तर पर इस पद के लिए भागमभाग में लगे हुए हैं। इसकी जरूरत भी है क्योंकि लगातार सत्ता में रहने के बाद मंत्री पद हारे हैं तो जाहिर ये नेता ऐसा कोई पद जरूर चाहते हैं। जिस पर रह कर इनका दबदबा जरूर बना रहे। इसके लिए प्रदेशाध्यक्ष पद से बेहतर कौन सा पद होगा, लेकिन पार्टी किसे मौका देगी और किस आधार पर मौका देगी ये सोचना भी बहुत जरूरी है। क्योंकि बहुत सारे फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए पार्टी को ये फैसला करना है। शायद इसलिए भी ये फैसला टलता जा रहा है ताकि देर से भले ही आएं ही आएं लेकिन जब भी आएं दुरुस्त आएं।
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सत्ता और संगठन में संतुलन
बीजेपी ने अब तक मध्यप्रदेश में सत्ता और संगठन को जोड़ कर एक संतुलन बनाया हुआ था। आप बीजेपी का बीते कुछ सालों का कार्यकाल देखेंगे तो ओबीसी सीएम और सवर्ण समाज से आने वाला प्रदेशाध्यक्ष काबिज रहा। ऐसे ही समीकरणों को साद कर बीजेपी ने प्रदेश में एक मजबूत संगठन खड़ा किया है जिसे पार्टी किसी भी हाल में गंवाना नहीं चाहेगी। इसलिए जातिगत समीकरण के आधार पर प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव होना बहुत जरूरी माना जा रहा है।
अगर पार्टी दोबारा यही समीकरण चुनती है तो ब्राह्मण वर्ग का ही कोई नेता रेस जीत सकता है जिसमें नरोत्तम मिश्रा और राजेंद्र शुक्ल का नाम सबसे ऊपर नजर आता है। नरोत्तम मिश्रा शिवराज सरकार में कई अहम पदों पर रहे हैं। इस बार चुनाव हार चुके हैं इसलिए किसी दमदार पद के इंतजार में हैं। दूसरी तरफ राजेंद्र शुक्ल चुनाव भी जीते हैं और उन्हें डिप्टी सीएम के पद से भी नवाजा गया है। इसके बाद भी उनके अध्यक्ष बनने की प्रबल संभावनाएं जताई जा रही हैं। कुछ ही दिन पहले राजेंद्र शुक्ल दिल्ली में पीएम मोदी से भी मुलाकात करके आए हैं। दिल्ली चुनाव की व्यस्तताओं के बीच पीएम मोदी ने उन्हें मुलाकात का समय भी दिया जिसके बाद इस पद के लिए उनका पलड़ा काफी भारी माना जा रहा है। अगर सवर्ण समुदाय से प्रदेशाध्यक्ष बनता है तो राजेंद्र शुक्ल पहली पसंद हो सकते हैं।
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क्षत्रिय या वैश्य, किसके सिर सजेगा ताज
बात करें क्षत्रिय समाज के नेताओं की तो प्रदेश में नरेंद्र सिंह तोमर, नंद कुमार सिंह चौहान, राकेश सिंह, उदय प्रताप सिंह जैसे नेता इस समुदाय से आते हैं। इसमें से नरेंद्र सिंह तोमर पहले ही स्पीकर जैसे अहम पद पर हैं। उदय प्रताप सिंह और राकेश सिंह को कैबिनेट में पद मिल ही चुका है। और, छत्तीसगढ में क्षत्रिय समाज से बीजेपी अध्यक्ष बनाया ही जा चुका है जिसके बाद पड़ोसी राज्य में भी उसी समुदाय से अध्यक्ष बनाया जाएगा ये मुश्किल ही नजर आता है।
अगर पार्टी बिजनेस क्लास या वैश्य समाज को प्रिफर करती है तो हेमंत खंडेलवाल का पलड़ा भारी होगा। वैसे तो मोहन कैबिनेट में कैलाश विजयवर्गीय और चेतन कश्यप इसी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर पार्टी इस समाज को तवज्जो देती है तो हमंत खंडेलवाल का रास्ता साफ नजर आता है।
अनुसूचित जाति जनजाति की बात करें तो अंबेडकर के मुद्दे को देखते हुए अनुसूचित जाति के चेहरे को मौका मिल सकता है, लेकिन ये समीकरण भी बहुत जमता हुआ नहीं दिखता। क्योंकि मोहन कैबिनेट में पहले ही इस समुदाय के चार मंत्री हैं। एक जगदीश देवड़ा हैं जिन्हें डिप्टी सीएम का पद भी मिला हुआ है। इसके बाद भी पार्टी एससी वर्ग से ही प्रदेशाध्यक्ष बनाने का दांव चलती है तो लाल सिंह आर्य को मौका मिल सकता है।
अनुसूचित जनजाति से भी मोहन कैबिनेट में 5 मंत्री बने हुए हैं। इसके बाद भी अगर पार्टी को आदिवासी वोटबैंक में पैठ जमानी है तो सुमेर सिंह सोलंकी, दुर्गादास उइके या फिर गजेंद्र पटेल में से किसी एक को मौका देने के बारे में सोचा जा सकता है।
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सीएम से तालमेल पर भी रहेगी नजर
पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो जो भी प्रदेशाध्यक्ष होगा, उसका मौजूदा सीएम मोहन यादव से तालमेल कैसा है। इस बात का भी पूरा ध्यान रख कर चुना जाएगा। पर, ये सारी बातें तो बहुत बार हो चुकी हैं। अब ये इंतजार और लंबा खिंचा तो शायद नेताओं के हौसलें पस्त हो जाएंगे। वैसे भी अब जो भी प्रदेशाध्यक्ष बनेगा। उसके पास अगले दो तीन साल तक बड़ी जिम्मेदारी या चुनौती नहीं होगी क्योंकि सारे उपचुनाव निपट चुके हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव तो हो ही चुके हैं। पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव की तैयारी भी कम से कम दो साल बाद ही शुरू होगी।
टीम वीडी के साथ ही करनी होगी काम की शुरुआत
इसके अलावा अगर प्रदेश में अपनी टीम बनाने की बात करें तो जिलाध्यक्षों की नियुक्ति हो ही चुकी है जिसमें वीडी शर्मा का पलड़ा ही भारी रहा है। मतलब साफ है जो भी प्रदेशाध्यक्ष होगा उसे शुरू में तो टीम वीडी से साथ ही काम की शुरुआत करनी होगी। तो इस बात में तो कोई शक नहीं है कि जो भी प्रदेशाध्यक्ष होगा वो अगले दो साल तक दबदबा या प्रभाव दिखाना भी चाहे तो उसके पास स्कोप ज्यादा नहीं होगा। उस पर लगातार टल रही प्रक्रिया की वजह से इस पद को लेकर नेताओ का उत्साह भी कम हो रहा है। देखना ये है कि वाकई बीजेपी इस साल इस पद से जुड़ा कोई बड़ा फैसला लेती है या मामला फिर यूं ही टल जाता है।
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