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Photograph: (the sootr)
कौन बनेगा बीजेपी का अध्यक्ष। ये सवाल न सिर्फ प्रदेश बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी जोर पकड़ रहा है। क्या ये फैसला इसलिए अटका हुआ है क्योंकि आएसएस और बीजेपी के बीच एक राय नहीं बन पा रही है। ऐसे बहुत से सवाल हैं जो अब उठ रहे हैं। एक अहम फैसला लेने में हो रही देरी की वजह से पूरी बीजेपी अब विपक्ष के निशाने पर भी आ गई। इसका जीता जाता मामला बुधवार को लोकसभा में हुई बहस है जिसमें अखिलेश यादव के सवाल का जवाब देने के लिए खुद अमित शाह को आगे आना पड़ा। लेकिन कब तक अपने अध्यक्ष के मामले में बीजेपी बचाव की मुद्रा में रहेगी।
लोकसभा में बुधवार को वक्फ संशोधन बिल पर जम कर चर्चा हुई। इतनी अहम चर्चा के बीच भी बीजेपी के अध्यक्ष पद के चुनाव पर सफाई देनी पड़ गई। हुआ ये कि वक्फ संशोधन बिल पर अपनी बात रखने के लिए अखिलेश यादव उठे। उन्होंने वक्फ बिल से पहले बीजेपी पर तंज कसा। अखिलेश यादव के सवाल पर पूरा सदन ठहाकों से गूंजने लगा। खुद गृह मंत्री भी हंसी नहीं रोक पाए।
आरएसएस-बीजेपी के बीच सब ठीक?
हालांकि मामला जितना हल्का फुल्का दिखाने की कोशिश की गई। उतना हल्का था नहीं क्योंकि खुद अमित शाह अखिलेश यादव के इस सवाल का जवाब देने के लिए उठे। वो भी उनकी स्पीच को बीच में रोककर। अमित शाह ने जो कहा, वह आप सबने पढ़-सुन लिया ही होगा। सदन के हास परिहास की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अमित शाह ने जिस तरह से हेल्दी वे में ये जवाब दिया, उसकी हर ओर चर्चा है। लेकिन, जैसा हमने बताया था कि ये मामला जितना लाइटली रफा दफा कर दिया गया। उतना लाइट है नहीं क्योंकि अध्यक्ष पद के चयन में हो रही देरी की आंच अब बीजेपी और आरएसएस के आपसी संबंधों तक पहुंचने लगी है। अब ये सवाल उठने लगे हैं कि आरएसएस और बीजेपी के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। असल में बीजेपी के मजबूत संगठन के पीछे हमेशा आरएसएस यानी कि संघ का सपोर्ट रहा है। बीजेपी के संगठन में भी बहुत से नेता संघ की विचारधारा से ही आते हैं।
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संघ की हैं दो आपत्ति
संघ की आपत्ति खासतौर से दो विषयों पर है। पहला तो संघ ये चाहता है कि दूसरे पार्टियों से आए किसी भी नेता को सत्ता या संघ दोनों जगह बड़ा पद न दिया जाए। संघ का मानना है कि जिन जिन राज्यों में बाहरी नेता को बड़ा पद दिया गया, उन राज्यों में बीजेपी को नुकसान हुआ है।
दूसरा संघ की इच्छा ये है कि अब जो भी अध्यक्ष बने वो संघ की बातों को सुनने वाला हो। बस पेंच यहीं पर अटका है कि ऐसा कौन हो सकता है जो सत्ता, संगठन और संघ के बीच तालमेल बिठा कर पार्टी के काम को आगे बढ़ा सके। इस मामले में संघ की तरफ से कुछ नाम दिए गए हैं, उनमें एक नाम मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी है। हालांकि उनके नाम पर बीजेपी के नेताओं में एक राय नहीं बन सकी है। लेकिन इसमें एक ट्विस्ट और भी है। बीजेपी के संविधान के अनुसार पहले जिला लेवल पर ढांचा तैयार होता है। फिर सारे प्रदेशाध्यक्ष चुने जाते हैं। उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होता है। फिलहाल बीजेपी में 13 राज्यों के अध्यक्ष का चुनाव हो चुका है। छह राज्यों में मामला अटका हुआ है। इसमें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे अहम राज्य भी शामिल हैं।
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यूपी में फंसा है यह पेंच
यूपी के लिए कहा जा रहा है कि सीएम योगी की पसंद कोई और है और सत्ता संगठन की पसंद भी अलग अलग है। इसलिए यूपी का प्रदेशाध्यक्ष चुन पाना मुश्किल हो रहा है, लेकिन एमपी में मामला क्यों अटका है। राष्ट्रीय अध्यक्ष यानी कि जेपी नड्डा की तरह मध्य प्रदेश में भी वीडी शर्मा के कार्यकाल के एक्सटेंशन मिल चुका है। लेकिन, ये एक्सटेंशन भी लोकसभा चुनाव तक के लिए ही था। उसके बाद बीजेपी को फिर से संगठन का काम रिस्ट्रक्चर करना था, लेकिन अब एक साल होने को आए। बीजेपी कुछ अहम राज्यों में ही ये प्रदेशाध्यक्ष का चेहरा नहीं चुन सकी है।
हम यूपी की बात छोड़ सकते हैं। यूपी पॉलिटिकली काफी सेंसिटिव राज्य है। वहां पर जो फैसला होगा वो आम चुनाव से लेकर पूरे राज्य की राजनीति पर असर डालेगा। इसलिए बीजेपी हर कदम फूंक फूंक कर आगे रख रही है। यूपी में दो साल बाद चुनाव भी हैं इसलिए भी मामला गंभीर हो जाता है। लेकिन मध्य प्रदेश तो बीजेपी के लिए बीते कई सालों से पॉलिटकली स्मूद स्टेट रहा है। यहां दल बदल से लेकर चेहरा बदलने तक कई अहम फैसले आसानी से एग्जीक्यूट हो चुके हैं। फिर प्रदेशाध्यक्ष चुनने में देरी क्यों हो रही है।
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एमपी में क्यों टल रहा बार-बार अध्यक्ष का ऐलान
क्या मध्य प्रदेश में ऐसा कोई फैक्टर है। जो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा रहा है। बीजेपी ने प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव के लिए धर्मेंद्र प्रधान को प्रभारी नियुक्त किया है। लेकिन खुद धर्मेंद्र प्रधान ही प्रदेश नहीं आ पा रहे हैं। उनका दौरा बार बार टल रहा है। इसकी कोई वजह भी सामने नहीं आई है। अब तो बीजेपी के ही सियासी हल्कों में ये कहा जाने लगा है कि इंतेहा हो गई इंतजार की, पर खबर है कि आ ही नहीं रही है।
इस बारे में बीजेपी के नेताओं से बात होती है तो एक ही जवाब सामने आता है कि बीजेपी बड़ा संगठन है। यहां हर फैसला प्रक्रिया के तहत होता है और उसी के तहत आगे भी होगा। लेकिन ये प्रक्रिया कितनी लंबी होगी। इसका जवाब किसी के भी पास नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर अगर बीजेपी और संघ के बीच अनबन है भी तो उसका असर प्रदेश के फैसलों पर भी क्यों पड़ रहा है।
आपको एक बात और याद दिला दें। पीएम बनने के बाद से मोदी कभी नागपुर स्थित संघ के दफ्तर नहीं गए थे। लेकिन इस बार उन्होंने ये कसर भी पूरी कर दी। तो, क्या ये माना जाए कि बीजेपी और संघ के संबंधों पर जम रही बर्फ छंट रही है। ये बर्फ पूरी तरह से पिघलेगी तो जरूरी फैसले भी जल्द लिए जाएंगे.…
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