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News Strike Photograph: (thesootr)
शराब का नशा कुछ ऐसा है कि पीने वाला लड़खड़ाता है और अक्सर शासन और प्रशासन की नीयत भी इस पर डोल जाती है। दिल्ली में शराब घोटाले ने क्या-क्या गुल खिलाए वो किसी से छुपा नहीं है। अब एक शराब कांड ने मध्यप्रदेश के सियासी गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। वैसे जब-जब सियासत से जुड़कर शराब का जिक्र आया है मध्यप्रदेश की खबरों की सुर्खियों में छाया ही रहा है। इस बार मामला सिर्फ सियासी न होकर प्रशासनिक भी है। क्योंकि अधिकारियों के आदेश से प्रदेश सरकार को करीब 12 सौ करोड़ रुपए की चपत लगी है।
अब मध्यप्रदेश में सुनाई दे रही है शराब कांड की गूंज
सियासत और शराब का आपस में कोई लेना देना नहीं है। फिर भी संबंध इतना गाढ़ा है कि एक साथ न हो तो मुश्किल और एक साथ हों तो भी मुश्किल। आलम ये है कि सियासत की पहली जंग शराब बंटवाकर जीतने की खबरें आम रही हैं और सत्ता मिलने के बाद शराब का साथ रहे तो सिंहासन भी डोल जाते हैं। दिल्ली में शराब कांड ने सिंहासन पलट दी ये दुनिया ने देख ही लिया है। अब मध्यप्रदेश में शराब कांड की गूंज सुनाई दे रही है। खबर है कि चंद ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए आबकारी अधिकारियों ने सरकार को ही करोड़ों की चपत लगा दी है।
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एक आदेश ने शासकीय और प्रशासनिक गलियारों में मचाई खलबली
मामला जुड़ा है शराब दुकानों की नीलामी की प्रक्रिया से। इस प्रक्रिया के तहत करीब 90 फीसदी शराब दुकानों के ग्रुप नीलाम हो गए हैं। इसमें 29 जिले ऐसे हैं जिसके सभी ग्रुपों की नीलामी हो चुकी है। आठ जिले सिंगल ठेकेदारों को गए हैं। बात करें राजधानी भोपाल की तो चार ठेकेदारों को सारी दुकानें दी गई हैं। नीलामी की ये प्रक्रिया 31 मार्च तक पूरी होनी है। इस बीच आबकारी विभाग ने एक आदेश जारी किया है। इसी आदेश ने शासकीय और प्रशासनिक गलियारों में खलबली मचा दी है।
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सरकार को लगी एक आदेश से 1200 करोड़ रुपए की चपत
चलिए अब उस आदेश को तफसील से समझते हैं जो अधिकारियों की नाक में दम कर रहा है। ये आदेश 26 मार्च का है। आधी रात को अधिकारियों ने बहुत जल्दी में ये आदेश जारी किया। जिसमें कहा गया कि जो ठेके रिन्यू हो चुके हैं, उन्हें 26 मार्च के बाद शराब की सप्लाई की जाएगी। इस बीच जो ठेके रिन्यू नहीं हुए, उन्हें सप्लाई नहीं की जाएगी। अब इससे नुकसान यह हुआ कि 27 मार्च से 31 मार्च 2025 के बीच जो करीब एक हजार करोड़ रुपए की शराब उठनी थी, वह नहीं उठ पाएगी। साथ ही इससे सरकार को सीधे तौर पर करीब 200 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। इसमें वैट टैक्स, परिवहन टैक्ट और अन्य तरह के टैक्स शामिल हैं। इस तरह से कुल 1200 करोड़ की चपत लग गई है।
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मामले पर वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने भी जताई है नाराजगी
आदेश तो जारी हो ही गया था, लेकिन इसकी वजह से सरकारी खजाने को कितना बड़ा नुकसान हुआ है, इसका खुलासा तब हुआ जब कुछ शराब ठेकेदार चीफ सेक्रेटरी से मिलने पहुंचे। चौंकाने वाली बात ये थी कि अधिकारियों ने इस आदेश को जारी करने से पहले इसकी जानकारी न विभाग के पीएस को दी न ही विभागीय मंत्री को ऐसे किसी आदेश की जानकारी थी। सूत्रों का दावा ये है कि इस मामले पर वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने भी नाराजगी जताई है। उनकी नाराजगी जायज भी है। क्योंकि इस तरह बिना जानकारी के दिया गया ये आदेश आर्थिक अपराध की श्रेणी में आता है।
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विभाग के कुछ अधिकारी खास ठेकेदारों को फायदा पहुंचा रहे!
इस मामले में आबकारी विभाग से जुड़े पूर्व अधिकारी बताते हैं कि यह आदेश पूरी तरह से नियम विरूद्ध है । दरअसल किसी गड़बड़ी के चलते अगर लाइसेंस निरस्त किया जाता है तो वो अलग बात है। इसलिए ये माना जा रहा है कि ये आदेश आबकारी अधिकारियों ने कुछ खास ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए निकाला है।
खबरों की मानें तो ये आबकारी विभाग का एक ही महीने के अंदर दूसरा ऐसा कारनामा है। जो ये इशारा करता है कि विभाग के कुछ अधिकारी कुछ खास ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने में जुटे हैं। एक मामला सोम कंपनी की बीयर से जुड़ा बताया जा रहा है। इस कंपनी की बीयर के 50 ट्रक भरकर छत्तीसगढ़ भेजे गए थे। इन ट्रकों में बीयर की 55 हजार 90 पेटियां थीं, लेकिन ये बीयर एक्सपायर थीं। इस वजह से छत्तीसगढ़ से इसे लौटा दिया गया। इसके बाद आबकारी आयुक्त से मंजूरी लिए बगैर बियर को मध्यप्रदेश की दुकानों पर बेच भी दिया गया।
आबकारी अधिकारियों को नियत पर भी खड़े हो रहे है सवाल
इस घटना से भी बहुत सारे सवाल उठते हैं। जैसे वहां से यहां तक बियर लाने का किराया किसने चुकाया। किन गाड़ियों में भरकर बियर वापस आई और फिर बंटने भी पहुंच गई। ये कुछ सवाल हैं जो आबकारी अधिकारियों की नीयत की तरफ इशारा करते हैं। फिलहाल इस में सत्ता से जुड़े नुमाइंदों के शामिल होने की कोई जानकारी नहीं मिली है। पर ये तय है कि आबकारी विभाग में चल रही धांधलियों को अगर अभी नजरअंदाज कर दिया गया तो आने वाले कुछ दिनों में किसी बड़े शराब घोटाले की खबर सुनाई दे सकती है।
वैसे भी शराब का मामला मध्यप्रदेश की सत्ता में पहले भी सुर्खियां बटोरता रहा है। बीजेपी की ही नेता उमा भारती ने शराब दुकानें बंद कराने के लिए अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उस मामले को जैसे तैसे शांत किया गया। अब एक के बाद एक आबकारी अधिकारियों के कारनामें सुनने में आ रहे हैं। जिन पर लगाम कसना अब लाजमी हो गया है।