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Photograph: (the sootr)
कांग्रेस इतने बुरे हाल में पहुंच चुकी है कि एक समस्या का हल निकालती है तो दूसरी समस्या सामने आ जाती है। कांग्रेस में मध्य प्रदेश अपने अब तक के सबसे कमजोर दौर में है। ये तो आप सभी मानते ही होंगे। अगर आपसे आज ये सवाल पूा जाए कि दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को छोड़ कर कांग्रेस के पांच बड़े राज्य स्तरीय नेताओं का नाम बताइए। तो बहुत से लोग शायद एक ही नाम बता सकेंगे और कुछ होंगे जो शायद दो नाम बता दें। आम लोग तो छोड़िए अगर खुद कांग्रेस के लोग ये नाम बता सकें तो भी बड़ी बात होगी। शायद पार्टी अपने भीतर की इस कमी को समझ चुकी है। इसलिए अब एक नई जुगत भिड़ाने की तैयारी शुरू हो चुकी है।
कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी है। आज भी है। तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस ये दर्जा बचाने में तो कामयाब रही है। लेकिन, इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस के पास राष्ट्रीय स्तर के नेता अब बहुत कम बचे हैं। राष्ट्र की बात तो अभी दूर की है। बात राज्य स्तर के नेताओं की करें तो भी दस की गिनती पूरी करना भी आसान काम नहीं है। इसलिए कांग्रेस अब नए सिरे से नई कवायद में जुटने की तैयारी में है।
तैयार की गई है नई स्ट्रेटजी
प्रदेश में कांग्रेस अब संगठन पर बड़े बदलावों पर विचार कर रही है। कांग्रेस बार बार जिस मोर्चे पर मात खाती है वो ये है कि मैदानी इलाकों से लेकर कार्यालय के भीतर तक पुराने नेता काबिज हैं। या तो वो खुद तैनात नजर आते हैं या उनका कोई नुमाइंदा जिम्मेदार पद पर दिखता है। कांग्रेस ने पहले प्रदेशाध्यक्ष बदला और नेता प्रतिपक्ष बदले। इस उम्मीद के साथ कि शायद इस तरह से कुछ नए चेहरे और नई लीडरशिप को मौका मिलेगा। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। अब कांग्रेस ने पुराने चेहरों को दरकिनार करने के लिए नई स्ट्रेटजी तैयार की है। कांग्रेस ने फैसला लिया है कि अब पार्टी में नए प्रभारी तैनात किए जाएंगे।
ये नए प्रभारी अब प्रदेश संगठन के भी कर्ता धर्ता होंगे। इसके अलावा कांग्रेस हर जिले में नया अध्यक्ष बनाने की कवायद तो तेज है ही। हो सकता है कि जिलों में अध्यक्ष के साथ साथ एक प्रभारी भी हो। ये प्रभारी सिर्फ नाम का प्रभारी नहीं होगा बल्कि बहुत सारी शक्तियां भी रखेगा। शक्ति से मतलब है कि अधिकार रखेगा। इस प्रभारी को अधिकार होगा कि वो जिले में पार्टी की टीम को मजबूत करे। अगर उसे लगेगा कि किसी को हटाना या रखना है तो ये फैसला लेने का अधिकार भी उसके पास होगा। साथ ही चुनाव नजदीक आने पर प्रत्याशी चयन में भी ये प्रभारी अहम भूमिका अदा करेगा।
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बड़े लेवल पर जारी है मंथन
असल में कांग्रेस अब ये समझ चुकी है कि पार्टी के हालात बहुत बुरे हो चुके हैं। खासतौर से गुजरात, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में जहां कांग्रेस लगातार कई सालों से सत्ता से बाहर चल रही है। हालात ये हैं कि लीडरशिप के नाम पर जो नेता सामने आ रहे हैं वो भी बीजेपी नेताओं के पिछग्गू ही साबित हो रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेस में बड़े लेवल पर मंथन जारी है।
राहुल गांधी की बड़ी बड़ी यात्राएं और मजबूत चुनावी मुद्दे भी पार्टी को इसलिए आगे नहीं बढ़ा पा रहे। क्योंकि नेटवर्किंग के लेवल पर ही कांग्रेस मात खा जा रही है। शायद इसलिए कांग्रेस ने बड़े नेताओं पर फोकस करने की जगह निचले लेवल से पार्टी के नेटवर्क को कसना शुरू कर दिया है। कांग्रेस ये भी समझ चुकी है कि पार्टी में गुटबाजी और कलह बड़े लेवल पर हावी है। इसलिए पार्टी किसी भी रणनीति में कामयाब नहीं हो पा रही। इसी को देखते हुए अब कांग्रेस ने अपना कलेवर बदलने का फॉर्मूला ही उल्टा कर लिया है।
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निचले स्तर के पदों से मजबूत होगी लीडरशिप
अब ग्रास रूट लेवल पर काम होगा और निचले स्तर के पदों से लीडरशिप मजबूत की जाएगी। शायद पार्टी का ये मानना है कि इस लेवल पर कोई बड़ा नेता ज्यादा दांव नहीं लगाएगा न ही ज्यादा दिलचस्पी लेगा। पर कांग्रेस को ऐसा कोई भी फैसला लेने से पहले और जमीनी स्तर पर उसे लागू करने से पहले कांग्रेस को एक बार बीजेपी जिलाध्यक्षों की नियुक्ति से पहले हुई खींचतान की स्टडी भी कर लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि कांग्रेस ये मानती रहे कि जिलाध्यक्ष के पद में बड़े नेता रुचि नहीं लेंगे। और, दूसरी तरफ इसी पद पर अपना आदमी बिठाने के लिए दिग्गज नेता अपनी पूरी ताकत झोंक दें। अगर ऐसा ही हुआ तो कांग्रेस मेहनत भी करेगी और हासिल कुछ नहीं होगा।
आप राजनीति में पहले से दिलचस्पी रखते रहे हैं तो जरा कांग्रेस के पुराने दिनों को याद कीजिए जब कांग्रेस में अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, श्यामाचरण शुक्ल, और माधवराव सिंधिया जैसे नेता हुआ करते थे। इसके बाद कमलनाथ, दिग्विजय और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कद्दावर नेता आए। ये सब दिग्गज थे। इनके दौर में भी गुटबाजी थी,लेकिन एक बात और थी। ये सभी अपने अपने क्षेत्र के कद्दावर और मास लीडर्स थे। जिनके खड़े होने भर से राजनीति की दिशा और दशा बदल जाती थी। पर अब कांग्रेस का ऐसा एक भी लीडर बता दीजिए जो पॉपुलर भी हो और पावरफुल भी हो।
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कांग्रेस गुटबाजी नाम के रोग की सही दवा तलाश ले कांग्रेस
कांग्रेस ये खूब जानती है कि चंद दिन या साल में ऐसे बड़े लीडर्स तो बना नहीं सकती। लेकिन छोटे लेवल से नेटवर्क को मजबूत करते करते एक मजबूत संगठन तो बना ही सकती है। बस इसलिए जिला अध्यक्ष या जिला प्रभारी के पद को ताकतवर बनाने की तैयारी है। पर फिर याद दिला दें कि बीजेपी में सबसे ज्यादा घमासान इसी पद के लिए हुआ है। मैसेज तो अब भी लाउड एंड क्लियर है कि पहले कांग्रेस गुटबाजी नाम के रोग की सही दवा तलाश ले। जिससे ये मर्ज ठीक न हो सके तो कम से कम कुछ कम तो हो ही जाए। क्योंकि उसके बाद ही कोई भी नया ट्रीटमेंट पार्टी के लिए कारगर साबित हो सकेगा।
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