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बीजेपी में एक बार फिर प्रदेशाध्यक्ष पद पर पेंच फंसा हुआ दिख रहा है। दिल्ली से जो खबरें आ रही हैं। वो इस ओर इशारा कर रही हैं कि अभी कुछ दिन और प्रदेशाध्यक्ष का ऐलान नहीं हो सकेगा। 21 से 24 मार्च तक पार्टी जनप्रतिनिधि महासभा की भी बैठक है। उससे पहले ये ऐलान होना भी मुश्किल ही है। आपको याद दिला दें कि बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष बदलने जाने की अटकलें ये साल शुरू होने के साथ से ही लगने लगी थीं। लेकिन एक एक कर ऐसे इवेंट आते गए कि प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति का मामला टलता गया। ये उम्मीद थी कि दिल्ली चुनाव होने के बाद पार्टी ये ऐलान कर देगी। लेकिन अब सियासी अटकलों का जो रुख है वो ये इशारा कर रहा है कि फिलहाल इस फैसले के बीच में एक और ट्विस्ट आ गया है।
किसी भी प्रदेश का प्रदेशाध्यक्ष चुनना बीजेपी के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी का काम होता है। क्योंकि इसके जरिए बीजेपी कुछ सियासी तो कुछ जातिगत समीकरण साधती है। मध्य प्रदेश में ये समीकरण काफी मायने रखेंगे। ओबीसी वर्ग को ध्यान में रखते हुए बीजेपी सीएम सहित 8 मंत्री पद इसी वर्ग को सौंप चुकी है। इसलिए माना जा रहा है कि अब ये पद ओबीसी के खाते में तो नहीं जाएगा। इसलिए अलग अलग जातिगत समीकरणों पर मंथन जारी है।
कई प्रदेशों में जातिगत समीकरण साधने की कोशिश में रहती है पार्टी
अब एक समीकरण की और बात करते हैं जिसका ताल्लुक नेशनल लेवल से है। बात सिर्फ एक ही प्रदेश में जातिगत समीकरण साधने की नहीं है। बीजेपी नेशनल लेवल पर भी ये सारे समीकरण बैलेंस रखती है। अगर एक स्टेट में ओबीसी वर्ग का अध्यक्ष है तो दूसरे स्टेट में किसी दूसरे वर्ग का अध्यक्ष हो, इस बात पर जोर दिया जाता है। इस लिहाज से एमपी का प्रदेशाध्यक्ष किस तरह चुना जाएगा। ये निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा ये भी संभव है कि बीजेपी किसी महिला नेता को इस पद की जिम्मेदारी सौंप दे।
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दूसरा मुद्दा ये है कि बीजेपी में पहले प्रदेशाध्यक्षों का चुनाव होता है। उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलने की कवायद शुरू होती है। हालांकि कई बार ये प्रक्रिया औपाचारिक होती है। जिलाध्यक्षों के बाद राष्ट्रीय स्तर पर अध्यक्ष के पद का चेहरा आला नेताओं के जरिए चुन लिया जाता है। जिसके ऐलान से पहले पार्टी के अपने संविधान के तहत सारी फॉर्मेलिटीज पूरी की जाती है।
इसलिए एक्सटेंड किया गया नड्डा का कार्यकाल
असल पेंच वहीं पर फंसा हुआ है। ये खबरे हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का अध्यक्ष कौन होगा इस बात पर बीजेपी और आसएसएस एकमत नहीं हो पा रहे हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद फरवरी माह तक प्रदेशाध्यक्ष तय हो चुके होते और उसके बाद नए अध्यक्ष का ऐलान भी हो जाता। लेकिन अब मार्च भी आधा निकल चुका है। लेकिन बीजेपी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। इसकी एक बड़ी वजह संघ और संगठन का सेम पेज पर न होना ही माना जा रहा है। हालांकि हम किसी खबर की पुष्टि नहीं करते लेकिन जो सियासी अटकलें हैं उन्हें ही मान ले तो डिले की वजह आसएसएस और बीजेपी की सोच में अंतर है। संघ ये चाहता है कि नया अध्यक्ष वो हो जो आसएसएस से जुड़ा हुआ हो और संघ की कार्य प्रणाली को अच्छे से समझता हो। जबकि बीजेपी ऐसा अध्यक्ष चाहती है जिसमें अमित शाह और जेपी नड्डा जैसी क्वालिटीज हों जो पार्टी के विजय रथ की रफ्तार को बनाए रख सके। इसलिए जेपी नड्डा के कार्यकाल को भी एक्सटेंड कर दिया गया है।
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कई समीकरणों पर विचार कर रही पार्टी
अब बीजेपी के पास प्रदेशाध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष को चुनने के लिए पर्याप्त समय है। बात करें मध्य प्रदेश की ही तो पार्टी को ये सोचना है कि वो किस तरह के समीकरण को तवज्जो दे। ओबीसी सीएम और सवर्ण अध्यक्ष का समीकरण चुनना है तो इस रेस में नरोत्तम मिश्रा का नाम आगे नजर आता है। इसके अलावा राजेंद्र शुक्ल का नाम भी मजबूती से आगे आता दिख रहा है। कुछ ही समय पहले राजेंद्र शुक्ला दिल्ली भी होकर आए हैं। इस बीच एक बड़ा ट्विस्ट ये भी आया है कि नरोत्तम मिश्रा के घर के एक के बाद एक दिग्गज नेता पहुंच चुके हैं। लेकिन उसकी वजह क्या थी वो अब तक बाहर नहीं आई है।
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खंडेलवाल का नाम फाइनल होने की लगने लगी थीं अटकलें
अगर पार्टी क्षत्रिय समाज को साधने की कोशिश करती है तो नरेंद्र सिंह तोमर, राकेश सिंह, उदय प्रताप सिंह जैसे नेताओं का पलड़ा भारी दिखता है। जो इस समुदाय से आते हैं। हालांकि नरेंद्र सिंह तोमर को पार्टी पहले ही स्पीकर का पद दे चुकी है। उदय प्रताप सिंह और राकेश सिंह मोहन कैबिनेट का जगह हासिल कर चुके हैं। दूसरा फैक्टर ये है कि बीजेपी छत्तीसगढ़ की कमान क्षत्रिय नेता को सौंप चुकी है। ऐसे में मध्य प्रदेश में क्षत्रिय समाज का अध्यक्ष बनने की संभावना कम है।
बीजेपी बिजनेस क्लास या वैश्य समाज को भी प्रिफरेंस दे सकती है। बीच में तो ये अटकलें भी लग चुकी थीं कि बीजेपी ने हेमंत खंडेलवाल का नाम तकरीबन फाइनल कर दिया है। बस ऐलान होना बाकी है। वैसे इस वर्ग से चेतन कश्यप का नाम भी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था। लेकिन फिर पूरी प्रक्रिया की ही चाल धीमी हो गई।
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पद के लिए जोड़तोड़ कर रहे नेता भी थक हार कर बैठे
बात करते हैं अनुसूचित जाति और जनजाति की तो लाल सिंह आर्य का नाम रेस में है। अनुसूचित जनजाति से सुमेर सिंह सोलंकी, दुर्गादास उइके और गजेंद्र पटले का नाम भी रेस में है। वैसे एससी से जगदीश देवड़ा भी एक विकल्प हो सकते थे लेकिन डिप्टी सीएम का पद मिलने के बाद उनके खाते में ये पद जाना मुश्किल ही लगता है। प्रदेशाध्यक्ष पद के मामले में प्रदेश के दिग्गज नेताओं से ऊपर मोहन यादव की पसंद हो सकती है। क्योंकि सीएम के साथ प्रदेशाध्यक्ष का तालमेल होना ज्यादा जरूरी है। हालांकि जो लोग अब तक प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए जोड़तोड़ कर रहे थे वो नेता भी अब थक हार कर बैठ चुके हैं।
पर, ये तो बात हुई सिर्फ पॉलिटिकल स्पेक्यूलेशन्स की। सूत्रों के हवाले से खबर तो ये भी है कि पार्टी अपने डिसिजन को लेकर काफी कुछ क्लियर है और एक डिसिजन पर पहुंच भी चुकी है। लेकिन, ऐलान करने से क्यों कतरा रही है। ये सब के लिए ही समझ से परे है। ये हालात कब तक रहते हैं। ये भी कहना फिलहाल मुश्किल ही लगता है।