News Strike : BJP के दिग्गज नेता क्यों पड़ रहे अलग-थलग? क्या लीडरशिप में होगा बड़ा बदलाव?

जब राजनीति में कोई नेता आता है या रहता है तो उसकी पूरी कोशिश होती है कि वो अग्रिम पंक्ति का नेता बने, लेकिन इन दिनों कुछ बीजेपी नेता तमाम कोशिशों के बावजूद अग्रिम पंक्ति में नहीं टिक पा रहे हैं... 

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Harish Divekar
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News Strike BJP senior leader Photograph: (thesootr)

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NEWS STRIKE : मध्यप्रदेश में बीजेपी के दिग्गज कहे जाने वाले नेता क्या अब हाशिए की ओर धकेले जा रहे हैं। ऐसे नेताओं में वो नाम शामिल हैं जो प्रदेश में किसी अहम ओहदे पर काबिज हैं तो कुछ कभी किसी बड़े पद पर काबिज थे। अब आप ये जरूर पूछ सकते हैं कि जब ओहदे पर काबिज हैं तो फिर हाशिए पर कैसे धकेले जा सकते हैं। तो मैं बस इतना कहूंगा कि इस खबर को पूरी पढ़ें। तब आप समझ जाएंगे कि किस तरह बीजेपी अपने नेताओं की पूरी एक पीढ़ी को धीरे-धीरे पिछली पंक्ति में भेज रही है। 

प्रहलाद पटेल के मामले में कांग्रेस हमलावर है

जब राजनीति में कोई नेता आता है या रहता है तो उसकी पूरी कोशिश होती है कि वो अग्रिम पंक्ति का नेता बने, लेकिन इन दिनों कुछ बीजेपी नेता तमाम कोशिशों के बावजूद अग्रिम पंक्ति में नहीं टिक पा रहे हैं। ये हाल तब है जब उनमें से कुछ के पास बड़े पद हैं फिर भी वो पूरी पार्टी में अकेले ही नजर आएंगे। ये बात में प्रहलाद पटेल के ताजा संदर्भ के साथ शुरू करते हैं। प्रहलाद पटेल इसलिए क्योंकि इन दिनों वो ऐसे मसले पर घिरे हुए हैं। जिसमें कांग्रेस उन पर हमलावर है और बीजेपी से कोई उनकी तरफदारी करता नहीं दिख रहा है।

मसला बना है उनका एक बयान। एक मार्च को प्रहलाद पटेल ने राजगढ़ के सुठालिया में मंच से कहा कि लोगों को सरकार से भीख मांगने की आदत पड़ गई है। नेता आते हैं, एक टोकना तो कागज मिलते हैं उनको। मंच पर माला पहनाएंगे और एक पत्र पकड़ा देंगे। यह अच्छी आदत नहीं है, लेने की बजाय देने का मन बनाएं। प्रहलाद पटेल की इस बात पर कांग्रेस ने विरोध प्रदर्शन का ऐलान कर दिया है और ऑनलाइन कटोरे भेजने की बात कही है। 

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बीजेपी नेता भी पटेल के बयान से बचकर निकल रहे

कांग्रेस का विरोध करना तो लाजमी है, लेकिन बीजेपी ने भी जिस तरह प्रहलाद पटेल से किनारा किया है वो हैरान करने वाला है। प्रहलाद पटेल ने ये बयान ऐसे सियासी माहौल में दिया है जब तकरीबन हर प्रदेश का चुनाव बीजेपी ने कुछ ऐसी योजनाओं के बूते जीता है जिसमें मतदाता को ढेरों सौगाते दी गईं हैं। मध्यप्रदेश में ही लाड़ली बहना योजना इसका एक बड़ा उदाहरण है। शायद इसलिए बीजेपी को भी अपने इस पुराने और कद्दावर नेता से मुंह फेरना पड़ा। अटकलें तो यहां तक हैं कि बीजेपी ने अपने तमाम पदाधिकारी और प्रवक्ताओं से इस बयान पर प्रतिक्रिया न देने से बचने के लिए कहा है। शायद इसलिए विधायक भगवानदास सबनानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस तो की, लेकिन जब प्रहलाद पटेल पर सवाल हुआ तो वो बस जयसिया राम कहकर निकल गए। 

अब अगर आप सोशल मीडिया खंगालेंगे तो आपको ऐसे बहुत से ट्रेंड और लिंक्स मिल जाएंगी जिसमें प्रहलाद पटेल के इस्तीफे तक की बात कह दी गई है। हालांकि, हम ऐसी कोई पुष्टि नहीं कर रहे हैं कि प्रहलाद पटेल इस्तीफा देने वाले हैं या नहीं। ये तो हुई प्रहलाद पटेल की। अब कुछ औऱ नेताओं के हालात देखते हैं।

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तोमर को भी पिछली पंक्ति में भेजने की कवायद

बात करते हैं नरेंद्र सिंह तोमर की। जो चंबल में बीजेपी के सबसे दमदार नेता रहे हैं। मोदी, शाह और नड्डा तीनों के करीबी भी माने जाते हैं। 2023 के चुनाव से पहले प्रदेश दौरे पर आए शाह ने उन्हें पूरे प्रदेश में चुनाव से जुड़ी अहम जिम्मेदारी भी सौंप दी थी, लेकिन चुनाव होने के बाद तोमर को स्पीकर का पद देकर शांत कर दिया गया है। ये माना जा रहा है कि उनके बेटे के वीडियो लीक होने के बाद पार्टी ने उन्हें भी पिछली पंक्ति में भेजने की कवायद तेज कर दी है। इस बार जिलाध्यक्षों की सूचि में उनके पसंदीदा लोगों के नाम भी कम ही नजर आए।

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विजयवर्गीय से ज्यादा मेंदोला को अध्यक्ष के लिए तवज्जो

ऐसा ही कुछ हाल मालवा के सबसे दमदार नेता कैलाश विजयवर्गीय के भी हैं। जब कैलाश विजयवर्गीय विधानसभा चुनाव जीते तब ऐसा लगा था कि शायद उन्हें सीएम पद की कुर्सी सौंपी जा सकती है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सीएम पद तो दूर की बात डिप्टी सीएम का पद भी ऑफर नहीं हुआ। जिलाध्यक्षों के मामले में भी कैलाश विजयवर्गीय दरकिनार रहे। उनकी बजाय, इंदौर के लिए ही रमेश मंदोला की पसंद को बीजेपी ने ज्यादा तवज्जो दी। ग्लोबल इंवेस्टर समिट के समापन पर आए शाह ने एयरपोर्ट पर उन्हें बुलाकर अलग से मुलाकात की। अटकलें ये लगीं कि उन्हें गुटबाजी से बचने की सलाह देने के लिए शाह ने खासतौर से बुलाया था। इसकी भी पुष्टि नहीं की जा सकती। पर, ये भी सही है कि इस तरह की अटकलों का विजयवर्गीय ने खंडन भी नहीं किया।

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बुंदेलखंड के तीन कद्दावर नेता भी अपना असर नहीं दिखा पाए

चंबल और मालवा के बाद बात करते हैं बुंदेलखंड के सबसे अहम जिले की। ये जिला है सागर। सागर से अब तक तीन कद्दावर नेता थे। गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत। सीनियरमोस्ट विधायक होने के बावजूद गोपाल भार्गव पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से हाशिए पर हैं। शिवराज सरकार में सबसे दमदार मंत्री रहे भूपेंद्र सिंह को भी मंत्री पद नहीं मिला और अब परिवहन घोटाले में उनका नाम बार-बार उछल रहा है। ये दोनों ही नेता अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग अंदाज में अपनी नाराजगी जता चुके हैं, लेकिन वो भी कुछ खास असर नहीं दिखा सकी है।

गोविंद सिंह राजपूत सिंधिया समर्थक हैं। इस नाते उन्हें मंत्री पद मिला है, लेकिन उनका भी नाम परिवहन घोटाले में आने के बाद से वो अकेले ही इससे जूझते दिख रहे हैं। कांग्रेस से नेताप्रतिपक्ष उमंग सिंगार ने उन्हें इस मामले में घेरा भी। खुद को सही साबित करने के लिए गोविंद सिंह राजपूत ने उमंग सिंगार के खिलाफ 20 करोड़ी की मानहानी का दावा भी कर दिया है। ये भी देखना दिलचस्प होगा कि क्या इससे वो बाउंस बैक कर सकेंगे।

चुनाव के डेढ़ साल बाद भी नरोत्तम मिश्रा खाली हाथ 

इस फेहरिस्त में नरोत्तम मिश्रा का नाम भी शामिल किया जा सकता है। वैसे तो वो चुनाव हार गए हैं। इसलिए विधायक नहीं बन सके, लेकिन पार्टी को जिताने के लिए उनकी मेहनत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए वो किसी ऐसे पद के तो हकदार कहे ही जा सकते थे जो उनके रुतबे को बरकरार रख सकता था। लेकिन चुनाव के डेढ़ साल बीतने के बाद भी उन्हें कोई पद नहीं मिला है। कभी-कभी ये जरूर अटकलें लगती हैं कि वो प्रदेशाध्यक्ष पद के दावेदार हैं। पर, ये पद उन्हें मिल ही जाएगा ये कहना थोड़ा मुश्किल है।

बीजेपी ने फिर यंग लीडर्स को आगे करना किया शुरू

साइड लाइन हो रहे पुराने दिग्गजों के इस पेटर्न को देखकर बतौर एक पॉलिटिकल एक्सपर्ट हम ये जरूर कह सकते हैं कि बीजेपी ने एक बार फिर यंग लीडर्स को आगे करना शुरू कर दिया है। पुराने नेताओं को पर्दे के पीछे भेजने या फिर दूसरी पंक्ति में भेजने की तैयारी शुरू हो चुकी है। अब कब-कब किसका नंबर आएगा और कैसे आएगा ये देखना भी दिलचस्प हो सकता है।

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