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Photograph: (the sootr)
पहले मध्य प्रदेश में पीएम नरेंद्र मोदी का अहम दौरा, उसके दस दिन के भीतर ही अब संघ प्रमुख मोहन भागवत का प्रदेश में अहम दौरा प्रस्तावित है। वैसे तो ये दौरा पूरी तरह से सिर्फ संघ को समर्पित है। फिर भी इसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। क्या पीएम मोदी फिर अमित शाह का प्रदेश में आना और उसके कुछ ही दिनों बाद संघ प्रमुख का भी भोपाल आना एक इत्तेफाक है। या, फिर इसके पीछे संघ और केंद्र दोनों का कोई ऐसा मकसद है जिसे साधना बेहद जरूरी हो चुका है। ये समझने के लिए इस आलेख को शुरू से आखिर तक गौर से पढ़िएगा। ताकि आप समझ सकें कि तीन अलग अलग किस्म के दौरों की एक दूसरे से कड़ी से कड़ी आखिर कैसे जुड़ी हो सकती है।
आरएसएस के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत का भोपाल दौरा भाजपा की इंटरनल पॉलिटिक्स को क्या और भी ज्यादा गर्माने जा रहा है। बीजेपी के सत्ता से लेकर संगठन तक के गलियारों में ये सवाल खूब पूछा जा रहा है। वजह वाजिब भी है। साल 2025 की शुरुआत से ही प्रदेश बीजेपी में कुछ ऐसे घटनाक्रम हो रहे हैं। जिनके बाद बीजेपी के आला नेताओं से लेकर संघ के नेताओं के इन दौरों को हल्के में नहीं लिया जा सकता है।
मंथन से निकल सकता है राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम
मोहन भागवत के दौरे से पहले संघ के बड़े अनुभवी पदाधिकारी सुरेश सोनी पहले ही मध्य प्रदेश में सक्रिय हो चुके हैं और अब खुद मोहन भागवत प्रदेश का दौरा कर सकते हैं। खबर है कि विद्या भारती का अखिल भारतीय वर्ग राजधानी भोपाल में हो रहा है। 8 मार्च तक चलने वाले इस विशेष वर्ग में चिंतन मंथन में संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत भी शामिल हो सकते हैं। पूर्व निर्धारित इस कार्यक्रम के अलावा यदि कोई बड़ा फेर बदल नहीं हुआ तो संशोधित कार्यक्रम के तहत संघ प्रमुख के साथ शीर्ष नेतृत्व के सहभागी सर कार्यवाह और सभी सहसरकार्यवाह की भी मौजूदगी की भी नजर आ सकती है।
संघ की ये बैठक कुछ दिन बाद बेंगलुरू में होने वाली बैठक को देखते हुए काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। 20 मार्च से बेंगलुरु में संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक होने वाली है। उस बैठक से पहले, भोपाल में हो रहे कार्यक्रम में बेंगलुरू की बैठक का एजेंडा सेट करने पर भी मंथन हो सकता है। एक संभावना ये भी जताई जा रही है कि 20 मार्च की बैठक से पहले बीजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का फैसला हो जाएगा। बहुत संभावनाएं हैं कि भोपाल में हुए मंथन से ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम रूपी अमृत निकल कर आए। जो बीजेपी की नई जान बन जाए।
पार्टी का अनुशासन है महत्वपूर्ण
मसले कई और भी हैं, अभी भाजपा संविधान के तहत संगठन चुनाव से पहले जितने राज्यों के अध्यक्ष का निर्वाचन हो जाना चाहिए, वह प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। जिसमें मध्यप्रदेश भी शामिल है। मध्य प्रदेश में जिला अध्यक्षों के निर्वाचन की प्रक्रिया के साथ प्रदेश अध्यक्ष के निर्वाचन की स्थिति में बड़ी भूमिका निभाने वाले प्रदेश प्रतिनिधियों का चयन भी हो चुका है।
आपको बता दें कि जिला अध्यक्ष के साथ करीब 375 प्रदेश प्रतिनिधि ऐसे होते हैं जो संगठन चुनाव में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद अब तक मध्य प्रदेश में नए प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव या नियुक्ति नहीं हो सकी है। इस काम में क्या रुकावट आ रही है और क्यों आला नेताओं के ये दौरे इतने मायने रखते हैं। ये समझने के लिए एक बार पहले मध्य प्रदेश बीजेपी के संगठन के नेचर को थोड़ा समझ लेना चाहिए। बहुत ज्यादा पीछे नहीं जाएंगे। बात शुरू होती है, साल 2003 से जब उमा भारती ने बीजेपी को ऐसी जीत दिलाई कि उसके बाद बीजेपी सरकार पर सरकार बनाती चली जा रही है। ये जीत सिर्फ सरकार में बैठे नुमाइंदों की नहीं रही है।
ये जीत रही है कसे हुए संगठन की और पार्टी के अनुशासन की जिसके तहत हर परिस्थिति में नेता एकजुट ही नजर आए। बीजेपी ने 2003 में सरकार बनने के चंद ही साल के भीतर दो बार सीएम बदले, उमा भारती की नाराजगी झेली। लेकिन, सख्त अनुशासन और संगठन की कसावट ही वो दो चीज थीं कि बीजेपी की आपसी कलह, नेताओं की नाराजगी कभी खुलकर सामने नहीं आ सकी। लेकिन, साल 2020 के बाद से बीजेपी में बड़े बदलाव हुए। बड़ी संख्या में दल बदल हुआ जिसका इतिहास किसी से छिपा नहीं है। इसलिए हम उसकी बहुत ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे। उस दल बदल का असर ये हुआ कि अलग विचारधारा के नेताओं की सोच के साथ पार्टी के पुराने नियम कायदों में मिलावट नजर आने लगी।
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खुलकर सामने आने लगी नाराजगी
नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आना। कभी मीडिया के सामने तो कभी अपने सीनियर्स के सामने नेताओं का नाराजगी जाहिर करने का चलन थोड़ा आम हो गया। हालांकि बीजेपी ने इसका असर चुनाव पर नहीं पड़ने दिया और प्रदेश में एक बार फिर बड़ी जीत हासिल की। लेकिन, अनुशासन कुछ अंग भंग सा जरूर हुआ है जिस पर कभी मल्हम लगा कर तो कभी बैंडएड लगा कर काम चलाया जाता रहा। पर अब लगता है कि हालात बेकाबू होते जा रहे थे। जो पूरी तरह से हाथ से निकल जाएं उससे पहले ही संघ और केंद्र दोनों मुस्तैद हो चुके हैं।
इस साल की शुरूआत में ही बीजेपी में नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति हुई लेकिन, पार्टी को ये जितना आसान काम लग रहा था। उतने ही नाको चने चबाने पड़ गए। हालात ये हुए कि एक बार में सारे जिलाध्यक्षों की लिस्ट भी जारी नहीं हो सकी। कुछ नामों को फाइनल करवाने के लिए दिल्ली तक दरवाजे खटखटाने पड़े जिसके बाद ये साफ हो गया कि ये बात अब छिपाए नहीं छिप रही थी कि बीजेपी में किस लेवल की गुटबाजी और कलह हावी हो चुकी है।
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...तो अनुशासन का पाठ पढ़ाकर लौटेंगे भागवत?
इसके बाद प्रदेश में वो बैठकें हुईं जो पहले कभी नहीं हुई थीं। पीएम मोदी इंवेस्टर समिट के बहाने भोपाल आए, लेकिन एक दिन पहले प्रदेश के नेता, सांसद और विधायकों से मिले। ये भले ही खूब प्रचारित किया गया हो कि पीएम मोदी सत्ता संगठन के कामकाज से बहुत संतुष्ट दिखाई दिए। पर ये बात भी नहीं छुपाई जा सकती कि बैठक में क्या हुआ इस पर मुंह बंद रखने की सख्त हिदायत भी दी गई।
अब इसमें अगली कड़ी जोड़ते हैं अमित शाह के दौरे की। ये दौरा आम हो सकता था। अगर जाते जाते अमित शाह प्रदेश के सीनियर लीडर कैलाश विजयवर्गीय से अलग से मुलाकात न करते। शाह और विजयवर्गीय के बीच ये बैठक बहुत छोटी थी और एयरपोर्ट पर ही हुई लेकिन, इस बैठक ने सबका ध्यान जरूर खींचा। इस मुलाकात की दूसरी कड़ी जुड़ती है आरएसएस प्रमुख के दौरे से। अब मोहन भागवत प्रदेश के दौरे पर आ रहे हैं। हो सकता है कि सत्ता के नुमाइंदों से खुलकर मुलाकात न हो। पर इतना तो तय है कि संगठन के नेता जरूर भागवत से मुलाकात करेंगे और अनुशासन का नया पाठ पढ़ कर वापस बीजेपी दफ्तर में लौटेंगे।
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मिश्रा की प्रेशर पॉलिटिक्स की अटकलें
बीजेपी इस तरह से दस ही दिन में सत्ता से लेकर संगठन में कसावट लाने में फिर कामयाब हो सकती है। असल में प्रदेश में बीते एक डेढ़ महीने से जो हालात बन रहे थे उन्हें बीजेपी नजरअंदाज कर भी नहीं सकती थी। जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के दौरान ही काफी मुश्किलें सामने आ चुकी थीं और अब ये खबर थी कि प्रदेशाध्यक्ष का नाम तय है। लेकिन, उस बीच नरोत्तम मिश्रा की प्रेशर पॉलिटिक्स करने की अटकलें लगने लगीं। खबर तो यहां तक सामने आईं कि अगर पद नहीं मिला तो मिश्रा पार्टी छोड़ सकते हैं। उनके जैसे नेता का पार्टी छोड़ कर जाना बीजेपी को कई मोर्चों पर नुकसान पहुंचा सकता था।
तो अगर हम ये कहें कि इन दौरों के जरिए बीजेपी के दो शीर्ष नेताओं ने एक पंथ दो काज किए हैं और पार्टी में अनुशासन की लगाम को और खींच दिया है तो कुछ गलत नहीं होगा। और अब मोहन भागवत भी इसी तरह संगठन की डोर को मजबूत करेंगे जिसके बाद बहुत जल्द प्रदेशाध्यक्ष के नाम का ऐलान हो जाए तो कुछ हैरानी नहीं होगी।
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